वरिष्ठ पदनाम केवल सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के वकीलों का एकाधिकार नहीं हो सकता: सुप्रीम कोर्ट

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में वरिष्ठ अधिवक्ता (सीनियर एडवोकेट) के पदनाम को केवल सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के वकीलों तक सीमित रखने पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मौजूदा प्रणाली की पुनः समीक्षा की आवश्यकता पर बल देते हुए यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि निचली अदालतों के वकीलों को भी समान अवसर मिले। साथ ही, न्यायालय ने उन वकीलों को कड़ी फटकार लगाई, जिन्होंने न्यायालय के समक्ष गलत तथ्य प्रस्तुत किए, जिससे एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AOR) और वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नैतिक जिम्मेदारियों पर गंभीर प्रश्न उठे।

मामला: जीतेन्द्र @ कल्ला बनाम राज्य (दिल्ली सरकार)

क्रिमिनल अपील @ SLP (Crl.) No. 4299/2024

इस मामले में अधिवक्ताओं द्वारा न्यायालय को गुमराह करने का गंभीर मामला सामने आया। अभियुक्त की कानूनी टीम ने महत्वपूर्ण तथ्य छिपाकर सर्वोच्च न्यायालय से राहत प्राप्त करने का प्रयास किया। इस नैतिक चूक को देखते हुए, न्यायालय ने न केवल दोषी अधिवक्ताओं पर कार्रवाई की बल्कि वरिष्ठ अधिवक्ता पदनाम प्रक्रिया की प्रभावशीलता पर भी प्रश्न उठाया।

मामले की पृष्ठभूमि

जीतेन्द्र @ कल्ला को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 (हत्या) और धारा 307 (हत्या के प्रयास) के तहत दोषी ठहराया गया था। उन्हें 30 साल की सजा (बिना रिहाई की संभावना के) दी गई थी।

हालांकि, हाई कोर्ट ने उनकी सजा कम कर 16 वर्ष 10 महीने कर दी थी। लेकिन 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया और मूल 30 वर्ष की सजा बहाल कर दी।

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2024 में, जीतेन्द्र @ कल्ला ने एक नए मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की। चौंकाने वाली बात यह थी कि इस अपील में यह तथ्य छुपा लिया गया कि वह पहले से ही 30 साल की सजा काट रहा था।

इस जानकारी के अभाव में, सर्वोच्च न्यायालय ने गलती से उसे अस्थायी राहत (अंतरिम आदेश) दे दी। जब यह धोखाधड़ी उजागर हुई, तो न्यायालय ने अधिवक्ताओं की जिम्मेदारी और न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता की अनिवार्यता पर जोर दिया।

प्रमुख कानूनी प्रश्न

1. एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AOR) और वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नैतिक जिम्मेदारी

  • क्या AOR को गुमराह करने वाली याचिका दायर करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है?
  • यदि वरिष्ठ अधिवक्ता (सीनियर एडवोकेट) भी इस प्रक्रिया में शामिल हैं, तो क्या उन्हें भी जिम्मेदार माना जाना चाहिए?
  • क्या AOR द्वारा बिना सत्यापन के याचिका पर हस्ताक्षर करना गंभीर नैतिक उल्लंघन है?

2. वरिष्ठ अधिवक्ता पदनाम प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता

  • क्या वर्तमान इंदिरा जयसिंह बनाम भारत का सर्वोच्च न्यायालय (2017) फैसले में निर्धारित प्रक्रिया पर्याप्त है?
  • क्या यह प्रक्रिया केवल सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के अधिवक्ताओं को ही लाभ देती है, जबकि जिला और सत्र न्यायालयों के योग्य वकीलों को अवसर नहीं मिलता?
  • क्या व्यक्तिगत साक्षात्कार और गुप्त मतदान पर रोक न्यायिक प्रक्रिया के अनुरूप है?
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सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण अवलोकन

1. अधिवक्ताओं की जिम्मेदारी और नैतिकता पर कड़ी टिप्पणी

“यह एक गंभीर मामला है, जिसमें विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर करते समय तथ्य छिपाए गए। याचिका दायर करने वाले एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड को इस न्यायालय के समक्ष स्पष्टीकरण देना होगा।”

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि AOR बिना सत्यापन के याचिका दायर नहीं कर सकता, और इसमें संलिप्त वरिष्ठ अधिवक्ता भी जिम्मेदार होंगे।

2. न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता की अनिवार्यता

“यदि AOR बिना जांच-पड़ताल के केवल अपना नाम इस्तेमाल करने लगें, तो यह न्यायिक प्रक्रिया की गुणवत्ता को प्रभावित करेगा।”

न्यायालय ने कहा कि AOR की जिम्मेदारी केवल याचिका दायर करना नहीं बल्कि उसके हर तथ्य की सत्यता सुनिश्चित करना है।

3. वरिष्ठ अधिवक्ता पदनाम पर पुनर्विचार की आवश्यकता

“वरिष्ठ अधिवक्ता पदनाम केवल सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वालों का एकाधिकार नहीं हो सकता। जिला और सत्र न्यायालयों में भी कई सक्षम अधिवक्ता हैं, जो इस पद के लिए योग्य हैं।”

कोर्ट ने कहा कि मौजूदा प्रक्रिया निचली अदालतों के अनुभवी अधिवक्ताओं के लिए अनुचित है, और इसे अधिक समावेशी बनाया जाना चाहिए।

4. चयन प्रक्रिया की खामियां

“क्या किसी वकील को वरिष्ठ अधिवक्ता बनने के लिए आवेदन करना चाहिए, या यह न्यायालय द्वारा दिया गया एक सम्मान होना चाहिए?”

“क्या व्यक्तिगत साक्षात्कार वकीलों की गरिमा के अनुरूप है?”

न्यायालय ने चयन प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया और गुप्त मतदान की वापसी का सुझाव दिया।

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न्यायालय का निर्णय

1. अभियुक्त के वकीलों पर कार्रवाई

  • न्यायालय ने AOR जयदीप पाटी और वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा।
  • सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के नियम 10 के तहत कार्रवाई की संभावना जताई गई।

2. वरिष्ठ अधिवक्ता चयन प्रक्रिया की पुनः समीक्षा

  • प्रधान न्यायाधीश (CJI) को यह मामला बड़ी पीठ के समक्ष भेजने का सुझाव दिया।
  • प्रक्रिया को अधिक समावेशी बनाने के लिए नए मानदंडों पर विचार करने का निर्देश दिया।
  • गुप्त मतदान को फिर से लागू करने का प्रस्ताव दिया।

3. AOR की नैतिक जिम्मेदारी को सख्त करने के निर्देश

  • सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) से सुझाव मांगे गए।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि AOR को हर तथ्य की सटीकता की जांच करनी होगी।

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