समझौते के बाद चेक बाउंस मामले में दोषसिद्धि रद्द, राजस्थान हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के तहत लगाया हर्जाना

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में, पक्षकारों के बीच समझौता हो जाने के बाद परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) की धारा 138 के तहत एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को रद्द कर दिया है। 6 अक्टूबर, 2025 को पारित एक आदेश में, न्यायमूर्ति संदीप शाह ने एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए निचली अदालतों के फैसलों को खारिज कर दिया। हालांकि, उन्होंने यह शर्त लगाई कि याचिकाकर्ता को बरी होने के लिए चेक राशि का 7.5% हर्जाने के तौर पर राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा करना होगा।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, लालू राम डांगी ने विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या-4 (एनआई मामले), उदयपुर के 29 नवंबर, 2022 के फैसले को चुनौती दी थी। निचली अदालत ने श्री डांगी को आपराधिक मामले संख्या 4882/2014 में धारा 138 के तहत दोषी ठहराते हुए एक वर्ष के साधारण कारावास और 3,40,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी।

Video thumbnail

इसके बाद, श्री डांगी ने इस फैसले के खिलाफ विशेष न्यायाधीश, सत्र न्यायालय, उदयपुर के समक्ष एक आपराधिक अपील (संख्या 136/2022) दायर की। अपीलीय अदालत ने 19 अगस्त, 2023 को उनकी अपील खारिज कर दी और निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। इन फैसलों से व्यथित होकर, श्री डांगी ने हाईकोर्ट के समक्ष वर्तमान आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की थी।

READ ALSO  आईपीसी की धारा 498ए के तहत दंडनीय अपराध के लिए विवाह समझौते पर एक साथ रहने वाले जोड़े को लिव-इन-रिलेशन में रहने वाले व्यक्तियों के रूप में माना जाना चाहिए, न कि पति और पत्नी के रूप में: केरल हाईकोर्ट

पक्षकारों की दलीलें

याचिकाकर्ता के वकील, श्री विश्वास खत्री ने अदालत को बताया कि दोनों पक्षों ने सौहार्दपूर्ण ढंग से विवाद सुलझा लिया है। उन्होंने 6 अक्टूबर, 2024 का एक समझौता विलेख प्रस्तुत किया, जिसमें यह पुष्टि की गई थी कि शिकायतकर्ता, मदन लाल सिंघवी को पूरी बकाया राशि मिल गई है। उन्होंने परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 147 का हवाला देते हुए कहा कि इस अधिनियम के तहत अपराध शमनीय (compoundable) हैं, और इसी आधार पर याचिका को स्वीकार करने का आग्रह किया।

शिकायतकर्ता श्री सिंघवी की ओर से पेश हुए वकील श्री लव जैन ने भी समझौते और राशि प्राप्त होने की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि इस समझौते के आलोक में, उन्हें याचिका स्वीकार किए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है।

न्यायालय का विश्लेषण और निर्णय

न्यायमूर्ति संदीप शाह ने पक्षकारों की दलीलों और एनआई अधिनियम की धारा 147 की भावना पर विचार करते हुए, ऐसे अपराधों के शमन पर कानूनी स्थिति का विश्लेषण किया। न्यायालय ने अपने फैसले का आधार बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक निर्णयों का उल्लेख किया।

READ ALSO  आंदोलन ठीक, लेकिन राजमार्ग इतने लंबे वक्त तक कैसे बंद रखा जा सकता है:--सुप्रीम कोर्ट

फैसले में दामोदर एस. प्रभु बनाम सैयद बाबुलाल एच (2010) का जिक्र किया गया, जिसमें “अपराध के शमन में अनुचित देरी करने वाले पक्षकारों पर लागत लगाने के लिए एक श्रेणीबद्ध योजना” के दिशानिर्देश स्थापित किए गए थे। साथ ही, मेसर्स मीटर्स एंड इंस्ट्रूमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम कंचन मेहता (2018) मामले का भी हवाला दिया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “धारा 138 के तहत अपराध मुख्य रूप से एक दीवानी प्रकृति का दोष है… इस प्रावधान का उद्देश्य मुख्य रूप से प्रतिपूरक है, दंडात्मक तत्व का उद्देश्य केवल प्रतिपूरक तत्व को लागू करना है।”

इसके अलावा, न्यायालय ने संजबीज तारी बनाम किशोर एस. बोरकर एवं अन्य (2025) में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर भी ध्यान दिया, जिसने शमन के लिए दिशानिर्देशों को संशोधित किया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लंबित मामलों की बड़ी संख्या और ब्याज दरों में गिरावट के कारण “‘दिशानिर्देशों पर फिर से विचार करने और उन्हें बदलने'” का समय आ गया है। संशोधित दिशानिर्देशों के तहत, यदि हाईकोर्ट के समक्ष पुनरीक्षण या अपील में समझौता होता है, तो अभियुक्त को चेक राशि का 7.5% हर्जाने के रूप में भुगतान करना होगा।

READ ALSO  दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय मुक्केबाजी महासंघ के चुनाव परिपत्र पर रोक लगाई

इन सिद्धांतों को लागू करते हुए, न्यायमूर्ति शाह ने समझौते के आधार पर पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया। हालांकि, अदालत ने कहा, “चूंकि समझौता याचिकाकर्ता द्वारा दायर अपील के खारिज होने के बाद हुआ है, इसलिए माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा संजबीज तारी (सुप्रा) मामले में दिए गए निर्णय के आलोक में याचिकाकर्ता पर चेक राशि का 7.5% हर्जाना लगाना उचित है।”

तदनुसार, हाईकोर्ट ने विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित और सत्र न्यायाधीश द्वारा बरकरार रखी गई दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया। यह बरी करने का आदेश इस शर्त के अधीन है कि याचिकाकर्ता एक महीने के भीतर जोधपुर में राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास चेक राशि का 7.5% हर्जाना जमा करे। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि यदि निर्धारित समय के भीतर राशि जमा नहीं की जाती है, तो पुनरीक्षण याचिका को उचित आदेशों के लिए फिर से सूचीबद्ध किया जाएगा।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles