दिल्ली हाईकोर्ट ने उस सजा समीक्षा बोर्ड (Sentence Review Board–SRB) का आदेश रद्द कर दिया है, जिसने अपनी पत्नी और दो नाबालिग बच्चों की हत्या के दोषी एक व्यक्ति की समयपूर्व रिहाई (premature release) की अर्जी खारिज कर दी थी। यह व्यक्ति उम्रकैद की सजा काट रहा है।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने 22 अगस्त को पारित आदेश में कहा कि बोर्ड का 10 दिसंबर 2024 का निर्णय विधिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है और उसमें पर्याप्त कारण नहीं बताए गए हैं। अदालत ने मामले को दोबारा विचार हेतु SRB के पास भेजते हुए निर्देश दिया कि आठ सप्ताह के भीतर विस्तृत और कारणयुक्त आदेश पारित किया जाए।
हाईकोर्ट ने कहा कि सामाजिक जांच रिपोर्ट और परिवीक्षा अधिकारी की राय यह दर्शाती है कि दोषी ने सुधार के संकेत दिखाए हैं और वह समाज में एक कानून का पालन करने वाले नागरिक के रूप में पुनर्वासित किया जा सकता है।

अदालत ने पाया कि बोर्ड का फैसला मुख्यतः अपराध की गंभीरता, उसके सामाजिक प्रभाव और पुलिस की आपत्ति पर आधारित था। बोर्ड ने कैदी के जेल आचरण, मनोवैज्ञानिक आकलन और सुधार के प्रमाणों पर पर्याप्त विचार नहीं किया।
“इन कारणों से अदालत पाती है कि SRB का निर्णय अपर्याप्त और समयपूर्व रिहाई से संबंधित स्थापित सिद्धांतों के विपरीत है,” आदेश में कहा गया।
हाईकोर्ट ने नोट किया कि दोषी अब तक करीब 18 वर्ष की वास्तविक कैद और कुल 21.4 वर्ष (रिमिशन सहित) की सजा काट चुका है। इस दौरान उसे 30 बार पैरोल और फरलो पर रिहाई मिली और हर बार उसका आचरण संतोषजनक पाया गया।
इसके बावजूद बोर्ड ने उसकी अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि अपराध जघन्य और क्रूर था, उसकी रिहाई से समाज पर नकारात्मक असर पड़ेगा और पुलिस ने भी आपत्ति जताई है।
दोषी को 2005 में अपनी पत्नी और दो बच्चों की हत्या के मामले में पहले मृत्युदंड दिया गया था। बाद में हाईकोर्ट ने इसे उम्रकैद में बदल दिया, जिसका अर्थ है कि वह शेष जीवन जेल में गुजारेगा।
अब हाईकोर्ट के ताज़ा आदेश के बाद SRB को इस मामले पर दोबारा विचार करना होगा और नया आदेश पारित करना होगा।