सुप्रीम कोर्ट  ने कर्नाटक मंत्री शिवानंद पाटिल की मानहानि मामले को लेकर हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कर्नाटक के कैबिनेट मंत्री शिवानंद एस पाटिल की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने भाजपा विधायक बसनगौड़ा आर. पाटिल यतनाल के खिलाफ दायर मानहानि मामले को खारिज करने संबंधी कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट कहा कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अदालतों में नहीं लड़ी जानी चाहिए। सुनवाई की शुरुआत में सीजेआई गवई ने टिप्पणी की, “मैं हमेशा कहता हूं कि राजनीतिक लड़ाइयां अदालत में नहीं, बाहर लड़ी जाएं।”

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पाटिल के वकील ने दलील दी कि हाईकोर्ट ने 28 सितंबर 2024 के आदेश में केवल प्रक्रियात्मक आधारों पर यतनाल के खिलाफ मानहानि केस रद्द कर दिया, जबकि यतनाल ने मंत्री के रूप में आपत्तिजनक बयान दिए थे। इस पर सीजेआई ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “तो क्या हुआ?… याचिका ₹25,000 के जुर्माने के साथ खारिज की जाती है।” बाद में पीठ ने जुर्माना बढ़ाकर ₹1 करोड़ कर दिया, लेकिन अंततः वकील के आग्रह पर याचिका को वापस लेने की अनुमति देते हुए जुर्माना माफ कर दिया गया।

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यह विवाद 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों से पहले यतनाल द्वारा एक जनसभा में दिए गए कथित मानहानिकारक बयानों से जुड़ा है। मंत्री पाटिल ने उनके खिलाफ भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 223 के तहत आपराधिक मानहानि की शिकायत दर्ज करवाई थी।

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हालांकि, कर्नाटक हाईकोर्ट ने पाया कि मजिस्ट्रेट ने BNSS में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने शिकायतकर्ता और गवाहों का शपथपूर्वक परीक्षण नहीं किया और न ही आरोपी को नोटिस देकर सुनवाई का अवसर प्रदान किया।

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