पूर्ण स्वामित्व का दावा करने वाले वादी को संपत्ति की सही जानकारी और ठोस साक्ष्य देना होगा; मात्र राजस्व अभिलेख से कब्जे का प्रमाण नहीं होता: सुप्रीम कोर्ट

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति कानून से संबंधित एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई वादी किसी अचल संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व का दावा करता है, तो उसे संपत्ति के सही विवरण (जैसे खाता संख्या, क्षेत्रफल और सीमाएं) और ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे। सिर्फ राजस्व रिकॉर्ड (खाता, मूल्यांकन रजिस्टर आदि) के आधार पर न तो कब्जा साबित होता है और न ही स्वामित्व।

यह निर्णय नगन्ना (मृतक) उनके विधिक प्रतिनिधियों बनाम सिद्धारामेगौड़ा (मृतक) उनके विधिक प्रतिनिधियों [सिविल अपील संख्या 3688/2024] मामले में आया, जिसमें कर्नाटक के पांडवपुरा तालुक के चलुवेरासिनकोप्पालु गांव की एक विवादित संपत्ति पर स्वामित्व और कब्जे का दावा सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।

यह फैसला न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ द्वारा 19 मार्च 2025 को सुनाया गया।

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मामले की पृष्ठभूमि

यह विवाद तीन दशकों से अधिक समय से चला आ रहा है। वादी नगन्ना ने दावा किया कि यह संपत्ति उनके पिता स्व. सिद्धेगौड़ा को उनके भाई कालेगौड़ा के साथ हुए एक मौखिक बंटवारे में मिली थी। हालांकि, संपत्ति का खाता (राजस्व रिकॉर्ड) कालेगौड़ा के नाम पर ही रहा।

साल 1993 में प्रतिवादी संख्या 2 ने इस संपत्ति को प्रतिवादी संख्या 1 को विक्रय पत्र के माध्यम से बेच दिया, जिसे वादी ने यह कहते हुए चुनौती दी कि विक्रेता का संपत्ति से कोई संबंध नहीं था और यह सौदा धोखाधड़ीपूर्ण था।

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वादी ने स्थायी निषेधाज्ञा, विक्रय पत्र की रद्दीकरण और कब्जे की बहाली के लिए OS No. 606/1999 के तहत मुकदमा दायर किया, जिसमें प्रथम दृष्टि न्यायालय और प्रथम अपीलीय न्यायालय ने वादी के पक्ष में फैसला दिया।

हालांकि, कर्नाटक हाईकोर्ट ने RSA No. 856/2011 में इन दोनों निर्णयों को पलट दिया और कहा कि वादी के पास न तो स्वामित्व प्रमाण था और न ही संपत्ति की स्पष्ट पहचान।

अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय की पुष्टि की है।

मुख्य कानूनी प्रश्न

  1. क्या स्वामित्व और कब्जे की बहाली के लिए दाखिल वाद तब तक सफल हो सकता है जब तक स्पष्ट स्वामित्व दस्तावेज और संपत्ति की सही पहचान न हो?
  2. क्या केवल राजस्व रिकॉर्ड और दीर्घकालीन कब्जे का दावा स्वामित्व सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है?
  3. क्या धारा 100 सीपीसी के अंतर्गत हाईकोर्ट द्वारा निचली अदालतों के निर्णय में हस्तक्षेप उचित था?

सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की तर्कपूर्ण व्याख्या को स्वीकार करते हुए कहा:

“वादी को अपने मुकदमे की ताकत पर खड़ा होना चाहिए, प्रतिवादी की कमजोरी पर नहीं। इस मामले में वादी यह सिद्ध करने में विफल रहा कि वह वादग्रस्त संपत्ति का स्वामी है।”

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि राजस्व रिकॉर्ड जैसे खाता प्रविष्टियां, मूल्यांकन रजिस्टर और पंचायत के दस्तावेज, केवल पूरक साक्ष्य हो सकते हैं, लेकिन ये स्वामित्व सिद्ध नहीं करते जब तक कि उनके साथ सटीक माप, सीमाएं और वैध शीर्षक दस्तावेज न हों।

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दस्तावेज़ों पर विश्लेषण

दस्तावेज़ P2 से P7 की समीक्षा में कोर्ट ने पाया:

  • अलग-अलग दस्तावेजों में खाता संख्या 71, 73 और 111 का उल्लेख है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि ये सभी एक ही संपत्ति हैं।
  • 1995 का पंचायत पलुपट्टी (Ex. P-7) दस्तावेज खाता संख्या 71 या 111 का उल्लेख नहीं करता।
  • विक्रय पत्र (Ex. P-6) प्रतिवादी संख्या 1 के पक्ष में था, जिसमें संपत्ति की सीमाएं स्पष्ट थीं और जो प्रत्यक्ष कब्जाधारी द्वारा निष्पादित किया गया प्रतीत होता है।

कोर्ट ने यह भी ध्यान दिलाया कि वादी ने इससे संबंधित एक अन्य वाद (OS No. 108/2003) में भी संपत्ति के उत्तरी भाग पर स्वामित्व सिद्ध करने में असफलता पाई थी।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

अपील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा:

“जो व्यक्ति न्यायालय में यह घोषणा करता है कि वह वादग्रस्त संपत्ति का पूर्ण स्वामी है, उसे संपत्ति की सही खाता संख्या, क्षेत्रफल और सीमाएं स्पष्ट रूप से और ठोस साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करनी चाहिए।”

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कोर्ट ने निचली अदालतों की आलोचना करते हुए कहा कि:

  • उन्होंने राजस्व रिकॉर्ड को निर्णायक मान लिया।
  • मौखिक बंटवारे की बिना किसी तारीख या साक्ष्य के मान्यता दी।
  • वादी द्वारा स्वामित्व की कोई स्पष्ट घोषणा या राहत की मांग न करने के बावजूद उसे स्वामित्व दे दिया।

कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि धारा 100 सीपीसी के तहत हाईकोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र का सही प्रयोग किया और गलत व अस्थिर निष्कर्षों को दुरुस्त किया

मामले का विवरण:

  • मामले का शीर्षक: नगन्ना (मृतक) उनके विधिक प्रतिनिधि बनाम सिद्धारामेगौड़ा (मृतक) उनके विधिक प्रतिनिधि
  • मामला संख्या: सिविल अपील संख्या 3688/2024
  • निर्णय की तिथि: 19 मार्च 2025
  • पीठ: न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले
  • हाईकोर्ट निर्णय: RSA No. 856/2011 (कर्नाटक हाईकोर्ट)
  • निचली अदालत के मामले: OS No. 606/1999 और OS No. 108/2003 (पांडवपुरा)
  • परिणाम: अपील खारिज

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