सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल 2025 को पारित एक महत्वपूर्ण निर्णय में दो व्यक्तियों को दुष्कर्म के आरोप में सुनाई गई सजा को रद्द करते हुए बरी कर दिया। न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष की कहानी “खामियों से भरी” है और पीड़िताओं की गवाही संदेह से परे विश्वास योग्य नहीं मानी जा सकती। अदालत ने कहा कि परिस्थितियों की समग्रता में संदेह उत्पन्न होता है, जो अभियुक्तों को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है।
प्रकरण की पृष्ठभूमि:
यह मामला वर्ष 2000 का है, जिसमें शिकायत के अनुसार दो महिलाएं—जो आपस में जेठानी-देवरानी थीं—अपने ससुराल में सास से झगड़ा होने के बाद बिना बताए घर से निकल गईं और रास्ते में एक टेम्पो में सवार हो गईं, जिसमें अभियुक्त कथित रूप से यात्रा कर रहे थे। महिलाओं ने आरोप लगाया कि टेम्पो चालक उन्हें कुर्ला ले जाने का झांसा देकर एक सुनसान खेत में ले गया, जहां दो अभियुक्तों ने उनके साथ दुष्कर्म किया।
चारों आरोपियों पर अपहरण और बलात्कार के आरोप लगाए गए थे। ट्रायल कोर्ट ने 2003 में दो अभियुक्तों (केशव और एक अन्य) को दोषी ठहराया था और दो अन्य को दोषमुक्त कर दिया गया था। बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद पीठ) ने 2 जुलाई 2024 को ट्रायल कोर्ट के निर्णय की पुष्टि की। इसके विरुद्ध अपील सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी।
दलीलें और निचली अदालतों की प्रक्रिया:
ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने पीड़िताओं (PW-2 और PW-3) की गवाही को विश्वसनीय मानते हुए दोष सिद्ध किया था। वहीं बचाव पक्ष ने कई विरोधाभासों और साक्ष्य की कमी की ओर ध्यान दिलाया।
विशेष रूप से, परभणी में पीड़िताओं के 15 दिनों के कथित ठहराव को लेकर दिए गए बयान पर सवाल उठाए गए। PW-2 ने कहा कि वे ‘कजिन-आंटी’ के यहां ठहरी थीं, जबकि PW-3 ने कहा कि वे पहले एक अनजान महिला के घर रुकीं और फिर किसी रिश्तेदार के यहां गईं। किसी भी गवाह को बुलाकर उनके ठहरने की पुष्टि नहीं कराई गई।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण:
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने साक्ष्य का गंभीरता से विश्लेषण किया और अभियोजन पक्ष के मामले को अविश्वसनीय पाया:
“पीड़िताओं द्वारा प्रस्तुत की गई कहानी अनेक खामियों से भरी है और उसमें विश्वास करना कठिन है… यह गम्भीर संदेह उत्पन्न करती है, जो उचित संदेह की श्रेणी में आता है।”
अदालत ने यह भी कहा कि PW-4 ने केवल पीड़िताओं और बच्चे को टेम्पो में देखा था, लेकिन उसने अभियुक्तों की पहचान नहीं की और न ही अभियोजन ने अदालत में कोई पहचान कराई।
न्यायालय ने State of Punjab v. Gurmit Singh [(1996) 2 SCC 384] और Raju v. State of M.P. [(2008) 15 SCC 133] का हवाला देते हुए कहा कि यदि पीड़िता की गवाही प्रेरक और विश्वसनीय हो तो उसके आधार पर दोष सिद्ध किया जा सकता है, लेकिन यदि उस पर पूरा विश्वास करना कठिन हो, तो अतिरिक्त पुष्टि आवश्यक होती है।
मेडिकल साक्ष्य भी अभियोजन के पक्ष में नहीं रहा। पीड़िताओं का 15 दिन बाद चिकित्सकीय परीक्षण हुआ, जिसमें PW-9 डॉक्टर ने स्पष्ट रूप से कहा कि बलात्कारी कृत्य के कोई निशान नहीं पाए गए। उन्होंने यह भी बताया कि यदि बार-बार जोर-जबरदस्ती हुई होती, तो कुछ न कुछ चोट के निशान अवश्य होते, भले ही समय बीत गया हो।
न्यायालय का निर्णय:
अंततः सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“हम PW-2 और PW-3 की मौखिक गवाही पर कोई भरोसा नहीं कर सकते… अभियोजन की कहानी अनेक त्रुटियों से युक्त है और उचित संदेह की स्थिति उत्पन्न करती है।”
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों को रद्द करते हुए अपील स्वीकार कर ली और दोनों अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया। यदि वे किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं, तो उन्हें तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया और यदि वे ज़मानत पर हैं, तो उनकी ज़मानत रद्द मानी जाए।
मामले का संदर्भ:
केशव एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य, आपराधिक अपील संख्या ___ / 2025 [@SLP (Crl.) No. 11566 of 2024]