पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने 2020 के सिंथेटिक ड्रग्स मामले में एक शहर के केमिस्ट की याचिका पर चंडीगढ़ के पुलिस महानिदेशक (DGP) से विस्तृत हलफनामा दाखिल करने को कहा है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उसे झूठे केस में फंसाया था।
न्यायमूर्ति राजेश भारद्वाज की एकल पीठ ने सुनवाई के दौरान निर्देश दिया कि DGP अब तक की पुलिस जांच रिपोर्टों और याचिकाकर्ता के दावों का परीक्षण करें और पूरा हलफनामा कोर्ट में दाखिल करें। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 20 नवंबर को तय की है।
याचिकाकर्ता करण शारदा और एक अन्य आरोपी दुर्गेश मिश्रा को मार्च 2020 में इंडस्ट्रियल एरिया पुलिस थाने में दर्ज FIR के आधार पर गिरफ्तार किया गया था। पुलिस का दावा था कि 19 मार्च 2020 को सेक्टर-29 स्थित साईं बाबा मंदिर के पास शारदा की गाड़ी रोकी गई और उससे सिंथेटिक ड्रग्स बरामद हुए।

लेकिन शारदा का आरोप है कि उसे असल में ज़िरकपुर-अंबाला हाईवे से सिविल कपड़ों में कुछ लोगों ने अगवा किया और सेक्टर-29 लाकर दुर्गेश मिश्रा को फोन करने के लिए मजबूर किया गया। उनका कहना है कि यदि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से स्वतंत्र जांच कराई जाए और CCTV फुटेज व अन्य दस्तावेज देखे जाएं तो “पूरा सच सामने आ जाएगा।”
सितंबर 2020 में हाई कोर्ट ने परस्पर विरोधी दावों को देखते हुए DGP को जांच कराने का निर्देश दिया था। इसके बाद DGP ने विशेष जांच दल (SIT) गठित किया। शारदा तीन महीने जेल में रहने के बाद हाई कोर्ट से जमानत पर रिहा हुआ।
SIT की जांच के बाद 2022 में पुलिस ने इस FIR में कैंसलेशन रिपोर्ट दाखिल कर दी। इसके बाद शारदा ने हाई कोर्ट में दोबारा याचिका दायर कर संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई और CBI जांच की मांग की। उन्होंने कॉल रिकॉर्ड्स व लोकेशन डाटा पेश कर दिखाया कि उनकी गिरफ्तारी पुलिस दावे से पहले की गई थी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जब्त इंजेक्शनों की फॉरेंसिक रिपोर्ट FIR में दर्ज दावे से अलग है।
19 सितंबर 2025 को हुई सुनवाई में शारदा ने दलील दी कि 2020 में मांगा गया DGP का हलफनामा कभी दाखिल ही नहीं किया गया। वहीं, केंद्र शासित प्रदेश (UT) के वकील ने कहा कि पुलिस अधिकारियों पर विभागीय जांच की जा चुकी है। कोविड महामारी के कारण आदेश का पालन नहीं हो पाया, लेकिन जांच पूरी होने के बाद याचिकाकर्ता को बरी कर दिया गया।
इन दलीलों पर गौर करते हुए अदालत ने एक बार फिर DGP को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता के आरोपों और पुलिस की जांच रिपोर्टों का तुलनात्मक अध्ययन करें और अगली सुनवाई से पहले विस्तृत हलफनामा दाखिल करें।