नई दिल्ली, 29 जुलाई 2025 — सुप्रीम कोर्ट में एक अहम सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता एस. सिराजुद्दीन ने न्यायपालिका की निष्पक्षता और गरिमा को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि न्यायाधीशों द्वारा अधिवक्ताओं की ओर से आयोजित सामाजिक आयोजनों — जैसे जन्मदिन समारोह और अन्य पार्टियों — में शामिल होना सार्वजनिक दृष्टिकोण से गलत संदेश देता है।
उन्होंने तर्क दिया कि बार के सदस्यों द्वारा लगातार आयोजित इन कार्यक्रमों में न्यायाधीशों की भागीदारी से न्यायपालिका और बार के बीच अत्यधिक निकटता की धारणा बनती है, जो न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांत के विरुद्ध है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस प्रकार के मेल-जोल से न्यायाधीशों का कीमती समय भी व्यर्थ होता है।
इस संदर्भ में,“न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनरुक्ति वक्तव्य, 1999” और “बंगलोर सिद्धांत” जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य आचार संहिता का हवाला देते हुए कहा कि न्यायाधीशों को ऐसी गतिविधियों से दूर रहना चाहिए जो उनके निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न कर सकती हैं।

इसपर न्यायमूर्ति सूर्यकांत, जो पीठ की अध्यक्षता कर रहे थे, ने भी स्थिति की गंभीरता को स्वीकार करते हुए कहा कि देशभर में अनेक बार एसोसिएशनों के बिना किसी नियामक ढांचे के तेजी से पनपने से कई समस्याएं उत्पन्न हुई हैं, जिनमें मनमानी चुनावी प्रक्रियाएं और अनावश्यक संस्थागत जटिलताएं शामिल हैं।
भारतीय बार काउंसिल के उपाध्यक्ष एस. प्रभाकरण ने सुनवाई के दौरान कहा कि कई बार एसोसिएशन बिना पर्याप्त सदस्य संख्या या किसी निरीक्षण प्रक्रिया के काम कर रही हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि मान्यता के लिए न्यूनतम सदस्य संख्या और नियमित निरीक्षण जैसे कड़े मानदंड लागू किए जाने चाहिएं।
सुप्रीम कोर्ट ने इन प्रस्तुतियों को संज्ञान में लेते हुए कहा कि बार और बेंच के संबंधों में व्यावसायिक मर्यादा बनाए रखने और न्यायपालिका की गरिमा सुनिश्चित करने हेतु कुछ स्पष्ट दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है। इस मामले में न्यायालय से जल्द ही कुछ ठोस सुधारात्मक कदमों की अपेक्षा की जा रही है।