सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार की उस नई व्यवस्था को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर खाद्य विक्रेताओं को क्यूआर कोड और मालिक की पहचान सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह व्यवस्था पहले से स्थगित नीति को पुनर्जीवित करती है और भेदभावपूर्ण प्रोफाइलिंग का खतरा उत्पन्न करती है।
यह याचिका शिक्षाविद् अपूर्वानंद झा द्वारा दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार का यह नया निर्देश सुप्रीम कोर्ट के 22 जुलाई 2024 को दिए गए अंतरिम आदेश का उल्लंघन करता है। उस आदेश में यह कहा गया था कि खाद्य विक्रेताओं से उनका नाम और धार्मिक पहचान उजागर करने की बाध्यता खाद्य सुरक्षा कानूनों के तहत वैधानिक नहीं है और यह निजता के अधिकार का हनन है।
इस याचिका पर सुनवाई जस्टिस एम.एम. सुंदरेश की अध्यक्षता वाली पीठ 15 जुलाई को करेगी।

झा की ओर से अधिवक्ता आकृति चौबे ने प्रस्तुत किया कि यूपी प्रशासन ने 25 जून को जारी प्रेस विज्ञप्ति में ‘फूड सेफ्टी कनेक्ट ऐप’ से जुड़े क्यूआर कोड आधारित लाइसेंस के ज़रिए इस व्यवस्था को फिर से लागू कर दिया है। ये क्यूआर कोड जहां यात्रियों को साफ-सफाई प्रमाण पत्र जांचने और शिकायत दर्ज करने का विकल्प देते हैं, वहीं दुकान मालिकों के नाम सार्वजनिक कर देते हैं, जिससे याचिकाकर्ता के अनुसार विक्रेताओं को सांप्रदायिक लक्षित हिंसा का खतरा हो सकता है।
याचिका में कहा गया है कि यह निर्देश ‘जन सुरक्षा और कानून-व्यवस्था’ के नाम पर लागू किया जा रहा है, जबकि इसका कोई वैधानिक आधार फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट, 2006 के तहत नहीं है। इसके अलावा, यह छोटे दुकानदारों, ढाबा और रेस्टोरेंट मालिकों की निजता का गंभीर उल्लंघन करता है, खासकर तब जब उनकी जातीय या धार्मिक पहचान उजागर हो जाती है।
याचिका में कहा गया है, “ये अस्पष्ट और व्यापक निर्देश राज्य प्राधिकरणों या निगरानी करने वाले समूहों द्वारा मनमानी और संभावित रूप से हिंसक कार्रवाई का रास्ता खोल सकते हैं।” कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि वह इस निर्देश पर तत्काल रोक लगाए।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष भी यूपी और उत्तराखंड सरकारों ने कांवड़ यात्रा के दौरान खाने की दुकानों पर मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करना अनिवार्य किया था। इस कदम को अपूर्वानंद झा, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और असोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
राज्य सरकारों ने इस नीति को खाद्य सुरक्षा कानून के तहत पारदर्शिता सुनिश्चित करने वाला कदम बताते हुए इसका बचाव किया था। उन्होंने तर्क दिया था कि यह व्यवस्था कांवड़ियों को उनके धार्मिक आहार संबंधी नियमों के मद्देनज़र सूचित निर्णय लेने में सहायक है। यूपी सरकार ने हलफनामे में कहा था कि यह निर्देश सभी विक्रेताओं पर समान रूप से लागू होता है, धर्म-निरपेक्ष है, और केवल यात्रा मार्ग तक सीमित है।
राज्य सरकार ने यह भी कहा था कि यह अस्थायी उपाय है, जिससे विक्रेताओं को कोई दीर्घकालिक नुकसान नहीं होगा।
अब सुप्रीम कोर्ट यह विचार करेगा कि क्या यह पुनः लागू की गई क्यूआर कोड व्यवस्था उसके पूर्व आदेशों को दरकिनार कर संविधान प्रदत्त निजता और समानता के अधिकार को कमजोर करती है।