सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज द्वारा बलात्कार पीड़िता को लेकर की गई टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई। हाईकोर्ट के जज ने कहा था कि महिला ने “खुद मुसीबत को आमंत्रित किया”, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने बेहद असंवेदनशील और अनुचित बताया।
यह मामला In Re: Order dated 17.03.2025 passed by the High Court of Judicature at Allahabad in Criminal Revision No. 1449/2024 and Ancillary Issues शीर्षक से स्वतः संज्ञान (सुओ मोटो) के तहत विचाराधीन है। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने बलात्कार जैसे संवेदनशील मामलों में इस प्रकार की टिप्पणियों पर सावधानी बरतने की आवश्यकता जताई।
हाईकोर्ट की विवादास्पद टिप्पणी
यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने 11 मार्च 2025 को दी थी, जब वे एक आरोपी को जमानत दे रहे थे। आरोपी पर दिल्ली के हौज खास इलाके के एक बार में मुलाकात के बाद महिला के साथ दुष्कर्म का आरोप था। जमानत मंजूर करते हुए न्यायमूर्ति ने कहा था कि महिला ने “खुद मुसीबत को बुलावा दिया”, जो कि सुप्रीम कोर्ट की नजर में निंदनीय टिप्पणी थी।
इस पर न्यायमूर्ति गवई ने टिप्पणी करते हुए कहा:
“हां, जमानत दी जा सकती है, लेकिन यह क्या चर्चा है कि ‘उसने खुद मुसीबत को बुलाया’? इस तरह की बातें कहते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, खासकर जब हम न्यायिक पद पर हों।”
न्यायिक संवेदनशीलता का महत्व
पीठ ने कहा कि न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस भावना का समर्थन करते हुए कहा:
“एक आम व्यक्ति ऐसे आदेशों को कैसे देखता है, इस पर भी ध्यान देना चाहिए।”
स्वतः संज्ञान मामले की पृष्ठभूमि
यह स्वतः संज्ञान मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक अन्य विवादास्पद आदेश के संदर्भ में शुरू किया गया था, जिसमें एक नाबालिग बच्ची के स्तनों को दबाने, पायजामे की डोरी खोलने और culvert के नीचे घसीटने के प्रयास को अदालत ने बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के रूप में मान्यता नहीं दी थी।
यह आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र द्वारा 17 मार्च 2025 को पारित किया गया था, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) और पोक्सो अधिनियम की धारा 18 (प्रयास के लिए सजा) के तहत आरोपित दो अभियुक्तों को राहत दी गई और उनके विरुद्ध केवल धारा 354-बी IPC (कपड़े उतारने की नीयत से हमला) और पोक्सो की धाराएं 9/10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत मुकदमा चलाने का निर्देश दिया गया।
कोर्ट ने कहा था:
“यह आरोप है कि अभियुक्तों ने पीड़िता के स्तनों को दबाया और उसके वस्त्र उतारने की कोशिश की… यह तथ्य यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं है कि वे बलात्कार के लिए संकल्पित थे।”
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और अगली सुनवाई
इस फैसले को ‘We the Women of India’ नामक संस्था ने सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाया, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने 26 मार्च को हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। कोर्ट ने उस आदेश को “संवेदनशीलता की कमी” और “क्षणिक विचार” का परिणाम बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब भी मांगा है। साथ ही, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को न्यायालय की सहायता के लिए नियुक्त किया गया है।
मंगलवार को कोर्ट ने कहा:
“यह मामला चार सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया जाए। सभी प्रतिवादियों को नोटिस की सेवा पूर्ण की जाए।”