एक अहम फैसले में जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह पाकिस्तानी नागरिक रक्षंदा राशिद की भारत में तत्काल वापसी सुनिश्चित करे। राशिद को 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत से निर्वासित कर दिया गया था। अदालत ने कहा कि महिला की चार दशकों से भारत में वैध दीर्घकालिक वीज़ा (LTV) पर निवास के बावजूद बिना विधिक आदेश या उचित जांच के निर्वासन किया गया, जो कि मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
न्यायमूर्ति राहुल भारती ने यह आदेश 6 जून को पारित किया था, जो हाल ही में सार्वजनिक हुआ। यह निर्देश रक्षंदा की बेटी द्वारा दायर याचिका पर दिया गया, जिसमें उन्होंने अपनी मां की बिगड़ती सेहत, पाकिस्तान में किसी पारिवारिक सहारे की कमी और जम्मू-कश्मीर निवासी उनके पति शेख़ ज़हूर अहमद से जबरन अलगाव के कारण हो रही मानसिक पीड़ा का हवाला दिया।
अदालत ने टिप्पणी की, “मानवाधिकार एक मानव जीवन का सबसे पवित्र और मूलभूत हिस्सा हैं।” कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधानिक अदालतों को कभी-कभी “एसओएस जैसी स्थितियों” में मामले की मेरिट से परे जाकर हस्तक्षेप करना पड़ता है, ताकि अपूरणीय क्षति को रोका जा सके।

अदालत ने यह भी माना कि रक्षंदा राशिद का दीर्घकालिक वीज़ा उस समय वैध था और किसी भी तरह की कार्रवाई से पहले उसे विधिक रूप से विचार किया जाना चाहिए था। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि उनका निर्वासन पहलगाम आतंकी हमले के बाद की सुरक्षा कार्रवाइयों के तहत किया गया प्रतीत होता है, जिसमें बैसरण में 26 लोगों की जान गई थी, जिनमें अधिकतर पर्यटक थे।
कोर्ट ने गृह मंत्रालय के सचिव को निर्देश दिया कि वे 10 दिनों के भीतर रक्षंदा राशिद की भारत वापसी और उनके पति के साथ पुनर्मिलन की प्रक्रिया पूरी करें। साथ ही सरकार को 1 जुलाई तक अनुपालन रिपोर्ट भी दाखिल करनी होगी।