एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के आचरण की जांच के लिए तीन सदस्यीय इन-हाउस इन्क्वायरी शुरू की है। यह निर्णय 14 मार्च को उनके आवास पर आग लगने की घटना के बाद वहां से भारी मात्रा में मुद्रा नोटों की बरामदगी के चलते लिया गया। इस जांच समिति में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागु, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी एस संधवाला, और कर्नाटक हाई कोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं।
संवैधानिक पृष्ठभूमि
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और अनुच्छेद 218 के तहत, किसी भी न्यायाधीश को “सिद्ध दुराचार” (proved misbehaviour) या “अयोग्यता” (incapacity) के आधार पर संसद द्वारा महाभियोग (impeachment) के माध्यम से हटाया जा सकता है। इसके लिए लोकसभा और राज्यसभा दोनों में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत और प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों के 50% से अधिक की स्वीकृति आवश्यक होती है। मतदान के बाद राष्ट्रपति औपचारिक रूप से हटाने का आदेश देते हैं।
इन-हाउस इन्क्वायरी प्रक्रिया
इन-हाउस इन्क्वायरी, महाभियोग प्रक्रिया से अलग होती है और इसे CJI या किसी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा शुरू किया जा सकता है। यह प्रक्रिया उन मामलों के लिए बनाई गई है जो सीधे महाभियोग लायक तो नहीं होते, लेकिन न्यायिक नैतिकता और आचरण के मानकों से मेल नहीं खाते।

इस प्रणाली की शुरुआत 1995 में बॉम्बे हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ए एम भट्टाचार्य के मामले के बाद हुई थी, जब न्यायपालिका में जवाबदेही को लेकर गंभीर चिंता जताई गई थी। उस समय सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति के. रामास्वामी और बी. एल. हंसरिया ने एक पांच सदस्यीय समिति की सिफारिश की थी, जिसने ऐसे मामलों में सुधारात्मक कदम तय किए। इसे 1999 में संशोधित किया गया और 2014 में भी इसकी पुनरावलोकन हुआ।
इस प्रक्रिया के तहत यदि CJI को किसी न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत मिलती है, तो वह संबंधित हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से प्राथमिक रिपोर्ट मांग सकते हैं। यदि रिपोर्ट में गहराई से जांच की सिफारिश की जाती है, तो तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जाता है। यह समिति प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए जांच करती है और आरोपी न्यायाधीश को अपना पक्ष रखने का अवसर देती है।
जांच पूरी होने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट CJI को सौंपती है, जिसमें यह बताया जाता है कि आरोपों में दम है या नहीं और क्या यह न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने योग्य है। अगर आरोप गंभीर हों, तो CJI न्यायाधीश को इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की सलाह दे सकते हैं। अगर न्यायाधीश इनकार करते हैं, तो मामला प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास भेजा जा सकता है।
वर्तमान स्थिति
जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में, CJI संजीव खन्ना ने दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय को निर्देश दिया है कि जांच पूरी होने तक जस्टिस वर्मा को कोई न्यायिक कार्य न सौंपा जाए। यह कदम दर्शाता है कि न्यायपालिका अपनी गरिमा और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए गंभीरता से कार्रवाई कर रही है।
जस्टिस वर्मा के खिलाफ इन-हाउस इन्क्वायरी यह दर्शाती है कि भारतीय न्यायपालिका के पास अपनी आंतरिक जवाबदेही की प्रणाली मौजूद है, जो महाभियोग जैसी कठोर प्रक्रिया से अलग है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि न्यायाधीशों के आचरण के मानक कायम रहें, और बिना सीधे संसद की प्रक्रिया अपनाए, नैतिक रूप से उचित कार्रवाई की जा सके।