नीतिश कटारा हत्याकांड: सुप्रीम कोर्ट ने एम्स मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को बताया ‘कैजुअल’, कहा– मेडिकल बोर्ड पोस्टमैन नहीं होते

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 2002 के चर्चित नीतिश कटारा हत्याकांड में दोषी विकास यादव की मां के स्वास्थ्य मूल्यांकन को लेकर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मेडिकल बोर्ड की कार्यप्रणाली पर कड़ी नाराज़गी जताई। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने मेडिकल रिपोर्ट को “सरसरी” बताते हुए कहा कि यह स्पष्ट नहीं किया गया कि विकास यादव की मां को सर्जरी की ज़रूरत है या नहीं।

पीठ ने टिप्पणी की, “कोई भी मेडिकल बोर्ड काम करने को तैयार नहीं है। एम्स की रिपोर्ट सबसे ज़्यादा लापरवाह है। मेडिकल बोर्ड केवल डॉक्टर का कथन बताने वाले पोस्टमैन नहीं हो सकते।”

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विकास यादव, जो 25 साल की बिना रियायत वाली सजा काट रहा है, ने अपनी गंभीर रूप से बीमार मां की देखभाल के लिए अंतरिम जमानत की मांग की थी। इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गाज़ियाबाद के यशोदा अस्पताल के डॉक्टर विपिन त्यागी को निर्देश दिया कि वे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए कोर्ट में उपस्थित हों और यादव की मां की चिकित्सा स्थिति पर विस्तृत जानकारी दें।

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गौरतलब है कि यादव की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि इलाज कर रहे डॉक्टरों ने तत्काल सर्जरी की सिफारिश की है। कोर्ट ने इससे पहले उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकारों को फटकार लगाई थी कि उन्होंने 2 अप्रैल को दिए गए आदेश के बावजूद समय पर मेडिकल बोर्ड का गठन नहीं किया।

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सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2016 में विकास यादव को इस मामले में दोषी ठहराते हुए कहा था कि उसे सजा में किसी भी प्रकार की रियायत नहीं मिलेगी। विकास यादव उत्तर प्रदेश के पूर्व सांसद डी. पी. यादव का बेटा है। उसके साथ उसके चचेरे भाई विशाल यादव को भी व्यवसायी नीतिश कटारा के अपहरण और हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। इस हत्याकांड ने उस समय व्यापक जनध्यान आकर्षित किया था क्योंकि इसमें जातिगत भेदभाव को हत्या का संभावित कारण बताया गया था—नीतिश कटारा, विकास की बहन भारती यादव के साथ रिश्ते में थे। इस मामले में एक अन्य आरोपी सुखदेव पहलवान को भी 20 साल की कठोर सजा सुनाई गई थी।

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