मद्रास हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि विवाहिता महिला को पासपोर्ट के लिए अपने पति की अनुमति या हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं है। जस्टिस एन. आनंद वेंकटेश की एकल पीठ ने पासपोर्ट कार्यालय को निर्देश दिया कि वह महिला द्वारा दी गई पासपोर्ट आवेदन को स्वतंत्र रूप से प्रोसेस करे और पति की अनुमति की कोई शर्त न लगाए।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता एक विवाहिता महिला हैं जिनकी एक संतान है और वर्तमान में पति के साथ वैवाहिक विवाद चल रहा है। उनके पति ने तलाक के लिए अालंदुर की सब कोर्ट में याचिका दायर की हुई है जो विचाराधीन है।
महिला ने 24 अप्रैल 2025 को चेन्नई के रीजनल पासपोर्ट ऑफिस में पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था, लेकिन कार्यालय ने उनका आवेदन यह कहते हुए प्रोसेस नहीं किया कि उन्हें फॉर्म-J में पति का हस्ताक्षर देना होगा। पासपोर्ट कार्यालय ने उनके वैवाहिक विवाद का भी हवाला दिया। इसके विरुद्ध उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
अदालत की टिप्पणियां
कोर्ट ने इस शर्त की कड़ी आलोचना करते हुए कहा:
“एक पत्नी को पासपोर्ट के लिए आवेदन करने हेतु अपने पति की अनुमति लेना या उसका हस्ताक्षर प्राप्त करना आवश्यक नहीं है। दूसरी प्रतिवादी की यह शर्त यह दिखाती है कि समाज अब भी विवाहिता महिला को पति की संपत्ति मानता है।”
जस्टिस वेंकटेश ने आगे कहा कि जब पति-पत्नी के बीच संबंध पहले से ही बिगड़ चुके हैं, तो पति के हस्ताक्षर की मांग करना “असल में याचिकाकर्ता से एक असंभव कार्य की पूर्ति की अपेक्षा करना है।”
उन्होंने कहा:
“पति से विवाह करने के बाद भी महिला अपनी स्वतंत्र पहचान नहीं खोती। पत्नी को पासपोर्ट के लिए पति की अनुमति या हस्ताक्षर लेने की आवश्यकता नहीं है।”
न्यायालय ने ऐसी प्रथाओं को “पुरुष वर्चस्ववाद का उदाहरण” बताते हुए कहा कि यह महिला सशक्तिकरण की ओर बढ़ते समाज के लिए उचित नहीं है।
अंतिम आदेश
कोर्ट ने पासपोर्ट कार्यालय को निर्देश दिया कि यदि याचिकाकर्ता अन्य सभी आवश्यकताओं को पूरा करती हैं, तो उनके नाम से पासपोर्ट जारी किया जाए। यह कार्य आदेश की प्रति प्राप्त होने के चार सप्ताह के भीतर पूरा किया जाए।
कोर्ट ने याचिका को उपरोक्त निर्देशों के साथ निस्तारित कर दिया और पक्षों को किसी प्रकार की लागत नहीं दी।