इलाहाबाद हाईकोर्ट की अवकाशकालीन खंडपीठ ने प्रयागराज में 29 जनवरी 2025 को हुए महाकुंभ की भगदड़ में मृतकों के परिजनों को मुआवज़ा देने में देरी पर उत्तर प्रदेश सरकार की तीखी आलोचना की है। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति संदीप जैन की पीठ ने कहा कि जब राज्य सरकार ने मुआवज़ा देने की घोषणा कर दी थी, तो उसे “सम्मानपूर्वक और समयबद्ध ढंग से भुगतान करना उसका बाध्यकारी कर्तव्य था।”
यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई जो उदय प्रताप सिंह द्वारा दाखिल की गई थी। उनकी पत्नी की मृत्यु उक्त भगदड़ में हुई थी। अदालत ने कहा कि घटना के चार महीने बीत जाने के बावजूद याचिकाकर्ता को कोई मुआवज़ा नहीं मिला है।
बिना पोस्टमार्टम के शव सौंपे जाने पर नाराज़गी
कोर्ट ने यह भी गंभीर चिंता जताई कि मृतका का शव पोस्टमार्टम किए बिना ही प्रयागराज स्थित मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के शवगृह से 5 फरवरी 2025 को उनके बेटे को सौंप दिया गया।
“यह अत्यंत चिंताजनक है कि राज्य अधिकारियों ने मृतका का शव पोस्टमार्टम के बिना उसके बेटे को सौंप दिया। चार महीने बीत चुके हैं और राज्य सरकार द्वारा घोषित मुआवज़े की कोई राशि याचिकाकर्ता को नहीं दी गई है,” अदालत ने कहा।
बाद में याचिकाकर्ता, जो बिहार के कैमूर ज़िले के करौंदा के निवासी हैं, अपनी पत्नी का शव लेकर वहां गए, जहां अंततः शव परीक्षण और मजिस्ट्रेटी जांच की गई।
सरकार का तर्क कोर्ट ने किया खारिज
राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा मुआवज़े का कोई दावा नहीं किया गया, इसलिए उसे विचार के स्तर पर नहीं लिया जा सका। इस पर कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा:
“प्रथम दृष्टया, हमें राज्य का यह रुख असंगत और नागरिकों की पीड़ा के प्रति असंवेदनशील प्रतीत होता है। पीड़ित परिवारों को अत्यंत सम्मान और गरिमा के साथ मुआवज़ा देना राज्य का बाध्यकारी कर्तव्य था।”
कोर्ट ने आगे कहा:
“एक बार जब मृतक के परिवार की पहचान राज्य को हो गई थी, तो उनके दूर-दराज़ से आए परिजनों को यह कहकर मुआवज़ा के लिए भटकाना कि उन्होंने औपचारिक दावा नहीं किया, एक बहाना प्रतीत होता है। यह नुकसान याचिकाकर्ता की किसी गलती के कारण नहीं हुआ।”
राज्य नागरिकों का न्यासी है: अदालत
अदालत ने अपने आदेश में राज्य की जिम्मेदारी को रेखांकित करते हुए कहा:
“राज्य अपने नागरिकों का ट्रस्टी (न्यासी) होता है। केवल उनके जीवन की रक्षा करना ही नहीं, बल्कि किसी अनचाही हानि की स्थिति में समाधान और देखभाल देना भी राज्य का बाध्यकारी कर्तव्य होता है। यह निर्विवाद है कि कुंभ मेला का प्रबंधन पूरी तरह राज्य सरकार के नियंत्रण में था।”
विस्तृत हलफनामा और अन्य संस्थाओं को पक्षकार बनाने के निर्देश
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करे, जिसमें निम्न जानकारी हो:
- प्राप्त कुल मुआवज़ा दावों की संख्या,
- निपटाए गए और लंबित दावों की संख्या,
- प्रत्येक दावे की प्राप्ति और निस्तारण की तिथि,
- दावेदारों का संक्षिप्त विवरण।
इसके अलावा, अदालत ने प्रयागराज स्थित कई चिकित्सा संस्थानों और अधिकारियों को भी याचिका में पक्षकार बनाकर उन्हें निर्देशित किया है कि वे 28 जनवरी से महाकुंभ के समापन तक हुई सभी मौतों और चिकित्सकीय प्रक्रिया का ब्यौरा हलफनामे के माध्यम से दें।
अगली सुनवाई की तारीख 18 जुलाई 2025 निर्धारित की गई है।