भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में विश्नू मित्तल (निदेशक, एम/एस ज़ाल्टा फूड एंड बेवरेजेज प्राइवेट लिमिटेड) के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए यह स्पष्ट किया कि परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) की धारा 138 के तहत अपराध का कारण तभी उत्पन्न होता है जब डिमांड नोटिस मिलने के 15 दिनों के भीतर भुगतान नहीं किया जाता, न कि चेक बाउंस होने के समय।
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि इस मामले में इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 (IBC) के तहत अधिस्थगन (moratorium) पहले ही प्रभावी हो चुका था, जिससे आपराधिक शिकायत अमान्य हो गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एम/एस ज़ाल्टा फूड एंड बेवरेजेज प्राइवेट लिमिटेड (कॉरपोरेट डिबेटर) और एम/एस शक्ति ट्रेडिंग कंपनी के बीच व्यापारिक लेन-देन से संबंधित था। विश्नू मित्तल ने व्यापारिक सौदे के तहत ₹11,17,326 की राशि के 11 चेक जारी किए, जो 7 जुलाई 2018 को बाउंस हो गए। इसके बाद शक्ति ट्रेडिंग कंपनी ने 6 अगस्त 2018 को धारा 138 के तहत एक विधिक नोटिस जारी किया और जब भुगतान नहीं हुआ तो सितंबर 2018 में आपराधिक शिकायत दर्ज की।

इस बीच, 25 जुलाई 2018 को IBC की धारा 14 के तहत NCLT ने ज़ाल्टा फूड एंड बेवरेजेज पर अधिस्थगन (moratorium) लागू कर दिया, जिससे कंपनी के खिलाफ किसी भी कानूनी कार्यवाही पर रोक लग गई। बावजूद इसके, विश्नू मित्तल के खिलाफ आपराधिक मुकदमा जारी रहा, जिसे उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी और मामले को रद्द करने की मांग की।
हालांकि, 21 दिसंबर 2021 को हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि IBC का अधिस्थगन केवल कॉरपोरेट डिबेटर पर लागू होता है, निदेशकों या अधिकारियों पर नहीं। इस फैसले से असंतुष्ट होकर मित्तल ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रमुख कानूनी प्रश्न
- क्या IBC की धारा 14 के तहत अधिस्थगन कॉरपोरेट डिबेटर के निदेशकों को धारा 138 NI Act के तहत अभियोजन से सुरक्षा प्रदान करता है?
- धारा 138 के तहत कारण कब उत्पन्न होता है – चेक बाउंस होने पर या डिमांड नोटिस के 15 दिन बीतने के बाद?
- क्या हाईकोर्ट ने P. Mohan Raj बनाम M/S Shah Brothers Ispat Pvt. Ltd. [(2021) 6 SCC 258] के फैसले का गलत अनुप्रयोग किया था?
सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन और निर्णय
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया और निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जोर दिया:
1. धारा 138 के तहत कारण चेक बाउंस पर नहीं, बल्कि डिमांड नोटिस के 15 दिन बाद उत्पन्न होता है
अदालत ने स्पष्ट किया कि चेक बाउंस होने मात्र से अपराध नहीं बनता। अपराध तब बनता है जब धारा 138 के तहत विधिक नोटिस जारी होने के 15 दिन बाद भी भुगतान नहीं किया जाता।
सुप्रीम कोर्ट ने Jugesh Sehgal बनाम Shamsher Singh Gogi (2009) 14 SCC 683 के फैसले का हवाला देते हुए कहा:
“केवल चेक बाउंस होना अपराध उत्पन्न नहीं करता। कारण तभी उत्पन्न होता है जब डिमांड नोटिस की सेवा के बाद 15 दिनों के भीतर भुगतान नहीं किया जाता।”
इस मामले में:
- चेक बाउंस – 7 जुलाई 2018
- डिमांड नोटिस जारी हुआ – 6 अगस्त 2018
- कारण उत्पन्न हुआ – 21 अगस्त 2018 (15 दिन बाद)
इस समय तक, IBC के तहत 25 जुलाई 2018 को ही अधिस्थगन लागू हो चुका था, जिसका अर्थ यह था कि कंपनी के वित्तीय मामलों का नियंत्रण अब अंतरिम समाधान पेशेवर (IRP) के पास था।
अदालत ने कहा कि चूंकि कारण अधिस्थगन के बाद उत्पन्न हुआ था, इसलिए इस मामले में दायर की गई आपराधिक शिकायत निराधार थी।
2. हाईकोर्ट ने गलत तरीके से P. Mohan Raj के फैसले का अनुप्रयोग किया
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि P. Mohan Raj बनाम Shah Brothers Ispat Pvt. Ltd. मामले में परिस्थितियां अलग थीं:
- P. Mohan Raj मामले में, डिमांड नोटिस और कारण अधिस्थगन लागू होने से पहले उत्पन्न हुए थे।
- इस मामले में, कारण अधिस्थगन के बाद उत्पन्न हुआ था।
“हाईकोर्ट ने P. Mohan Raj के फैसले को यांत्रिक रूप से लागू किया, जबकि इस मामले की परिस्थितियां भिन्न थीं। यहाँ, अधिस्थगन पहले ही प्रभावी हो गया था, जिससे आपराधिक मुकदमा अस्थिर हो गया।”
3. अधिस्थगन लागू होने के बाद निदेशक के पास वित्तीय निर्णय लेने का अधिकार नहीं रहता
अदालत ने यह भी कहा कि IBC की धारा 17 के तहत एक बार जब IRP नियुक्त हो जाता है, तो निदेशकों की शक्तियां निलंबित हो जाती हैं।
“जब डिमांड नोटिस जारी हुआ, उस समय कॉरपोरेट डिबेटर निदेशक के नियंत्रण में नहीं था। सभी वित्तीय निर्णय IRP के अधीन थे, इसलिए चेक भुगतान न करने के लिए निदेशक उत्तरदायी नहीं हो सकता।”
अंतिम निर्णय
इस आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने:
✅ विश्नू मित्तल के खिलाफ दर्ज आपराधिक शिकायत (मामला संख्या 15580/2018, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, चंडीगढ़) को रद्द कर दिया।
✅ पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 21 दिसंबर 2021 के आदेश को निरस्त कर दिया।
✅ यह माना कि IBC की धारा 14 के अधिस्थगन ने इस मामले में कॉरपोरेट डिबेटर और निदेशक के खिलाफ NI Act की धारा 138 के तहत अभियोजन को रोक दिया।