मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार को ऐशबाग क्षेत्र में बने विवादित रेलवे ओवरब्रिज का सटीक कोण (डिग्री) पता करने के लिए विशेषज्ञ इंजीनियर की नियुक्ति का आदेश दिया है। यह पुल अपने कथित 90 डिग्री मोड़ के कारण लंबे समय से आलोचना का विषय रहा है।
मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेव और न्यायमूर्ति विनय साराफ की खंडपीठ ने यह आदेश उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जो पुल का निर्माण करने वाली निजी कंपनी ने दायर की थी। कंपनी ने दावा किया कि उसने निर्माण कार्य लोक निर्माण विभाग (PWD) द्वारा दिए गए जनरल अरेंजमेंट ड्रॉइंग (GAD) के अनुसार ही किया है।
हाईकोर्ट ने मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (MANIT), भोपाल के निदेशक को निर्देश दिया कि वे संरचनात्मक और सिविल इंजीनियरिंग में योग्य वरिष्ठ प्रोफेसर को ओवरब्रिज का निरीक्षण करने भेजें। प्रोफेसर को यह जांच करनी होगी कि पुल का कोण वास्तव में कितना है और क्या यह जनरल अरेंजमेंट ड्रॉइंग के अनुरूप है या इसमें कोई अंतर है।

इसके साथ ही अदालत ने पीडब्ल्यूडी, भोपाल नगर निगम और भोपाल विकास प्राधिकरण के मुख्य अभियंताओं को निर्देश दिया कि वे निरीक्षण में प्रोफेसर को आवश्यक सहयोग और जनशक्ति उपलब्ध कराएं। निरीक्षण का खर्च, जिसमें विशेषज्ञ की फीस शामिल होगी, निर्माण कंपनी को वहन करना होगा। हालांकि, रिपोर्ट के आधार पर कंपनी को राज्य सरकार से वसूली का अधिकार रहेगा।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अगली सुनवाई तक कंपनी के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाएगी।
कंपनी की ओर से अधिवक्ता प्रवीन दुबे ने दलील दी कि निर्माण कार्य सरकार द्वारा जारी जीएडी के अनुसार किया गया है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2023 और 2024 में ड्रॉइंग में संशोधन किए गए और पुल का निर्माण इन्हीं संशोधित नक्शों के अनुसार किया गया।
“यदि डिजाइन में खामी है तो उसकी जिम्मेदारी कंपनी पर नहीं डाली जा सकती, क्योंकि निर्माण कार्य पूरी तरह जीएडी के अनुरूप किया गया है,” दुबे ने कहा। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि दोषपूर्ण ड्रॉइंग के लिए विभाग के कुछ अधिकारियों पर पहले ही कार्रवाई हो चुकी है।
ऐशबाग फ्लाईओवर का निर्माण अनुबंध वर्ष 2021-22 में कंपनी को मिला था और इसे 18 माह में पूरा किया जाना था। पुल का तीखा मोड़ सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर मामला गरमाया और सरकार ने जांच समिति गठित की।
पांच सदस्यीय समिति ने अपनी जांच में पाया कि राज्य सरकार और रेलवे विभाग के बीच समन्वय की कमी रही और पुल के खंभे निर्धारित दूरी पर नहीं लगाए गए। रिपोर्ट के आधार पर सात पीडब्ल्यूडी इंजीनियरों को निलंबित किया गया, जिनमें दो मुख्य अभियंता भी शामिल हैं। एक सेवानिवृत्त अधीक्षक अभियंता पर विभागीय जांच चल रही है। साथ ही दो कंपनियों को, जिनमें ठेकेदार कंपनी भी शामिल है, ब्लैकलिस्ट कर दिया गया।