सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जग्गी वासुदेव की अगुवाई वाले ईशा फाउंडेशन को उसके उस अनुरोध के लिए दिल्ली हाईकोर्ट से संपर्क करने को कहा, जिसमें तमिल मीडिया आउटलेट नक्कीरन पब्लिकेशंस को कथित मानहानिकारक सामग्री के प्रकाशन से रोकने की मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने नक्कीरन को उसकी ट्रांसफर याचिका वापस लेने की अनुमति भी दे दी, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित मानहानि मामले को चेन्नई स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रकाशन द्वारा ट्रांसफर के लिए दिए गए आधार दरअसल उस मुकदमे की स्वीकार्यता (maintainability) से जुड़े तर्क हैं, जिन्हें हाईकोर्ट में ही उठाया जाना चाहिए।
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि चूंकि ट्रांसफर याचिका वापस ले ली गई है, इसलिए ईशा फाउंडेशन द्वारा उसमें दायर किया गया हस्तक्षेप आवेदन भी अब हाईकोर्ट में सुना जाएगा।

ईशा फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि नक्कीरन ने हाल ही में फाउंडेशन पर अंग व्यापार (organ trade) में लिप्त होने का भी आरोप लगाया है। उन्होंने कहा, “हम एक प्रतिष्ठित संस्था हैं और हमारे दुनियाभर में लाखों अनुयायी हैं। इस तरह का अभियान लगातार नहीं चल सकता।”
रोहतगी ने कहा कि सोशल मीडिया के इस युग में इस तरह की सामग्री बार-बार वायरल होती है, जिससे संगठन की छवि को गंभीर नुकसान पहुंचता है। “हमारा आवेदन यह है कि इस मानहानिकारक अभियान को रोका जाए… हम एक चैरिटेबल संस्था हैं जिसके अनुयायी पूरी दुनिया में हैं।”
नक्कीरन पब्लिकेशंस की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आर बालासुब्रमण्यम ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के बाद ट्रांसफर याचिका वापस लेने पर सहमति जताई।
गौरतलब है कि ईशा फाउंडेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में नक्कीरन के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था, जिसमें दावा किया गया था कि प्रकाशन द्वारा प्रसारित कुछ सामग्री ने संस्था की छवि को नुकसान पहुंचाया है और इसके लिए हर्जाना भी मांगा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 16 जुलाई को फाउंडेशन की उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई थी, जिसमें नक्कीरन को आगे कोई भी कथित मानहानिकारक सामग्री प्रकाशित करने से रोकने की मांग की गई थी। हालांकि, सोमवार को शीर्ष अदालत ने दोनों पक्षों को निर्देश दिया कि वे अब अपनी कानूनी लड़ाई दिल्ली हाईकोर्ट में ही जारी रखें।