सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें अहमदाबाद स्थित ऐतिहासिक साबरमती आश्रम के पुनर्विकास परियोजना को चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इसे दायर करने में दो वर्षों से अधिक की देरी हुई है, जो विचारणीय नहीं है।
तुषार गांधी ने यह याचिका गुजरात हाईकोर्ट के 2022 के फैसले को चुनौती देते हुए दायर की थी, जिसमें उन्होंने आश्रम की भौगोलिक संरचना बदलने को लेकर चिंता जताई थी। उनकी याचिका के अनुसार, पुनर्विकास परियोजना में लगभग 40 मौजूदा संरचनाओं को संरक्षित रखा जाना प्रस्तावित था, जबकि करीब 200 इमारतों को तोड़ने या पुनर्निर्माण की योजना थी।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि आश्रम के मुख्य परिसर को लेकर जो आशंका जताई गई थी, वह पर्याप्त आधार नहीं है, क्योंकि गुजरात सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि आश्रम के पांच एकड़ के मुख्य क्षेत्र को पुनर्विकास से अछूता रखा जाएगा।

गुजरात सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी ने हाईकोर्ट में यह आश्वासन दिया था कि आश्रम का मूल क्षेत्र पूरी तरह संरक्षित रहेगा और पुनर्विकास कार्य उस क्षेत्र को प्रभावित नहीं करेगा।
तुषार गांधी ने शुरू में एक जनहित याचिका (PIL) दायर कर यह मांग की थी कि पुनर्विकास कार्य नेशनल गांधी स्मारक निधि (NGSN) की देखरेख में किया जाए—यह संस्था महात्मा गांधी की स्मृति और विरासत के संरक्षण के लिए समर्पित है।
साबरमती आश्रम, जिसे महात्मा गांधी ने 1917 में स्थापित किया था, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थल रहा है। यह वही स्थान है जहां से गांधीजी ने 1930 में दांडी यात्रा की शुरुआत की थी।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब राज्य सरकार की योजना के तहत आश्रम के पुनर्विकास कार्य को आगे बढ़ाया जा सकेगा।