छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के एक कांस्टेबल द्वारा वर्ष 2017 में अपने ही शिविर में चार सहकर्मियों की हत्या और एक को घायल करने के मामले में दोषसिद्धि को बरकरार रखा है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि घायल प्रत्यक्षदर्शी की गवाही का उच्च साक्ष्यीय मूल्य होता है और जब तक उसमें कोई स्पष्ट और गंभीर विरोधाभास न हो, उसे खारिज नहीं किया जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने आरोपी संत कुमार द्वारा दायर आपराधिक अपील (CRA No. 1950 of 2024) को खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया जिसमें उन्हें IPC की धारा 302 (चार बार), धारा 307 तथा आर्म्स एक्ट की धाराओं 25(1B)(a) और 27(1) के तहत दोषी ठहराया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह घटना 9 दिसंबर 2017 को लगभग शाम 4:30 बजे बीजापुर जिले के बसागुड़ा स्थित CRPF की 168वीं बटालियन कैंप में हुई थी। आरोपी संत कुमार पर आरोप था कि उसने अपनी सेवा राइफल से अपने ही चार सहकर्मियों—उप निरीक्षक विक्की शर्मा, उप निरीक्षक मेघ सिंह, सहायक उप निरीक्षक राजवीर सिंह और कांस्टेबल शंकर राव गंथा—की गोली मारकर हत्या कर दी थी और एएसआई गजानंद शर्मा को घायल कर दिया था।

एएसआई राजेश्वर दुबे (PW-1) द्वारा दी गई लिखित सूचना के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सभी मृतकों की मृत्यु का कारण गोली लगने से हुआ रक्तस्रावी शॉक बताया गया।
दलीलें और बहस
अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीमती फौज़िया मिर्ज़ा ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने यह नहीं देखा कि घटनास्थल पर जिस AK-47 से गोलीबारी हुई, वह राइफल आरोपी को विभाग द्वारा आवंटित नहीं की गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि कोई बैलेस्टिक रिपोर्ट नहीं है जिससे यह सिद्ध हो सके कि गोली उसी राइफल से चली थी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि घटना किसी पूर्वनियोजित योजना के तहत नहीं बल्कि अवकाश न मिलने के कारण तनाव में हुई, और मामला अधिकतम धारा 304 के तहत गिरता है।
राज्य की ओर से उप महाधिवक्ता श्री शशांक ठाकुर ने दलील दी कि अभियोजन ने पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं, जिनमें घायल प्रत्यक्षदर्शी और अन्य CRPF कर्मियों की गवाही शामिल है। उन्होंने कहा कि यह एक पूर्वनियोजित हमला था और ट्रायल कोर्ट का निर्णय पूरी तरह उचित है।
हाईकोर्ट के महत्वपूर्ण अवलोकन
कोर्ट ने कहा:
“घायल प्रत्यक्षदर्शी की शपथपूर्वक गवाही का उच्च साक्ष्यीय मूल्य होता है। जब तक उसमें कोई स्पष्ट और गंभीर विरोधाभास न हो, ऐसी गवाही को अविश्वसनीय नहीं कहा जा सकता।”
कोर्ट ने एएसआई गजानंद शर्मा (PW-7) की गवाही को भरोसेमंद माना, जिन्होंने तीन गोलियां लगने के बावजूद यह गवाही दी कि उन्होंने आरोपी को अधिकारियों पर गोली चलाते हुए देखा था।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Balu Sudam Khalde v. State of Maharashtra (2023 SCC OnLine SC 355) का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि घायल गवाह की गवाही को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी द्वारा पहले किसी कथित फर्जी मुठभेड़ पर आपत्ति जताने के चलते उसे झूठा फंसाने का दावा निराधार है। कोई नक्सली हमला नहीं हुआ था, यह गवाहों की गवाही और सबूतों से स्पष्ट था। कोर्ट ने यह भी कहा कि छुट्टी न मिलने और ड्यूटी आवंटन को लेकर नाराजगी ही हमले की पृष्ठभूमि थी।
निष्कर्ष
कोर्ट ने कहा:
“एक सुरक्षाबल के सदस्य होने के नाते आरोपी पर अपने सहकर्मियों की सुरक्षा का दायित्व था। दो स्वचालित राइफलों से अंधाधुंध गोली चलाना किसी भी परिस्थिति में IPC की धारा 304 के तहत नहीं आ सकता।”
कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने संदेह से परे मामला सिद्ध किया है और ट्रायल कोर्ट ने दोषसिद्धि में कोई कानूनी या तथ्यात्मक त्रुटि नहीं की। अपील को खारिज कर दिया गया और ट्रायल कोर्ट का दिनांक 27.08.2024 का निर्णय बरकरार रखा गया।
मामले का विवरण:
मामला: संत कुमार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य
मामला संख्या: CRA No. 1950 of 2024
पीठ: मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा एवं न्यायमूर्ति विभु दत्ता गुरु