ओडिशा हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों के शिक्षकों द्वारा दायर उन याचिकाओं को खारिज कर दिया है, जिनमें राज्य सरकार द्वारा उनके मुस्लिम विवाह एवं तलाक रजिस्ट्रार लाइसेंस रद्द किए जाने को चुनौती दी गई थी। अदालत ने जोर देकर कहा कि शिक्षण एक “पवित्र पेशा” है, जिसमें पूर्ण समर्पण की आवश्यकता होती है और इसे अतिरिक्त अर्ध-न्यायिक जिम्मेदारियों से समझौता करके नहीं निभाया जा सकता।
न्यायमूर्ति दीक्षित श्रीपाद कृष्ण ने फैसले में कहा:
“शिक्षण एक पवित्र पेशा है। शिक्षक, विशेषकर प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक, युवा मनों में सभ्यता के मूल्य और संस्कृति का बीजारोपण करते हैं। इसलिए हमारे प्राचीन शास्त्र ‘गुरु साक्षात् परब्रह्म’ का उच्चारण करते हैं, जो शिक्षक को ईश्वर के समान मानते हैं। मोहम्मडन रजिस्ट्रार के पद से कई गंभीर जिम्मेदारियाँ जुड़ी होती हैं… ऐसे में यह बड़ा प्रश्न है कि शिक्षक सरकारी स्कूलों में अपने कर्तव्यों को पूर्ण समर्पण से कैसे निभा पाएंगे।”
कई दशकों से ओडिशा में सरकारी स्कूलों के मुस्लिम शिक्षक Orissa Muhammedan Marriage and Divorce Registration Act, 1949 और Rules, 1976 के अंतर्गत विवाह और तलाक रजिस्ट्रार के रूप में कार्य कर रहे थे। उनकी जिम्मेदारियों में विवाह और तलाक दर्ज करना, आवश्यक रजिस्टरों का संधारण, पक्षकारों और गवाहों की जांच तथा कभी-कभी आधिकारिक काम के लिए यात्रा करना शामिल था।

हालांकि 2023 में राज्य सरकार ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया, जिसके बाद छह शिक्षकों—जो लाइसेंस प्राप्त रजिस्ट्रार के रूप में सेवा दे रहे थे—ने इस फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
अपने 12-पृष्ठीय फैसले में अदालत ने स्पष्ट किया कि लाइसेंस जारी करने का अधिकार राज्य सरकार के विवेकाधिकार में है और किसी व्यक्ति का इसे पाने का “पूर्ण अधिकार” नहीं है। न्यायमूर्ति कृष्ण ने कहा कि अधिनियम में प्रयुक्त शब्द “it shall be lawful for the State Government to grant a license” सरकार को अधिकार देता है, बाध्य नहीं करता।
अदालत ने शिक्षकों की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि लंबे समय तक सेवा देने से उनके लिए लाइसेंस नवीनीकरण का “अधिकार” बन गया है। अदालत ने कहा:
“अधिकतम यह एक विशेषाधिकार हो सकता है, अधिकार नहीं। शिक्षक पहले से ही स्थायी सरकारी नौकरी में हैं। उनका अतिरिक्त रजिस्ट्रार पद का दावा, जो समुदाय के बेरोज़गार सदस्यों को आजीविका से वंचित कर सकता है, टिकाऊ नहीं है।”