सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फ़ैसले में ओडिशा हाईकोर्ट को अधिवक्ताओं को स्व-संज्ञान (suo motu) लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate) नामित करने की शक्ति को बहाल कर दिया। इससे पहले, 2019 में हाईकोर्ट ने खुद अपने बनाए नियम 6(9) को रद्द कर दिया था, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने वैध ठहराया है।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि जितेंद्र @ कला बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य (2024) मामले में पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि यदि वरिष्ठ अधिवक्ता नामांकन का स्व-संज्ञान का प्रयोग निष्पक्षता, पारदर्शिता और वस्तुनिष्ठता के सिद्धांतों के अनुसार किया जाता है, तो यह संविधान-सम्मत है।
मामला 2019 का है, जब ओडिशा हाईकोर्ट ने अपने नियमों के तहत पाँच अधिवक्ताओं को स्व-संज्ञान लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया था। इस निर्णय को चार अन्य अधिवक्ताओं ने हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिन्होंने तर्क दिया कि इंदिरा जयसिंग बनाम भारत का सर्वोच्च न्यायालय मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केवल दो तरीक़ों — या तो अधिवक्ता का आवेदन या न्यायाधीश का लिखित प्रस्ताव — से ही वरिष्ठ अधिवक्ता नामांकन की अनुमति दी थी।

मई 2021 में ओडिशा हाईकोर्ट ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए नियम 6(9) को रद्द कर दिया, लेकिन साथ ही यह भी माना कि जिन पाँच अधिवक्ताओं को नामित किया गया था, उनकी कोई गलती नहीं थी, इसलिए उनके नामांकन को अस्थायी रूप से बनाए रखा गया।
अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि नियम 6(9) तब तक वैध रहेगा, जब तक हाईकोर्ट स्वयं नए नियम अधिसूचित न कर दे। साथ ही 2019 में जिन पाँच अधिवक्ताओं को वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा दिया गया था, उनका नामांकन भी पूरी तरह वैध रहेगा।
मुख्य बिंदु:
- सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा हाईकोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता नामांकन की स्व-संज्ञान शक्ति को सही ठहराया।
- हाईकोर्ट ऑफ ओडिशा (वरिष्ठ अधिवक्ता नामांकन) नियम, 2019 का नियम 6(9) वैध घोषित।
- 2019 में पाँच अधिवक्ताओं को दिया गया वरिष्ठ अधिवक्ता दर्जा बरक़रार रहेगा।
- जितेंद्र @ कला मामले में तय किए गए निष्पक्षता और पारदर्शिता के मानकों को दोहराया।