तलाक के बाद आपराधिक कार्यवाही जारी रखना बेकार: सुप्रीम कोर्ट ने ससुर के खिलाफ मामला किया खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में ससुर के खिलाफ क्रूरता और दहेज उत्पीड़न के आरोपों में चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा कि जब विवाह को तलाक के डिक्री से समाप्त कर दिया गया है, तो वैवाहिक विवाद से उत्पन्न आपराधिक मामलों को जारी रखना किसी उपयोगी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता और केवल “शत्रुता को बनाए रखता” है।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत “पूर्ण न्याय” करने के लिए अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए, उस हाईकोर्ट आदेश को निरस्त कर दिया जिसमें एफआईआर को रद्द करने से इंकार किया गया था।

अदालत ने माना कि जब आरोप तलाक की कार्यवाही शुरू होने के बाद लगाए गए हों और देर से लगाए गए हों, तब अभियोजन जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

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पृष्ठभूमि

यह विवाद अपीलकर्ता के पुत्र और शिकायतकर्ता (प्रतिवादी संख्या 2) के बीच वैवाहिक मतभेद से उत्पन्न हुआ। दोनों की मुलाकात अप्रैल 2017 में एक वैवाहिक वेबसाइट के माध्यम से हुई थी और 23 दिसंबर 2017 को विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत शादी हुई थी।

अप्रैल 2019 तक मतभेद उभर आए और 15 मई 2019 को पत्नी ससुराल छोड़कर जबलपुर में अपने मायके लौट गईं। उन्होंने महिला थाना, जबलपुर में शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद दोनों पक्षों के बीच काउंसलिंग हुई। 2 जून 2019 को हुई बैठक में दोनों परिवारों की सहमति से पुनः हिंदू रीति-रिवाज से विवाह करने का निर्णय हुआ।

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हालांकि, यह समझौता अधिक समय तक नहीं चला। 21 जुलाई 2019 को पत्नी ने अपने पति, ससुर (अपीलकर्ता मंगे राम), सास और ननद के खिलाफ एफआईआर संख्या 58/2019 दर्ज कराई, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 34 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 व 4 के तहत मामला दर्ज किया गया।

एफआईआर में आरोप था कि काउंसलिंग के बाद 5 लाख रुपये नकद, सोना और कार की नई दहेज मांग की गई। यह भी कहा गया कि अपीलकर्ता ने जबलपुर रेलवे स्टेशन पर बुलाकर उन्हें थप्पड़ मारा, जान से मारने की धमकी दी और दहेज की मांग को 10 लाख रुपये तक बढ़ा दिया। 18 अगस्त 2019 को आरोपपत्र दाखिल हुआ।

अपीलकर्ता व उनके परिवार ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में एफआईआर रद्द करने की याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने 7 मई 2024 को सास और ननद के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी, यह कहते हुए कि उनके खिलाफ आरोप “सामान्य प्रकृति” के थे, लेकिन पति और ससुर के खिलाफ कार्यवाही रद्द करने से इंकार कर दिया। इस आदेश के खिलाफ ससुर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। इस बीच, 24 अगस्त 2021 को भुवनेश्वर फैमिली कोर्ट ने पति-पत्नी को तलाक दे दिया।

सुप्रीम कोर्ट में पक्षकारों के तर्क

अपीलकर्ता के वकील ने दलील दी कि यह एफआईआर उनके पुत्र द्वारा 20 जून 2019 को तलाक याचिका दायर करने के जवाब में “प्रतिशोध” स्वरूप दर्ज की गई। 2 जून 2019 की कथित थप्पड़ की घटना के बारे में उसी दिन काउंसलिंग के दौरान कोई शिकायत नहीं की गई थी, जिससे यह आरोप बाद में गढ़ा हुआ प्रतीत होता है।

वहीं, मध्य प्रदेश सरकार के वकील ने कहा कि एफआईआर में ससुर के खिलाफ दहेज मांग और शारीरिक उत्पीड़न के ठोस और विस्तृत आरोप हैं, जिन्हें पांच गवाहों के बयान से समर्थन मिला है।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां

रिकॉर्ड की समीक्षा के बाद पीठ ने शिकायत की विश्वसनीयता पर संदेह जताया। न्यायमूर्ति नागरत्ना द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया, “यह प्रतीत होता है कि प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा दर्ज की गई एफआईआर अत्यधिक विलंबित है और संदेह से परे नहीं है।”

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अदालत ने कहा कि 2 जून 2019 को हुई काउंसलिंग बैठक आपसी सहमति के साथ विवाह पुनः संपन्न करने पर समाप्त हुई, जो उसी दिन कथित थप्पड़ मारने के आरोप के विपरीत है। अदालत ने यह भी नोट किया कि एफआईआर पति द्वारा तलाक याचिका दायर करने के बाद दर्ज की गई थी।

पीठ ने स्पष्ट कहा, “जब मुख्य पक्षकारों के बीच वैवाहिक संबंध कानूनी रूप से समाप्त हो चुका है, तो उस संबंध से उपजे विवाद के आपराधिक मामलों को जारी रखना किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता। बल्कि, यह केवल उन पक्षों के बीच शत्रुता बनाए रखता है जो अब अपने जीवन में आगे बढ़ चुके हैं।”

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अदालत ने दारा लक्ष्मी नारायण बनाम तेलंगाना राज्य मामले का हवाला देते हुए कहा कि यह एक आम प्रवृत्ति बन गई है कि पति के पूरे परिवार को वैवाहिक विवाद में फंसा दिया जाता है, चाहे उनका कोई प्रत्यक्ष संबंध या भूमिका हो या न हो।

फैसला

अनुच्छेद 142 के तहत “पूर्ण न्याय” करने की शक्ति का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली। अदालत ने कहा, “जब विवाह तलाक में समाप्त हो चुका हो और पक्षकार आगे बढ़ चुके हों, तो परिवार के सदस्यों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही, खासकर जब विशिष्ट और निकट संबंधी आरोप न हों, किसी वैध उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती।”

अदालत ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए एफआईआर संख्या 58/2019 और उससे संबंधित आरोपपत्र को, अपीलकर्ता मंगे राम के संदर्भ में, रद्द कर दिया।

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