महिला के बालों की लंबाई और घनत्व पर की गई टिप्पणी यौन उत्पीड़न नहीं: बॉम्बे हाई कोर्ट

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि महिला सहकर्मी के बालों पर की गई टिप्पणी — भले ही वह अनुचित हो — यौन उत्पीड़न की कानूनी परिभाषा में नहीं आती। कोर्ट ने इस आधार पर आंतरिक शिकायत समिति (ICC) और पुणे औद्योगिक न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों को रद्द कर दिया, जिसमें एक कर्मचारी को कार्यस्थल पर अनुचित आचरण के लिए दोषी ठहराया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि:

यह फैसला रिट पिटिशन संख्या 17230/2024 में दिया गया, जिसकी सुनवाई न्यायमूर्ति संदीप वी. मर्ने ने 18 मार्च 2025 को की। याचिकाकर्ता ने 30 सितंबर 2022 को ICC द्वारा दी गई रिपोर्ट और 1 जुलाई 2024 को औद्योगिक न्यायालय, पुणे द्वारा उसकी अपील खारिज किए जाने को चुनौती दी थी। शिकायत एक महिला सहकर्मी द्वारा दर्ज की गई थी।

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याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सना रईस खान ने पक्ष रखा, उनके साथ जुही काडू और संस्कृति यज्ञिक ने सहयोग किया। गौर करने योग्य बात यह है कि न तो ICC और न ही नियोक्ता कोर्ट में उपस्थित हुए, जबकि उन्हें नोटिस दिया गया था।

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आरोप क्या थे:

ICC ने याचिकाकर्ता के खिलाफ तीन प्रमुख घटनाओं को आधार बनाकर रिपोर्ट दी थी:

  1. बालों पर टिप्पणी: याचिकाकर्ता ने महिला सहकर्मी से कथित तौर पर कहा था, “तुम्हें अपने बाल संभालने के लिए JCB की जरूरत पड़ती होगी,” और इसके बाद बालों पर एक गीत गाया था।
  2. समूह में अशोभनीय टिप्पणी: उन्होंने एक पुरुष सहकर्मी के निजी अंगों पर एक अभद्र टिप्पणी की थी, जो अन्य महिला कर्मचारियों की उपस्थिति में की गई थी।
  3. रिपोर्टिंग मैनेजर पर आरोप: शिकायतकर्ता ने अपनी रिपोर्टिंग मैनेजर (एक महिला) पर भी अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया, जो याचिकाकर्ता से संबंधित नहीं था।

ICC का कहना था कि कई गवाहों ने आरोपों की पुष्टि की और यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता ने जांच में हस्तक्षेप करने की कोशिश की।

हाई कोर्ट की अहम टिप्पणियां:

न्यायमूर्ति मर्ने ने तीनों घटनाओं का विस्तार से विश्लेषण करते हुए कहा कि ICC की रिपोर्ट में कानूनी ठोसपन और पर्याप्त सबूतों की कमी है। उन्होंने ICC को आरोपों के तत्वों से सही तरीके से निपटने में विफल बताया।

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1. बालों पर टिप्पणी के संबंध में: कोर्ट ने माना कि यह टिप्पणी भले ही असभ्य हो, लेकिन POSH अधिनियम के अंतर्गत यौन उत्पीड़न नहीं मानी जा सकती। खास बात यह रही कि शिकायतकर्ता ने घटना के बाद भी याचिकाकर्ता से सौहार्दपूर्ण व्हाट्सएप बातचीत जारी रखी और ऐसा प्रतीत होता है कि वह स्वयं प्रेरित थीं।

2. दूसरी घटना पर: कोर्ट ने कहा कि यह अभद्र टिप्पणी एक पुरुष सहकर्मी के प्रति थी और शिकायतकर्ता की उपस्थिति में नहीं की गई थी। इसलिए इसे शिकायतकर्ता के प्रति यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता।

3. तीसरी घटना पर: यह आरोप किसी अन्य महिला कर्मचारी के खिलाफ था और याचिकाकर्ता से संबंधित नहीं था।

ICC के आचरण पर: न्यायमूर्ति मर्ने ने ICC की रिपोर्ट को “अस्पष्ट और अप्रमाणित” बताते हुए कहा:

“समिति ने प्रत्येक आरोप को सबूतों के आलोक में विश्लेषित नहीं किया। उन्होंने केवल अस्पष्ट सिफारिशें दी हैं।”

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच पहले सौहार्दपूर्ण संबंध थे, तो शिकायत उसके इस्तीफे के बाद ही क्यों दर्ज कराई गई।

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कोर्ट का निर्णय:

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि भले ही सभी घटनाएं तथ्यात्मक रूप से सही मान ली जाएं, फिर भी वे POSH अधिनियम, 2013 के अंतर्गत यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आतीं।

कोर्ट ने आदेश दिया:

  • ICC की 30 सितंबर 2022 की रिपोर्ट रद्द की जाती है।
  • औद्योगिक न्यायालय, पुणे का 1 जुलाई 2024 का आदेश (अपील संख्या IESO 1/2023) रद्द किया जाता है।
  • याचिका को स्वीकार किया जाता है, बिना किसी लागत के।

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