न्यायिक पारदर्शिता और जवाबदेही को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के सभी हाईकोर्ट्स को निर्देश दिया है कि वे अपने-अपने न्यायालयों में निर्णय सुनाए जाने की तिथि और उन निर्णयों को आधिकारिक पोर्टलों पर अपलोड किए जाने की तिथि से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने गुरुवार को यह निर्देश उस मामले की सुनवाई के दौरान दिया जिसमें एक पक्षकार ने आरक्षित निर्णय के लंबे समय से लंबित होने पर आपत्ति जताई थी।
पीठ ने आदेश में कहा,
“सभी हाईकोर्ट्स के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया जाता है कि वे निर्णय सुनाए जाने की तिथि और उन निर्णयों के अपलोड किए जाने की तिथि का पूर्ण विवरण देते हुए एक अतिरिक्त रिपोर्ट प्रस्तुत करें।”
पृष्ठभूमि
यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व आदेश की निरंतरता में जारी किया गया है, जिसमें कोर्ट ने उन मामलों की जानकारी मांगी थी जिनमें निर्णय 31 जनवरी 2025 या उससे पहले आरक्षित किए गए थे, लेकिन अब तक सुनाए नहीं गए हैं।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि उनके मामले में, जो अक्टूबर 2023 के आदेश को चुनौती देता है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जुलाई 2024 में व्यापक बहस के बाद निर्णय आरक्षित कर लिया था। इस मामले में यह प्रश्न था कि क्या एक अपीलीय प्राधिकरण अपने ही आदेश की समीक्षा कर सकता है या नहीं।
वकील ने कहा, “हमें बिल्कुल बेसहारा छोड़ दिया गया है,” और निर्णय में हो रही देरी पर चिंता जताई।
इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने बताया कि पहले से ही एक अन्य मामले में सभी हाईकोर्ट्स से ऐसी ही जानकारी मांगी जा चुकी है। उन्होंने यह भी पूछा कि जब एक व्यापक प्रक्रिया पहले ही चल रही है, तो इस अलग याचिका की क्या आवश्यकता है। इस पर उन्हें बताया गया कि यह याचिका पहले दायर की गई थी।
कोर्ट ने दोनों मामलों में समानता को देखते हुए इस याचिका को पूर्ववर्ती मामले के साथ संबद्ध कर दिया और सभी हाईकोर्ट्स से अद्यतन रिपोर्ट फिर से मांगी। साथ ही, इलाहाबाद हाईकोर्ट के संबंधित जज से अनुरोध किया कि “वे इस मामले पर ध्यान दें और उपयुक्त उपचारात्मक कदम उठाएं।”