बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत दर्ज एक मामले में आरोपी पति और उसके परिजनों के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि विवाह के महज दो दिन बाद ₹20 लाख की दहेज मांगने और हत्या की धमकी देने के आरोप “अतिरंजित और अविश्वसनीय” प्रतीत होते हैं।
यह आदेश न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और न्यायमूर्ति संजय ए. देशमुख की खंडपीठ ने क्रिमिनल एप्लीकेशन नं. 53 ऑफ 2025 में पारित किया, जो अजॉय राजेंद्र खरे और उनके पांच परिजनों द्वारा एफआईआर नं. 291/2024 (दिनांक 31.07.2024, विमंतल थाना, नांदेड़) से उत्पन्न कार्यवाही को रद्द करने के लिए दायर की गई थी।
मामला क्या था?
एफआईआर आवेदक संख्या 1 की पत्नी (प्रत्यर्थी संख्या 3) द्वारा दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप था कि 28 जनवरी 2024 को विवाह के बाद से ही उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया, उसके साथ मारपीट की गई और मानसिक उत्पीड़न किया गया।

शिकायत में आरोप लगाया गया कि विवाह के दो दिन के भीतर ₹20,00,000 की मांग की गई, और ससुराल पक्ष के कई सदस्यों द्वारा उसे जान से मारने की धमकी दी गई। आरोप यह भी था कि विवाह के दो महीनों के भीतर उसे ससुराल से निकाल दिया गया। मामले में IPC की धारा 498A, 323, 504, 506 व 34 के तहत आरोप दर्ज किए गए थे।
हाईकोर्ट का विश्लेषण
कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता ने कई महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया, जैसे कि वह एक वरिष्ठ कार्यकारी पद पर कार्यरत चिकित्सा व्यवसायी हैं। साथ ही, उसने जो घटनाओं की श्रृंखला बताई थी, उसमें गंभीर विसंगतियां थीं — विशेष रूप से यह कि सभी आरोपी एक ही स्थान पर रहते थे या नहीं।
कोर्ट ने विवाह के बाद पति-पत्नी के सहवास की समयरेखा का संदर्भ लेते हुए कहा:
“यह विश्वास करना कठिन है कि विवाह के केवल दो दिन बाद ही शिकायतकर्ता की ननद ने कहा कि तकिए से मुंह दबाकर उसकी हत्या कर दी जाए और आवेदक नं.1 का दूसरा विवाह करा दिया जाए।”
“यह तथ्य चौंकाने वाला है कि केवल दो दिनों में ही सास द्वारा ₹20,00,000/- की दहेज की मांग की गई।”
कोर्ट ने यह भी पाया कि कई आरोपियों के खिलाफ कोई विशिष्ट या प्रत्यक्ष भूमिका नहीं दर्शाई गई थी। एफआईआर में जिन रिश्तेदारों की उपस्थिति दिखाई गई थी, उनके निवास स्थान और रोजगार से संबंधित दस्तावेज़ी साक्ष्य कुछ और ही बताते थे।
जांच की आलोचना
कोर्ट ने पुलिस जांच को सतही और असावधानीपूर्वक बताया। विशेष रूप से यह इंगित किया कि जांच अधिकारी ने घटना स्थल के आसपास के स्वतंत्र गवाहों से कोई पुष्टि नहीं की:
“दिलचस्प बात यह है कि 01.04.2024 को उसने प्रत्यार्थी नं.3 के पिता के घर (नांदेड़) का पंचनामा दो स्थानीय व्यक्तियों की मदद से किया। इससे स्पष्ट होता है कि अब पुलिस भी धारा 498A के मामलों में उचित सतर्कता और निष्पक्ष जांच नहीं कर रही है।”
कोर्ट की टिप्पणी और निर्णय
पीठ ने इस मामले को भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के “दुरुपयोग का क्लासिक उदाहरण” बताया:
“यह भारतीय दंड संहिता की धारा 498-A के दुरुपयोग का क्लासिक उदाहरण है।”
कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, नांदेड़ के समक्ष लंबित रेगुलर क्रिमिनल केस नं. 1306/2024 में आवेदकों के खिलाफ चल रही कार्यवाही को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने निष्कर्ष दिया कि इस मामले में आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” होगा।