तेलंगाना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राज्य सरकार की उस शर्त को सही ठहराया, जिसमें सहायक लोक अभियोजक (APP) पद के लिए उम्मीदवारों के पास आपराधिक अदालतों में कम से कम तीन साल का सक्रिय वकालत अनुभव होना अनिवार्य है। मुख्य न्यायाधीश अपरेश कुमार सिंह और न्यायमूर्ति जी.एम. मोहिउद्दीन की पीठ ने इस नियम को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि नियुक्ति के लिए अनुभव और शैक्षणिक योग्यताओं के मानक तय करना नियोक्ता का अधिकार है।
पीठ ने कहा कि APP का कार्य कानूनी व्यवस्था के व्यावहारिक ज्ञान की मांग करता है और उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त करना है जो पहले से ही आपराधिक कानून के अभ्यास से परिचित हों, न कि हाल ही में कानून की पढ़ाई पूरी करने वाले।
मुख्य न्यायाधीश सिंह ने सुनवाई के दौरान कहा,
“अपराधिक अदालतों का संचालन एक विशेष प्रकार की सहायता की मांग करता है, जिसे नियम बनाने वाले प्राधिकारी बार में न्यूनतम अनुभव के रूप में देखते हैं। उद्देश्य ऐसे लोगों को लाना है जो आपराधिक मामलों से परिचित हों, न कि वे जो अभी-अभी लॉ कॉलेज से निकले हों… पूरा सिस्टम प्रभावित हो जाएगा।”
याचिकाकर्ता कप्पेरा राजेश ने 1992 के तेलंगाना राज्य अभियोजन नियमों के नियम 5 और 15 अगस्त को जारी भर्ती अधिसूचना को चुनौती दी थी, जिसमें यह अनुभव शर्त लागू की गई थी। उनका तर्क था कि यह शर्त मनमानी और असंवैधानिक है, क्योंकि उम्मीदवार के तीन साल के अभ्यास का कोई सत्यापन तंत्र मौजूद नहीं है।
याचिकाकर्ता के वकील बागलेकर आकाश कुमार ने कहा कि कोई व्यक्ति वर्षों तक कोचिंग संस्थानों में रहकर या घर पर पढ़ाई करके भी यह दावा कर सकता है, जिससे असमान अवसर पैदा होंगे। उन्होंने दलील दी कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत समानता और समान रोजगार अवसरों के अधिकार का उल्लंघन है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रवेश-स्तर के न्यायिक मजिस्ट्रेटों के लिए लागू सत्यापन प्रक्रिया का हवाला भी दिया।

हाईकोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार कर कहा कि उम्मीदवार के प्रमाण-पत्रों का सत्यापन एक सामान्य प्रक्रिया है।
“यह उम्मीदवार द्वारा प्रस्तुत प्रमाण-पत्रों के सत्यापन का सवाल है,” अदालत ने कहा, यह जोड़ते हुए कि पहले भी ऐसे मामलों में “अभ्यर्थिता रद्द की गई है क्योंकि प्रमाण-पत्र ऐसे व्यक्ति से था जो वास्तव में प्रैक्टिस में नहीं था।”
याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी कहा कि APP की भर्तियों के बीच लंबे और अनियमित अंतराल से युवा वकीलों का उत्साह और अवसर दोनों खत्म हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि पिछली भर्ती अधिसूचना 2021 में आई थी और मौजूदा 2025 की अधिसूचना भी अदालत के हस्तक्षेप के बाद जारी हुई।
अदालत ने इस तर्क को भी खारिज करते हुए कहा, “यह कोई ऐसा तर्क नहीं है जिसे स्वीकार किया जा सके।”
अंततः पीठ ने पूरी याचिका खारिज कर दी।