डिजिटल पहुंच का अधिकार जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा: सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगजनों के लिए समावेशी eKYC व्यवस्था लागू करने के निर्देश दिए

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि डिजिटल पहुंच का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न अंग है। न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह मौजूदा डिजिटल नो योर कस्टमर (eKYC) व्यवस्था को संशोधित करे ताकि एसिड अटैक पीड़ितों और दृष्टिहीन व्यक्तियों सहित दिव्यांगजन बैंकिंग और सरकारी सेवाओं से वंचित न रहें।

न्यायमूर्ति जे.बी. पारडीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने यह निर्णय सुनाया, जिसमें निर्णय लेखन न्यायमूर्ति महादेवन ने किया।

न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा,

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“वस्तुनिष्ठ समानता का सिद्धांत यह मांग करता है कि डिजिटल परिवर्तन समावेशी और न्यायसंगत हो… अतः डिजिटल पहुंच का अधिकार जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के सहज अंग के रूप में उभरता है।”

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मामले की पृष्ठभूमि
यह फैसला दो याचिकाओं— प्रज्ञा प्रसून बनाम भारत सरकार और अमर जैन बनाम भारत सरकार—के आधार पर आया। इन याचिकाओं में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए एक सुलभ eKYC प्रक्रिया सुनिश्चित करने की मांग की गई थी।

प्रज्ञा प्रसून याचिका में याचिकाकर्ता एसिड अटैक से पीड़ित महिलाएं थीं जिनके चेहरे पर स्थायी विकृति और आंखों की चोटें हैं, जिससे वे वर्तमान eKYC आवश्यकताओं—जैसे चेहरे को डिजिटल फ्रेम में रखना, सिर घुमाना या आंखें झपकाना—का पालन नहीं कर सकतीं।
याचिका में यह तर्क दिया गया कि ऐसी प्रक्रिया आवश्यक सेवाओं जैसे बैंक खाता खोलने और सरकारी योजनाओं का लाभ लेने से उन्हें प्रभावी रूप से वंचित करती है।

अमर जैन याचिका में याचिकाकर्ता 100% दृष्टिहीन हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें eKYC प्रक्रिया में सेल्फी लेना, हस्ताक्षर करना और OTP की अल्प अवधि जैसी तकनीकी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। याचिका में कहा गया कि वर्तमान ढांचा न केवल दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 का उल्लंघन करता है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का भी हनन करता है।

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न्यायालय की टिप्पणियाँ और निर्देश
न्यायालय ने कहा कि दिव्यांगजनों को दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत संरक्षण और उचित सुविधाएं मिलनी चाहिए।

“डिजिटल KYC दिशानिर्देशों को सुलभता के कोड के अनुरूप संशोधित करना अनिवार्य है,” — न्यायमूर्ति महादेवन ने कहा।
“आज के युग में जहां आवश्यक सेवाएं और स्वास्थ्य सेवाएं डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रदान की जा रही हैं, वहां जीवन के अधिकार की व्याख्या तकनीकी वास्तविकताओं के परिप्रेक्ष्य में की जानी चाहिए,” — न्यायालय ने आगे कहा।

बीस निर्देश जारी किए
न्यायालय ने विशेष रूप से एसिड अटैक पीड़ितों और दृष्टिहीन व्यक्तियों के लिए eKYC को सुलभ बनाने हेतु 20 व्यापक निर्देश जारी किए हैं। ये निर्देश फैसले की विस्तृत प्रति में उपलब्ध होंगे।

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इसके अतिरिक्त, पीठ ने यह भी रेखांकित किया कि डिजिटल समावेशन केवल दिव्यांग व्यक्तियों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि ग्रामीण, अशिक्षित और हाशिये के समुदायों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि समावेशी शासन प्रणाली तभी संभव है जब डिजिटल ढांचा सभी के लिए समान रूप से सुलभ हो।

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