ग़ैरक़ानूनी निर्माण को न्यायिक विवेक के आधार पर नियमित नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने Kaniz Ahmed बनाम Sabuddin एवं अन्य (SLP (C) Nos.12199-12200/2025) में ग़ैरक़ानूनी निर्माण को नियमित करने की याचिका को खारिज करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें अवैध रूप से बनाए गए फ़्लोर को तोड़ने और सख़्त कार्यवाही का निर्देश दिया गया था। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने सार्वजनिक हित की रक्षा और क़ानून के शासन को बनाए रखने में हाईकोर्ट की दृढ़ता की सराहना की।

पृष्ठभूमि

यह मामला एक बहुमंज़िला इमारत में ग़ैरक़ानूनी निर्माण को लेकर दायर जनहित याचिका से उत्पन्न हुआ था। कलकत्ता हाईकोर्ट ने अवैध कब्जाधारियों को बेदखल करने और निर्माण को गिराने के लिए विस्तृत निर्देश जारी किए थे। न्यायालय ने पुलिस को निर्देश दिया था कि वे सभी ग़ैरक़ानूनी कब्जाधारियों को नोटिस दें और यदि आवश्यकता हो तो 16 मई 2025 तक बल प्रयोग कर बेदखली सुनिश्चित करें। कोलकाता नगर निगम (KMC) को ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया पूरी करने और उसका फ़ोटोग्राफ़िक प्रमाण सहित प्रतिवेदन 19 जून 2025 तक प्रस्तुत करने को कहा गया था। संपूर्ण कार्रवाई की वीडियोग्राफ़ी की जानी थी, जिसकी लागत KMC वहन करेगा।

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साथ ही, हाईकोर्ट ने पास की इमारतों की जांच कर ऐसे ही निर्माण पाए जाने पर समान निर्देशों को mutatis mutandis लागू करने का आदेश दिया, बशर्ते प्रभावित पक्षों को पूर्व सूचना दी जाए।

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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी व विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को पूर्णतः सही ठहराते हुए कहा:

“हम उस साहस और प्रतिबद्धता की प्रशंसा करते हैं जिसके साथ हाईकोर्ट ने जनहित में अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए अवैध निर्माण पर कार्यवाही की है।”

न्यायालय ने राजेन्द्र कुमार बड़जात्या एवं अन्य बनाम उ.प्र. आवास एवं विकास परिषद एवं अन्य (2024 INSC 990) मामले का हवाला देते हुए कहा कि भवन निर्माण नियमों का पालन अनिवार्य है और उल्लंघनकर्ताओं के प्रति किसी भी तरह की सहानुभूति अनुचित होगी। कोर्ट ने दोहराया:

“ग़ैरक़ानूनी निर्माण को ‘लोहे के हाथों’ से निपटाना चाहिए और सहानुभूति दिखाना अनुचित होगा।”

सुप्रीम कोर्ट ने राजेन्द्र कुमार बड़जात्या निर्णय के कुछ महत्त्वपूर्ण निर्देशों की भी पुनः पुष्टि की, जिनमें शामिल हैं:

  • बिल्डरों को केवल पूर्णता प्रमाणपत्र प्राप्त करने के बाद ही कब्जा सौंपने का वचन देना होगा।
  • निर्माण स्थलों पर स्वीकृत योजना का प्रदर्शन निर्माण के पूरे काल में किया जाना अनिवार्य है।
  • वैध occupancy certificate के बिना किसी सेवा (बिजली, पानी, सीवेज आदि) की अनुमति नहीं दी जाएगी।
  • पूर्णता प्रमाणपत्र के बाद कोई भी विचलन दंडनीय होगा।
  • बैंक ऋण स्वीकृति से पूर्व completion/occupancy certificate की जांच अनिवार्य होगी।
  • नियमों को लागू करने में देरी या विफलता के लिए अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही होनी चाहिए।
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ग़ैरक़ानूनी निर्माण को नियमित करने के प्रयास पर कड़ा रुख

याचिकाकर्ता द्वारा निर्माण को नियमित करने की मांग पर न्यायालय ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा:

“ऐसा व्यक्ति जो क़ानून का सम्मान नहीं करता, वह दो मंज़िल का अवैध निर्माण करने के बाद उसके नियमितीकरण की प्रार्थना नहीं कर सकता। यह ‘रूल ऑफ लॉ’ से जुड़ा विषय है। ग़ैरक़ानूनी निर्माण को ध्वस्त करना ही होगा – इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है।”

अदालत ने स्पष्ट किया कि न्यायिक विवेक statutory obligations द्वारा निर्देशित होना चाहिए, न कि अनुचित सहानुभूति से। न्यायालय “क़ानूनी प्रतिबंधों” से मुक्त नहीं हैं और न्याय भी कानून के अनुसार ही दिया जाना चाहिए।

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कोर्ट ने Ashok Malhotra बनाम दिल्ली नगर निगम में दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी उद्धृत की:

“क़ानून को उन लोगों की मदद में नहीं आना चाहिए जो उसके उल्लंघन का प्रयास करते हैं… यदि क़ानून ऐसे लोगों की रक्षा करने लगे तो यह क़ानून की निषेधात्मक शक्ति को ही कमजोर कर देगा, जो किसी भी न्यायपूर्ण और व्यवस्थित समाज की नींव है।”

अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अनुमति याचिकाओं को खारिज करते हुए सभी लंबित आवेदनों का निस्तारण कर दिया और अपने इस निर्णय की प्रति सभी उच्च न्यायालयों को भेजने का निर्देश दिया ताकि वे समान मामलों में उचित कार्यवाही कर सकें।

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