सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की एक ट्रायल कोर्ट में बलात्कार पीड़िता की गवाही दर्ज करने में देरी पर कड़ी नाराज़गी जताई है। अदालत को बताया गया कि पीड़िता की जिरह चार महीने बाद के लिए स्थगित कर दी गई है।
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि पीड़िता की गवाही को “टुकड़ों-टुकड़ों” में दर्ज करना चिंता का विषय है और इसके लिए ट्रायल कोर्ट तथा जांच एजेंसी सीबीआई दोनों को स्पष्टीकरण देना होगा।
पीठ ने टिप्पणी की, “हमें समझ नहीं आता कि जब गवाह, खासकर पीड़िता स्वयं गवाही देने के लिए कटघरे में आ चुकी हैं, तो उसकी आगे की गवाही चार महीने तक क्यों टाल दी गई? इस पर ट्रायल कोर्ट को स्पष्टीकरण देना होगा।”

न्यायाधीशों ने चेतावनी दी कि ऐसी देरी से मुकदमे पर गंभीर असर पड़ सकता है और इससे अभियुक्तों को गवाहों को प्रभावित करने का मौका मिल सकता है। अदालत ने कहा, “यह अत्यंत गंभीर मामला है और इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।”
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और लोक अभियोजक की भूमिका पर भी सवाल उठाए कि पीड़िता से गवाही की शुरुआत क्यों नहीं कराई गई। पीठ ने कहा, “पीड़िता को सबसे पहले गवाही के लिए बुलाया जाना चाहिए था, फिर उसे इतने लंबे समय बाद कटघरे में क्यों खड़ा किया गया?”
ये टिप्पणियाँ उस समय आईं जब सुप्रीम कोर्ट सीबीआई की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें एजेंसी ने पिछले साल सितंबर के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने मामले के एक आरोपी को जमानत दे दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट तलब की है, जिसमें अब तक हुई सुनवाई का ब्यौरा, गवाहों की संख्या और पीड़िता की अंतिम जिरह की तारीख शामिल होनी चाहिए। साथ ही अदालत ने आरोपी को एक सप्ताह में जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को तय की।