क्या सात साल वकालत कर चुके न्यायिक अधिकारी जिला जज पद के लिए बार कोटे से पात्र हैं? सुप्रीम कोर्ट में 23 सितंबर से होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को यह तय किया कि वह 23 सितम्बर से तीन दिनों तक इस महत्वपूर्ण प्रश्न पर सुनवाई करेगा कि क्या वे न्यायिक अधिकारी, जिन्होंने न्यायिक सेवा में आने से पहले सात वर्ष तक वकालत की है, बार कोटे से जिला जज (एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज/ADJ) नियुक्ति के लिए पात्र माने जा सकते हैं।

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश, न्यायमूर्ति अरविन्द कुमार, न्यायमूर्ति एस. सी. शर्मा और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पाँच सदस्यीय संविधान पीठ 23 से 25 सितम्बर तक इस मामले की सुनवाई करेगी।

अदालत के सामने मुख्य प्रश्न

संविधान के अनुच्छेद 233 में जिला जजों की नियुक्ति का प्रावधान है। इसमें कहा गया है कि ऐसे व्यक्ति, जो केंद्र या राज्य की सेवा में न हों, केवल तभी जिला जज पद पर नियुक्ति के पात्र होंगे यदि उन्होंने “कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता या वकील के रूप में कार्य किया हो और उन्हें संबंधित उच्च न्यायालय की संस्तुति प्राप्त हो।”

अब सवाल यह है कि क्या अधिवक्ता के रूप में सात वर्ष की प्रैक्टिस और उसके बाद की न्यायिक सेवा को मिलाकर देखा जा सकता है, और क्या ऐसे न्यायिक अधिकारी बार कोटे से नियुक्ति के हकदार होंगे। साथ ही यह भी विचारणीय है कि पात्रता का निर्धारण आवेदन की तिथि पर होगा या नियुक्ति की तिथि पर या दोनों पर।

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सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही

सुनवाई का कार्यक्रम तय करते हुए मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, “पहले हम उन पक्षकारों को सुनेंगे जो इस प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं, उसके बाद विरोधी पक्ष अपनी दलील देंगे। प्रत्येक पक्ष को डेढ़ दिन का समय दिया जाएगा।”

अदालत ने अधिवक्ता अजय कुमार सिंह को समर्थन पक्ष के लिए और अधिवक्ता जॉन मैथ्यू को विरोधी पक्ष के लिए नोडल काउंसल नियुक्त किया है। दोनों पक्षों को एक साझा “कन्वीनियंस कॉम्पाइलेशन” तैयार करने का निर्देश दिया गया है ताकि सुनवाई में सुविधा रहे।

मुख्य न्यायाधीश गवई ने यह भी स्पष्ट किया कि व्याख्या ऐसी न हो कि केवल “दो वर्ष की प्रैक्टिस करने वाला व्यक्ति भी पात्र हो जाए।”

मामले की पृष्ठभूमि

यह विवाद केरल उच्च न्यायालय के एक निर्णय से उपजा, जिसमें एक जिला जज की नियुक्ति रद्द कर दी गई थी। उच्च न्यायालय ने कहा था कि नियुक्ति के समय वह अधिवक्ता नहीं थे क्योंकि वे पहले ही न्यायिक सेवा में शामिल हो चुके थे।

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याचिकाकर्ता ने हालांकि सात वर्ष वकालत का अनुभव अर्जित करने के बाद ही आवेदन किया था। 12 अगस्त को मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने इस संवैधानिक महत्व के प्रश्न को पाँच जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था।

उस आदेश में कहा गया था: “हम उपर्युक्त प्रश्नों को पाँच सदस्यीय संविधान पीठ के विचारार्थ भेजते हैं। रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाता है कि मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रशासनिक पक्ष पर उचित आदेश हेतु प्रस्तुत किया जाए।”

एडीजे पद उच्च न्यायिक सेवा का हिस्सा है। इन पदों पर नियुक्ति दो तरीकों से होती है—निचली न्यायपालिका से पदोन्नति द्वारा और बार से सीधे भर्ती द्वारा। सुप्रीम कोर्ट का आगामी निर्णय यह स्पष्ट करेगा कि क्या बार में सात वर्ष की प्रैक्टिस पूरी कर चुके न्यायिक अधिकारी भी बार कोटे से भर्ती के हकदार होंगे। यह फैसला देशभर में उच्च न्यायिक सेवा की भर्ती प्रणाली पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है।

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