धारा 370 आईपीसी के तहत मानव तस्करी के अपराध में केवल संदेह पर्याप्त नहीं; शोषण से संबंधित ठोस साक्ष्य के अभाव में अभियोजन अस्थिर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने विशेष न्यायाधीश (एनआईए अधिनियम), बिलासपुर द्वारा भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत दोषसिद्ध तीन व्यक्तियों — मोहम्मद सिराज, सरिता डेविड और विपाशा डेविड — को बरी कर दिया है। न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में असफल रहा, विशेषकर धारा 370 आईपीसी के अंतर्गत ‘शोषण’ से संबंधित अनिवार्य तत्व सिद्ध नहीं हो सके।

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने यह निर्णय CRA संख्या 2176/2024 एवं 90/2025 में पारित किया, जो विशेष वाद (एनआईए) संख्या 55/2024 में पारित 27.11.2024 के निर्णय और सजा के विरुद्ध दायर की गई थीं।

मामले की पृष्ठभूमि

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प्रकरण के अनुसार, 29 नवम्बर 2022 को नाबालिग पीड़िता (PW-1) को आरोपी विपाशा डेविड और मोहम्मद सिराज उसके घर से यह कहकर ले गए कि विपाशा के भाई का जन्मदिन है। आरोप है कि बाद में आरोपी सरिता डेविड और विपाशा डेविड ने उसे नशीला पदार्थ मिलाकर रस में पिलाया, जिससे वह बेहोश हो गई और उसके साथ एक अज्ञात युवक ने दुष्कर्म किया। पीड़िता 1 दिसम्बर को अपने घर लौटी और परिजनों को घटना की जानकारी दी।

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इस आधार पर आरोपियों के विरुद्ध आईपीसी की धारा 363, 366A, 328, 342, 370 तथा धारा 376-DA और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत मामला दर्ज हुआ। ट्रायल कोर्ट ने मोहम्मद सिराज को दुष्कर्म के आरोप से दोषमुक्त किया लेकिन अन्य सभी धाराओं में तीनों को दोषी ठहराया।

पक्षकारों की दलीलें

अपीलकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता श्री अजय चंद्रा (CRA 2176/2024) एवं श्री पल्लव मिश्रा (CRA 90/2025) ने तर्क दिया कि अभियोजन यह सिद्ध नहीं कर सका कि पीड़िता घटना के समय 18 वर्ष से कम आयु की थी और यह कि वह स्वयं स्वेच्छा से विपाशा के साथ गई थी। कोई शोषण या मानव तस्करी का साक्ष्य नहीं है और सजा केवल पीड़िता व उसके माता-पिता के कथनों पर आधारित है।

राज्य की ओर से पैनल वकील श्री मलय जैन ने प्रतिवाद किया कि पीड़िता की जन्मतिथि स्कूल रिकॉर्ड (Ex. P-19C) के अनुसार 08.04.2009 है। उन्होंने यह भी कहा कि उसे नशीला पदार्थ पिलाकर जबरन बंधक बनाया गया और उसके साथ बलात्कार किया गया।

कोर्ट का विश्लेषण

न्यायालय ने सभी आरोपों पर अलग-अलग विचार किया:

  • धारा 363 आईपीसी (अपहरण): कोर्ट ने S. Varadarajan v. State of Madras [AIR 1965 SC 942] का हवाला देते हुए कहा, “यह स्पष्ट है कि पीड़िता स्वयं ही आरोपियों के साथ गई थी… पीड़िता को उसके संरक्षक से अलग करने के लिए किसी प्रकार का प्रलोभन नहीं दिया गया।”
  • धारा 366A आईपीसी (नाबालिग लड़की की प्रेरणा): कोर्ट ने कहा, “सिर्फ किसी के साथ जाने से, यदि उसमें कोई प्रेरणा या प्रलोभन न हो, तो वह धारा 366A के तहत अपराध नहीं बनता।” अभियोजन पक्ष लड़की को प्रेरित करने या उसके साथ अवैध संबंध हेतु ले जाने का उद्देश्य सिद्ध नहीं कर सका।
  • धारा 328 आईपीसी (नशीली दवा देना): कोर्ट ने कहा कि न तो एफएसएल रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, न ही कोई नशीला पदार्थ जब्त हुआ और न ही मेडिकल रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि कोई नशीली चीज दी गई थी। अतः, यह अपराध सिद्ध नहीं हुआ।
  • धारा 342 आईपीसी (ग़ैरक़ानूनी रूप से बंधक बनाना): कोर्ट ने कहा, “पीड़िता स्वतंत्र रूप से एक्टिवा पर घूम रही थी… इसलिए कोई साक्ष्य नहीं है कि उसे ग़ैरक़ानूनी रूप से बंधक बनाया गया था।”
  • धारा 370 आईपीसी (मानव तस्करी): कोर्ट ने धारा 370 की व्याख्या करते हुए कहा कि शोषण की स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए। “हमारे विचार में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह सिद्ध हो कि पीड़िता का शोषण हुआ। अभियोजन किसी भी गवाह से शोषण संबंधी तथ्य सिद्ध नहीं कर सका।”
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निर्णय

न्यायालय ने दोनों अपीलों को स्वीकार करते हुए कहा:

“फैसला दिनांक 27.11.2024… निरस्त किया जाता है और सभी आरोपों से आरोपियों को दोषमुक्त किया जाता है।”

न्यायालय ने आदेश दिया कि यदि आरोपी किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं, तो उन्हें तत्काल रिहा किया जाए। साथ ही, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437-A के तहत ₹25,000 के निजी मुचलके पर दो जमानतदारों के साथ छह माह के लिए बांड प्रस्तुत करने का निर्देश भी दिया।

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