एक ऐतिहासिक निर्णय में, जो प्रमुख जांच एजेंसियों के भीतर फैले व्यवस्थागत भ्रष्टाचार को उजागर करता है, दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को अपने ही तीन अधिकारियों को हिरासत में लेने का आदेश दिया है। यह असामान्य मामला न केवल सीबीआई में, बल्कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) में भी व्याप्त भ्रष्टाचार को सामने लाता है, जिससे भारत की कार्यपालिका और जांच तंत्र की नींव हिल गई है।
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने इस मामले को “व्यापक भ्रष्टाचार के अद्वितीय मामलों” में से एक बताते हुए कहा कि यह उन एजेंसियों की साख को कमजोर करता है जिनका मुख्य कार्य कानून का पालन कराना और अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाना है। यह आदेश उस अपील पर आया जिसमें सीबीआई ने निचली अदालत के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें आरोपित अधिकारियों की हिरासत से इनकार कर दिया गया था।
आरोपित अधिकारियों पर दो मामलों को निपटाने के लिए ₹50 लाख की रिश्वत मांगने का आरोप है, जिसे बाद में ₹35 लाख तक घटा दिया गया था। आरोप है कि उन्होंने जांच प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने और विभागीय कार्यप्रणाली को प्रभावित करने का वादा कर रिश्वत मांगी थी, जो विभिन्न विभागीय अधिकारियों के बीच मिलीभगत कर पद का दुरुपयोग करने की एक बड़ी साजिश को दर्शाता है।
न्यायमूर्ति कृष्णा ने अपने आदेश में कहा, “यह स्पष्ट है कि विशेष रूप से ऐसे मामलों में, जिनमें बड़ी साजिशों को उजागर करना उद्देश्य हो, जांच के प्रारंभिक चरण में हिरासत में पूछताछ आवश्यक है ताकि महत्वपूर्ण तथ्यों को सामने लाया जा सके।”
अदालत ने आरोपित अधिकारियों को दो दिन की सीबीआई हिरासत में भेजते हुए आरोपों की गंभीरता और उनके संभावित प्रभावों को रेखांकित किया। इस मामले ने न केवल संबंधित अधिकारियों की नैतिकता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि उन संस्थानों की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है जिन पर देश में सबसे संवेदनशील जांचों का भार है।