बाद की अर्जी में ‘विश्वास के कारणों’ का पुनरुद्धार नहीं हो सकता: झारखंड हाईकोर्ट ने तीसरी अग्रिम जमानत याचिका खारिज की

झारखंड हाईकोर्ट ने लगातार दायर की जाने वाली अग्रिम जमानत याचिकाओं की स्वीकार्यता पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए हरीश कुमार पाठक द्वारा दायर की गई तीसरी ऐसी याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी की अदालत ने यह माना कि आवेदन पर विचार करने के लिए कोई नया आधार नहीं था, क्योंकि उठाए गए मुद्दों पर पहले ही दो खारिज हो चुकी याचिकाओं में विचार किया जा चुका था। यह मामला गैर-इरादतन हत्या सहित कई गंभीर आरोपों से संबंधित है, जिसमें न्यायालय ने न्यायिक औचित्य और नए तथ्यों के बिना बार-बार जमानत याचिका दायर करने के सीमित दायरे पर जोर दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता हरीश कुमार पाठक, नारायणपुर थाना कांड संख्या 154/2016 के संबंध में गिरफ्तारी-पूर्व जमानत की मांग कर रहे थे। यह मामला शुरू में भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) की धारा 354, 341, 342, 323, 325, 307, 504, 506 और 34 के तहत दर्ज किया गया था। बाद में, 17 मई, 2018 को एक आदेश के माध्यम से आई.पी.सी. की धारा 304 (गैर-इरादतन हत्या) भी जोड़ी गई।

यह याचिकाकर्ता का हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत पाने का तीसरा प्रयास था। उनकी पहली अर्जी (A.B.A. संख्या 4304/2018) 18 दिसंबर, 2018 को खारिज कर दी गई थी। उनकी दूसरी अर्जी (A.B.A. संख्या 14/2019) को भी 26 नवंबर, 2019 को खारिज कर दिया गया था। इन अस्वीकृतियों के बाद, श्री पाठक ने पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए एक याचिका (Cr.M.P. संख्या 1664/2019) दायर की थी, जिसे अंततः 5 अगस्त, 2025 को वापस ले लिया गया मानकर खारिज कर दिया गया।

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याचिकाकर्ता के तर्क

याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता श्री इंद्रजीत सिन्हा ने तर्क दिया कि एक नया वाद कारण उत्पन्न हुआ है, जो वर्तमान आवेदन को उचित ठहराता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि श्री पाठक ने कोई अपराध नहीं किया है और प्रथम सूचना रिपोर्ट (F.I.R.) में लगाए गए आरोप “झूठे और मनगढ़ंत” हैं।

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श्री सिन्हा ने यह भी तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को एक विभागीय कार्यवाही में दोषमुक्त कर दिया गया था, जिसे उनके पक्ष में माना जाना चाहिए। उन्होंने अदालत का ध्यान मेडिकल रिपोर्ट की ओर आकर्षित करते हुए कहा कि मृतक की मृत्यु का कारण “क्रूर हमला” नहीं, बल्कि एक “बीमारी” थी।

राज्य के तर्क

विशेष लोक अभियोजक श्री पंकज कुमार ने जमानत अर्जी का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ स्थानीय पुलिस और अपराध जांच विभाग (C.I.D.) दोनों की जांच के बाद आरोप पत्र दायर किया गया था।

राज्य के वकील ने रिकॉर्ड में अनियमितताओं पर प्रकाश डाला, यह देखते हुए कि मृतक को 3 अक्टूबर, 2016 को गिरफ्तार किया गया था, जबकि गिरफ्तारी की तारीख आधिकारिक तौर पर 4 अक्टूबर, 2016 दर्ज की गई थी। उन्होंने यह भी बताया कि स्टेशन डायरी पर सक्षम प्राधिकारी के हस्ताक्षर नहीं थे। उनका मुख्य तर्क यह था कि याचिकाकर्ता के वकील द्वारा उठाए जा रहे सभी बिंदु “पहले की अग्रिम जमानत अर्जियों के विषय थे” और “नई अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने के लिए कुछ भी नया नहीं था।”

न्यायालय का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी ने अपने विश्लेषण की शुरुआत इस “स्वीकृत स्थिति” से की कि दो पिछली अग्रिम जमानत याचिकाएं न्यायालय की एक समन्वय पीठ द्वारा पहले ही खारिज कर दी गई थीं। फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि याचिकाकर्ता के तर्क का एक प्रमुख बिंदु, यानी मेडिकल रिपोर्ट, पर “A.B.A. संख्या 4304/2018 में विस्तार से विचार किया गया था” जिसके बाद ही याचिका खारिज की गई थी।

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अदालत ने लगातार अग्रिम जमानत याचिकाओं को नियंत्रित करने वाले कानूनी सिद्धांतों पर विचार-विमर्श किया। कोर्ट ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 482 एक बार अर्जी खारिज हो जाने के बाद गिरफ्तारी की आशंका के “विश्वास के कारणों” के पुनरुद्धार की अनुमति नहीं देती है। कोर्ट ने कहा, “बीएनएसएस की धारा 482 का बारीकी से सर्वेक्षण करने पर, इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि धारा में प्रयुक्त शब्द और भाषा दूर से भी यह नहीं दर्शाते हैं कि अग्रिम जमानत के लिए आवेदन का लाभ उठाया जा सकता है, क्योंकि पिछली अर्जी खारिज हो जाने पर बाद की अर्जी में गिरफ्तारी की आशंका के ‘विश्वास के कारणों’ का कोई पुनरुद्धार नहीं हो सकता है।”

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महादोलाल बनाम एडमिनिस्ट्रेटर जनरल में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने न्यायिक मर्यादा और कानून में निश्चितता के महत्व को रेखांकित किया।

निर्णय

अपने विश्लेषण का समापन करते हुए, हाईकोर्ट ने नई अर्जी में कोई योग्यता नहीं पाई। इसने दोहराया कि आरोप पत्र प्रस्तुत किया जा चुका है और याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत सभी तर्कों पर पिछली कार्यवाही में विचार किया जा चुका है।

कोई नया आधार न पाते हुए, कोर्ट ने अंतिम आदेश पारित किया: “इस अग्रिम जमानत अर्जी पर विचार करने के लिए कोई नया आधार नहीं है। तदनुसार, यह अग्रिम जमानत अर्जी खारिज की जाती है।”

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