राज्यपाल और राष्ट्रपति की विधेयकों पर सहमति से जुड़ी शक्तियों पर राष्ट्रपति का संदर्भ 19 अगस्त से सुनेगा सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को घोषणा की कि वह 19 अगस्त 2025 से उस राष्ट्रपति के भेजे गए संदर्भ पर सुनवाई शुरू करेगा, जिसमें यह सवाल उठाया गया है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कितनी अवधि में निर्णय लेना चाहिए और उनकी शक्तियों की सीमा क्या है। इस मामले का शीर्षक है In Re: Assent, Withholding, or Reservation of Bills by the Governor and President of India, और इसे भारत के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिंहा और न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदूरकर की संविधान पीठ के समक्ष सुना जाएगा।

पृष्ठभूमि: अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति का संदर्भ

यह संदर्भ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत भेजा गया है, जो राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वे किसी विधिक प्रश्न या जनमहत्व के मामले पर सुप्रीम कोर्ट की सलाह प्राप्त करें।

यह संदर्भ सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल 2025 के उस निर्णय को चुनौती देता है जो तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर एक याचिका में दिया गया था। उस निर्णय में कोर्ट ने कहा था कि:

Video thumbnail
  • राज्यपालों को विधेयकों पर “उचित समय” में निर्णय लेना होगा, भले ही अनुच्छेद 200 में कोई समयसीमा निर्दिष्ट न हो।
  • राष्ट्रपति को अनुच्छेद 201 के तहत तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए, और किसी भी विलंब का कारण स्पष्ट रूप से राज्य को बताया जाना चाहिए।
  • राज्यपाल की निष्क्रियता न्यायिक समीक्षा के अधीन है, और यदि अनुचित विलंब हो तो “मानी गई सहमति” (deemed assent) लागू हो सकती है।
READ ALSO  पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को ड्रग मामले में वकील को फंसाने के लिए 20 साल की सजा

राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए इस संदर्भ में यह तर्क दिया गया है कि ये निर्देश न्यायिक समीक्षा की सीमाओं का अतिक्रमण हैं और यह न्यायिक विधायन (judicial legislation) का उदाहरण है।

सुनवाई की कार्यवाही: पहले विचारणीयता (Maintainability) पर सुनवाई

मंगलवार की सुनवाई के दौरान पीठ ने सभी पक्षों को 12 अगस्त तक लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा। कोर्ट ने कहा:

“पक्षकार अपनी लिखित दलीलें 12 अगस्त तक दाखिल करें। जो पक्ष इस संदर्भ का विरोध कर रहे हैं, उनके लिए हम सुश्री मिषा रोहतगी को नोडल वकील नियुक्त करते हैं।”

कोर्ट ने सुनवाई का कार्यक्रम इस प्रकार तय किया:

  • 19, 20, 21 और 26 अगस्त: संदर्भ का विरोध करने वाले पक्षों की सुनवाई।
  • 20 अगस्त, 2, 3 और 9 सितंबर: संदर्भ का समर्थन करने वाले पक्षों की सुनवाई।

पीठ ने यह स्पष्ट कर दिया कि सबसे पहले संदर्भ की विचारणीयता (maintainability) पर सुनवाई की जाएगी और निर्धारित कार्यक्रम का सख्ती से पालन होगा।

READ ALSO  यूपी के लोकप्रिय अस्पताल के 'लावारिस वार्ड' की 'दयनीय' स्थिति को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया

विरोध में राज्य: केरल और तमिलनाडु सबसे आगे

वरिष्ठ अधिवक्ता के. के. वेणुगोपाल, जो केरल राज्य की ओर से पेश हुए, ने संदर्भ की विचारणीयता पर सवाल उठाया:

“ऐसे कई आधार हैं जिन पर इसे वापस किया जा सकता है। हम इसकी विचारणीयता को चुनौती देते हैं।”

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जिन्होंने भी संदर्भ का विरोध किया, ने कहा:

“हमारी ओर से सुश्री मिषा रोहतगी नोडल काउंसल होंगी।”

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया:

“हमारी ओर से श्री अमन मेहता स्थायी वकील होंगे।”

केरल और तमिलनाडु ने विधिवत रूप से यह दलील दी है कि यह संदर्भ दरअसल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरुद्ध एक अपील है, जो कि कानूनन अनुमन्य नहीं है। उनका तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट अपने ही निर्णय की पुनरावृत्ति नहीं कर सकता, इसलिए यह संदर्भ उत्तर दिए बिना वापस कर दिया जाना चाहिए।

तमिलनाडु ने विशेष रूप से कहा है कि यह संदर्भ कोई ठोस कानूनी आधार पेश किए बिना, अदालत के पूर्व निर्णय को फिर से खोलने और पलटने का प्रयास है, जबकि केरल ने एक विधिवत आवेदन दाखिल कर इस संदर्भ को अविचारणीय (non-maintainable) घोषित करने की मांग की है।

READ ALSO  झारखंड हाईकोर्ट ने त्योहारों के दौरान बिना योजना के बिजली कटौती पर लिया स्वत: संज्ञान

मुख्य विधिक प्रश्न जो इस संदर्भ में उठाए गए हैं

इस राष्ट्रपति के संदर्भ में 14 महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए गए हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

  • क्या सुप्रीम कोर्ट संविधान में समय-सीमा न होते हुए भी सहमति देने की समय-सीमा निर्धारित कर सकता है?
  • क्या ऐसे निर्देश कार्यपालिका के क्षेत्र में न्यायिक हस्तक्षेप (judicial overreach) के अंतर्गत आते हैं?
  • क्या “मानी गई सहमति” (deemed assent) की अवधारणा संविधान में किसी भी रूप में मौजूद है?
  • क्या समय-सीमा संबंधी न्यायिक निर्देश विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति संतुलन को प्रभावित करते हैं?

राष्ट्रपति का यह तर्क है कि तमिलनाडु फैसले में दिए गए निर्देश संविधानिक संतुलन को बिगाड़ते हैं और न्यायपालिका को वह विधायी शक्ति प्रदान करते हैं जो संविधान निर्माताओं की मंशा के अनुरूप नहीं है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles