सुप्रीम कोर्ट ने एक हत्या के मामले में आरोपी की बरी होने के खिलाफ राजस्थान सरकार की अपील खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया है कि केवल उस हथियार की बरामदगी, जिस पर खून लगा हो और वह मृतक के रक्त समूह से मेल खाता हो, आरोप सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा दी गई आरोपी की बरी की गई सजा को सही ठहराया।
पृष्ठभूमि
यह मामला 1 और 2 मार्च 2007 की मध्यरात्रि को चोतू लाल की हत्या से संबंधित है। इस मामले में प्रारंभ में अज्ञात व्यक्तियों के विरुद्ध एफआईआर संख्या 37/2007 दर्ज की गई थी। बाद में संदेह और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर आरोपी हनुमान को नामजद किया गया।
अभियोजन की ओर से यह आरोप लगाया गया कि आरोपी की मृतक की पत्नी पर बुरी नजर थी, जिसे हत्या का कारण (मकसद) बताया गया। अभियोजन ने यह भी दावा किया कि आरोपी के कब्जे से हत्या में प्रयुक्त हथियार बरामद हुआ और फॉरेंसिक रिपोर्ट के अनुसार उस पर लगा खून मृतक के रक्त समूह (B+ve) से मेल खाता था।

निचली अदालत (अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक कोर्ट, कोटा) ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई और ₹100 का जुर्माना लगाया, जिसे अदा न करने की स्थिति में 3 माह की सादी कैद भी निर्धारित की गई।
हाईकोर्ट का निर्णय
आरोपी ने इस सजा के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट में अपील की थी। हाईकोर्ट ने 15 मई 2015 को अपने निर्णय (क्रिमिनल अपील संख्या 788 / 2009) में माना कि अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की पूर्ण श्रृंखला स्थापित करने में असफल रहा और इस आधार पर आरोपी को बरी कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
राजस्थान राज्य की ओर से दलील दी गई कि हाईकोर्ट ने एफएसएल रिपोर्ट और हथियार की बरामदगी को पर्याप्त महत्व नहीं दिया। किंतु सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले शामिल थे, ने इस दलील को अस्वीकार करते हुए कहा:
“अभियोजन द्वारा प्रस्तुत परिस्थितिजन्य साक्ष्य, जैसे कि मकसद और खून लगे हथियार की बरामदगी, यदि संयुक्त रूप से भी देखें तो भी वे अभियुक्त के विरुद्ध दोष सिद्ध करने के लिए आवश्यक पूर्ण श्रृंखला स्थापित नहीं करते।”
एफएसएल रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा:
“यदि एफएसएल रिपोर्ट को भी मान लें, तो भी यह तथ्य छोड़कर कि अभियुक्त के कहने पर बरामद हथियार पर लगा खून मृतक के रक्त समूह (B+ve) से मेल खाता है, उसके अतिरिक्त इस रिपोर्ट से कोई विशेष लाभ अभियोजन पक्ष को नहीं मिलता।”
कोर्ट ने राजा नायक बनाम छत्तीसगढ़ राज्य [(2024) 3 SCC 481] के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि:
“केवल खून लगे हथियार की बरामदगी, जो मृतक के ब्लड ग्रुप से मेल खाती हो, हत्या के आरोप को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है।”
जहां तक मकसद का प्रश्न है, कोर्ट ने कहा कि:
“इस संबंध में प्रस्तुत साक्ष्य अत्यंत अस्पष्ट और अस्थिर प्रतीत होते हैं।”
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि किसी आरोपी की बरी किए गए निर्णय में तभी हस्तक्षेप किया जा सकता है जब प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर एकमात्र संभावित निष्कर्ष उसकी दोषसिद्धि हो। कोर्ट ने कहा:
“हम इस बात से संतुष्ट हैं कि अभियोजन पक्ष ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा। एकमात्र संभव निष्कर्ष वही है जो हाईकोर्ट ने निकाला है — अभियुक्त की निर्दोषता।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट का निर्णय किसी भी प्रकार की त्रुटि से ग्रस्त नहीं है और उस पर हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं बनता। अतः राज्य सरकार की अपील को बिना किसी राहत के खारिज कर दिया गया। साथ ही, सभी लंबित आवेदनों का भी निपटारा कर दिया गया।
मामला: राजस्थान राज्य बनाम हनुमान
क्रिमिनल अपील संख्या: 631 / 2017