दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को पूर्वी दिल्ली में सीवेज मिला दूषित पानी आपूर्ति करने को लेकर दिल्ली जल बोर्ड (DJB) को कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने पूछा कि जब तक कोई नागरिक अदालत का दरवाज़ा न खटखटाए, क्या तब तक आप कुछ नहीं करेंगे? क्या आप इस शहर के नागरिकों से सीवर मिला पानी पीने की उम्मीद कर रहे हैं?
मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की पीठ अधिवक्ता ध्रुव गुप्ता द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में आरोप लगाया गया कि योजना विहार, आनंद विहार, जागृति एनक्लेव और आसपास के क्षेत्रों में लोगों को घरों की नलों से अत्यंत दूषित पेयजल मिल रहा है, जिसमें सीवर के अंश शामिल हैं।
पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, “जब तक कोई अदालत का दरवाज़ा नहीं खटखटाता, आप खुद कोई कार्रवाई नहीं करते? आप इस शहर के नागरिकों को सीवर मिला पानी पीने को कह रहे हैं?”

इससे पहले, 2 जुलाई को हाईकोर्ट ने DJB को याचिका में उल्लिखित क्षेत्रों का निरीक्षण करने का निर्देश दिया था। शुक्रवार को DJB ने अदालत में स्थिति रिपोर्ट दायर कर बताया कि योजना विहार क्षेत्र में जल आपूर्ति पाइपलाइनें 35 साल पहले डाली गई थीं और अब उनकी आयु समाप्त हो चुकी है। बोर्ड ने स्वीकार किया कि पुरानी और क्षतिग्रस्त पाइपलाइनों के कारण पानी दूषित हो रहा है और इन्हें तत्काल बदले जाने की आवश्यकता है।
DJB ने अदालत को सूचित किया कि पाइपलाइन बदलने की निविदा 7 जुलाई तक जारी की जाएगी और 17 जुलाई तक ठेका आवंटित कर दिया जाएगा। काम ठेका मिलने के 20 दिनों के भीतर पूरा करने की योजना है। हालांकि, अदालत ने अंतिम समयसीमा बढ़ाकर अगस्त 2025 तक तय की और चेतावनी दी कि देरी को गंभीरता से लिया जाएगा।
सीवेज ट्रीटमेंट के मुद्दे पर DJB ने बताया कि सिल्ट हटाने का कार्य जारी है और अगस्त तक पूरा कर लिया जाएगा। साथ ही, बोर्ड ने आश्वासन दिया कि प्रभावित क्षेत्र में संपूर्ण जल वितरण प्रणाली को प्राथमिकता के आधार पर बदला जाएगा, बशर्ते धनराशि उपलब्ध हो।
इसके अतिरिक्त, अदालत ने DJB को संपूर्ण जल नेटवर्क बदलने की विस्तृत समयरेखा के साथ एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। अदालत ने गैर-कानूनी बूस्टर पंपों के उपयोग पर भी चिंता जताई और जलापूर्ति के निर्धारित समय के बाहर उनके उपयोग पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 13 अगस्त को होगी।
याचिका में कहा गया था कि दूषित पानी के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है और नागरिक एजेंसियों की निष्क्रियता के चलते अदालत को हस्तक्षेप करना आवश्यक हो गया है।