केंद्र सरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ गंभीर अनुशासनहीनता के आरोपों को लेकर आगामी मानसून सत्र में संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू सभी राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर सहमति बनाने के लिए विचार-विमर्श करेंगे।
पृष्ठभूमि: जलकर नष्ट हुई नकदी और अनुशासनहीनता का मामला
जस्टिस यशवंत वर्मा, जो पहले दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यरत थे, के दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास पर बड़ी मात्रा में जली हुई नकदी बरामद होने के बाद उन्हें इस वर्ष की शुरुआत में इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित किया गया था। इस मामले को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक जांच समिति गठित की गई।
यह समिति पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता में गठित की गई थी। समिति ने कथित रूप से यह निष्कर्ष निकाला कि जस्टिस वर्मा का इस नकदी कांड से संबंध है और उनके आचरण में अनुचितता पाई गई। जस्टिस खन्ना ने जस्टिस वर्मा को स्वैच्छिक रूप से इस्तीफा देने की सलाह दी, किंतु उन्होंने इनकार कर दिया। इसके बाद जस्टिस खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर संसद में उनके विरुद्ध महाभियोग की कार्यवाही प्रारंभ करने की सिफारिश की।

सरकार की अगली रणनीति: संसद में प्रस्ताव की तैयारी
सूत्रों के मुताबिक, यदि जस्टिस वर्मा मानसून सत्र से पहले इस्तीफा नहीं देते, तो केंद्र सरकार संसद में उनके विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव पेश कर सकती है। यह कदम यह दर्शाता है कि सरकार इस मामले को अत्यंत गंभीरता से ले रही है और न्यायपालिका की गरिमा व विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू इस प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका निभाएंगे और विपक्षी दलों से व्यापक समर्थन जुटाने का प्रयास करेंगे। सरकार का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होती है तो वह पारदर्शी तरीके से और व्यापक सहमति के आधार पर हो।
यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में बना हुआ है क्योंकि इसमें न्यायपालिका की उच्चतम निगरानी संस्थाओं की संलिप्तता है और आरोप अत्यंत गंभीर हैं। यदि यह प्रस्ताव आगे बढ़ता है, तो यह भारतीय संसदीय इतिहास में उच्च न्यायालय के किसी वर्तमान न्यायाधीश के विरुद्ध दुर्लभ घटनाओं में से एक होगा।
जैसे-जैसे मानसून सत्र नजदीक आ रहा है, संसद में इस मुद्दे पर गहन बहस और चर्चा की संभावना है, जो देश की न्यायिक प्रणाली की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिए दूरगामी प्रभाव डाल सकती है।