संविदा कर्मचारियों को सेवा विस्तार या बहाली का कोई वैधानिक अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने आयुष्मान भारत–प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) के तहत संविदा पर नियुक्त आरोग्य मित्रों की सेवा बहाली की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि संविदा पर नियुक्त कर्मचारियों को सेवा नवीनीकरण या निरंतरता की कोई संवैधानिक या वैधानिक गारंटी प्राप्त नहीं होती, विशेषकर जब संबंधित सरकारी योजना में संरचनात्मक बदलाव किया जा चुका हो।

यह निर्णय WRIT-A No. 6678 of 2023: संजय कुमार चौरसिया एवं 36 अन्य बनाम राज्य उत्तर प्रदेश व अन्य और उससे जुड़ी कुल नौ रिट याचिकाओं में सुनाया गया।

मामले की पृष्ठभूमि:

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याचिकाकर्ता वर्ष 2017-2018 में जिला स्वास्थ्य समितियों द्वारा संविदा आधार पर ‘आरोग्य मित्र’ पद पर नियुक्त किए गए थे। बाद में इन्हें केंद्र सरकार की AB-PMJAY योजना के अंतर्गत तैनात किया गया। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उनकी सेवाएं समाप्त किए बिना आउटसोर्सिंग एजेंसी के माध्यम से नए लोगों की नियुक्ति की जा रही है, जो अनुचित है।

22 अगस्त 2023 को SACHIS (State Agency for Comprehensive Health and Integrated Services) के CEO द्वारा सभी जिलाधिकारियों को निर्देश जारी किया गया कि सभी आरोग्य मित्र अब केवल लाभार्थी सुविधा एजेंसी (Beneficiary Facilitation Agency – BFA) के माध्यम से ही नियुक्त किए जाएंगे। इस आदेश को याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी।

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याचिकाकर्ताओं की दलीलें:

  • याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि वे लगातार कार्यरत हैं और उन्हें मानदेय का भुगतान किया जा रहा है।
  • उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें सेवा समाप्ति का कोई स्पष्ट आदेश नहीं दिया गया है।
  • आउटसोर्सिंग व्यवस्था के तहत उन्हें हटाया जाना मनमाना और अनुचित है, जबकि उनकी नियुक्ति में कोई अनियमितता नहीं है।

प्रतिवादी पक्ष की दलीलें:

राज्य स्वास्थ्य एजेंसी (SACHIS) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री उपेन्द्र नाथ मिश्रा, श्री मधुकर ओझा के साथ पेश हुए और उन्होंने कहा:

  • AB-PMJAY योजना में केंद्र सरकार द्वारा संरचनात्मक बदलाव किया गया है।
  • अब आरोग्य मित्रों की नियुक्ति केवल BFA के माध्यम से होगी; उत्तर प्रदेश के लिए Writer Business Services Pvt. Ltd. को अधिकृत एजेंसी नियुक्त किया गया है।
  • याचिकाकर्ताओं ने अनुबंध की नवीनीकरण संबंधी कोई वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए और तथ्यों को छिपाकर अंतरिम राहत प्राप्त की।
  • अब आरोग्य मित्रों को भुगतान भी सीधे सरकारी निधियों से नहीं बल्कि BFA के माध्यम से ही किया जाएगा।
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अदालत का विश्लेषण:

न्यायालय ने कहा कि:

  • याचिकाकर्ता अपने अनुबंध के नवीनीकरण के कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सके।
  • उन्होंने अनुबंध की निरंतरता को लेकर गलत जानकारी देकर अंतरिम आदेश प्राप्त किया।
  • अब योजना के तहत नियुक्ति का तरीका बदल चुका है और BFA के माध्यम से ही नई नियुक्तियां की जा रही हैं।

न्यायालय ने Yogesh Mahajan v. AIIMS [(2018) 3 SCC 218], GRIDCO Ltd. v. Sadananda Doloi [(2011) 15 SCC 16], तथा Pushpa Srivastava v. Institute of Management Development [(1992) 4 SCC 33] जैसे सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा:

“संविदा पर नियुक्त किसी भी कर्मचारी को यह अधिकार प्राप्त नहीं कि उसका अनुबंध अनिवार्य रूप से नवीनीकृत किया जाए; संविदा केवल तय शर्तों और समयसीमा तक ही सीमित रहती है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि नीति के तहत की गई आउटसोर्सिंग व्यवस्था न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं आती, जब तक वह स्पष्ट रूप से असंवैधानिक न हो। इस संबंध में State of U.P. v. Principal, Abhay Nandan Inter College [(2021) 15 SCC 600] का भी हवाला दिया गया।

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अंतिम निर्णय:

अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा:

“जब संविदा का नवीनीकरण नहीं हुआ है और नई नीति प्रभावी हो चुकी है, ऐसे में संविदा कर्मचारियों को सेवा जारी रखने या नवीनीकरण का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।”

इस आधार पर सभी याचिकाएं खारिज कर दी गईं और पूर्व में दिए गए अंतरिम आदेश रद्द कर दिए गए। हालांकि कोर्ट ने यह निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को जो मानदेय पूर्व के अंतरिम आदेशों के तहत प्राप्त हुआ है, उसकी वसूली नहीं की जाएगी क्योंकि उन्होंने उस अवधि में कार्य किया है।


मामले का शीर्षक: संजय कुमार चौरसिया एवं अन्य बनाम राज्य उत्तर प्रदेश एवं अन्य व संबद्ध याचिकाएं
याचिका संख्या: WRIT-A No. 6678 of 2023 और अन्य

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