वैवाहिक विवाद से जुड़ा आपराधिक मामला भी सरकारी कर्मचारी को सेवा से हटाने का पर्याप्त आधार: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने एक डेंटल असिस्टेंट की सेवा बहाल करने के आदेश को रद्द करते हुए यह स्पष्ट किया है कि वैवाहिक विवाद से संबंधित आपराधिक मामला भी तमिलनाडु सरकारी सेवक आचरण नियम, 1973 के तहत ‘दुराचार’ (misconduct) की श्रेणी में आता है और इसके आधार पर अनुबंधित कर्मचारी को सेवा से हटाया जा सकता है।

यह निर्णय न्यायमूर्ति एस.एम. सुब्रमण्यम और डॉ. न्यायमूर्ति ए.डी. मारिया क्लीट की खंडपीठ ने डब्ल्यू.ए. (एमडी) नं.182/2020 में 17 जून 2025 को सुनाया।

पृष्ठभूमि

उत्तरदाता के.एस. सुभा करुथुखन को रमानाथपुरम जिले के बोगालूर स्थित सरकारी उन्नत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डेंटल असिस्टेंट के पद पर एक वर्ष के लिए अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया गया था। इस अनुबंध को समय-समय पर नवीनीकृत किया गया।

बाद में, उनके विरुद्ध वैवाहिक विवाद से संबंधित एक आपराधिक मामला दर्ज हुआ, जिसके कारण 13 जुलाई 2017 को उन्हें सेवा से मुक्त कर दिया गया। उन्होंने इस सेवा समाप्ति को मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ में डब्ल्यूपी (एमडी) नं.248/2018 के तहत चुनौती दी थी। उस याचिका में एकलपीठ ने यह राय दी थी कि वैवाहिक विवाद से उत्पन्न आपराधिक मामला अनुबंध सेवा को समाप्त करने का आधार नहीं बन सकता और उन्हें बहाल करने का आदेश पारित किया।

न्यायालय का विश्लेषण

खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश को सही नहीं माना और यह कहा:

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“तमिलनाडु सरकारी सेवक आचरण नियम, 1973 के तहत वैवाहिक विवाद से जुड़ा मामला भी दुराचार माना जाता है और इस प्रकार के दुराचारों के लिए संबंधित विभाग विभागीय कार्रवाई करने के लिए अधिकृत हैं।”

अदालत ने यह भी कहा कि एक सार्वजनिक सेवक से अपेक्षा की जाती है कि वह कार्यालय के भीतर ही नहीं, बल्कि समाज में भी ईमानदारी, मर्यादा और अच्छा आचरण बनाए रखे।

पीठ ने यह विशेष रूप से रेखांकित किया कि संबंधित कर्मचारी एक नियमित नहीं बल्कि अनुबंधित कर्मचारी थे, और उनका अनुबंध 2017 में समाप्त हो चुका था। इसलिए, एकलपीठ का आदेश स्थापित विधिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है।

“उत्तरदाता अनुबंध पर नियुक्त थे और उनका अनुबंध अवधि पहले ही समाप्त हो चुकी थी… अतः एकलपीठ का आदेश विधिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है।”

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निर्णय

हाईकोर्ट ने डब्ल्यूपी (एमडी) नं.248/2018 में पारित दिनांक 1 फरवरी 2018 का आदेश रद्द करते हुए अपील स्वीकार कर ली। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी पक्ष पर कोई लागत नहीं डाली जाएगी और संबंधित अंतरिम याचिका को समाप्त किया जाता है।

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