बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि केवल इस आधार पर कि पत्नी कमाती है, उसे उसके अलग रह रहे पति से आर्थिक सहायता से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि पत्नी को वैसा ही जीवनस्तर बनाए रखने का अधिकार है जैसा वह वैवाहिक जीवन के दौरान जी रही थी।
न्यायमूर्ति मंजुषा देशपांडे ने 18 जून को पारित अपने आदेश (जो गुरुवार को सार्वजनिक हुआ) में उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें एक व्यक्ति ने अगस्त 2023 के फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। फैमिली कोर्ट ने उसे अपनी पत्नी को प्रति माह ₹15,000 का भरण-पोषण देने का निर्देश दिया था।
पति का तर्क था कि उसकी पत्नी स्वयं ₹25,000 से अधिक मासिक वेतन कमा रही है, इसलिए उसे किसी अतिरिक्त आर्थिक सहायता की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि पत्नी की आय इतनी नहीं है कि वह एक सम्मानजनक जीवनस्तर बनाए रख सके, विशेषकर तब जब वह रोज़ लंबी दूरी तय कर नौकरी पर जाती है।

कोर्ट ने कहा, “सिर्फ इसलिए कि पत्नी कमाती है, उसे उस जीवनस्तर के अनुरूप अपने पति से समर्थन से वंचित नहीं किया जा सकता, जो वह वैवाहिक घर में पाने की अभ्यस्त रही है।”
न्यायमूर्ति देशपांडे ने पति-पत्नी के बीच आर्थिक असमानता पर भी ध्यान दिलाया। पति ने जहां अपनी सीमित आय और अपने वृद्ध माता-पिता की देखभाल का हवाला दिया, वहीं कोर्ट ने पाया कि वह ₹1 लाख से अधिक प्रति माह कमा रहा है। साथ ही, उसके माता-पिता उस पर निर्भर नहीं हैं, क्योंकि उसके पिता को ₹28,000 मासिक पेंशन मिलती है।
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि पत्नी फिलहाल अपने माता-पिता और भाई के साथ रह रही है, लेकिन उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अनिश्चितकाल तक वहीं रहे, क्योंकि इससे उसके और उसके परिवार के लिए कठिनाई उत्पन्न हो सकती है।