सुप्रीम कोर्ट की पहल: हाई कोर्ट्स में एड हॉक जजों की नियुक्ति से मुकदमों के बोझ को कम करने की कोशिश

भारत के उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों के बड़े बोझ को कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए एड हॉक जजों की नियुक्ति का सुझाव दिया है। मंगलवार को की गई इस घोषणा में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 224A का उपयोग करके अस्थायी जज नियुक्त किए जा सकते हैं, जो स्थायी जजों के साथ मिलकर विशेष रूप से आपराधिक अपीलों पर काम करेंगे।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने इस कदम को जरूरी बताते हुए आपराधिक अपीलों के लंबित मामलों की भयावह स्थिति पर प्रकाश डाला। उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में 2000 से 2021 के बीच एक नई आपराधिक अपील का निपटारा होने में औसतन 35 साल लगते हैं। इस दौरान 1.7 लाख अपीलें दायर की गईं, लेकिन केवल 31 मामलों का निपटारा हो सका।

READ ALSO  Big Relief to Akali Dal: Supreme Court stays the arrest of Bikram Majithia till 31 January

वर्तमान में, केवल इलाहाबाद हाई कोर्ट में लगभग 63,000 आपराधिक अपीलें लंबित हैं, जबकि पटना हाई कोर्ट में 20,000, कर्नाटक हाई कोर्ट में 20,000 और पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में 21,000 आपराधिक अपीलें लंबित हैं। न्यायालय ने जोर दिया कि इस समस्या से निपटने के लिए एड हॉक जजों की नियुक्ति जरूरी है। ये जज केवल आपराधिक अपीलों की सुनवाई करेंगे।

Video thumbnail

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि 2021 में दिए गए अपने फैसले को दोबारा देखने की आवश्यकता है, जिसमें अस्थायी जजों की नियुक्ति के लिए दिशानिर्देश दिए गए थे। अदालत ने इस प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से राय मांगी है। न्यायमूर्ति ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 224A का उपयोग स्थायी नियुक्तियों का विकल्प नहीं है, बल्कि लंबित मामलों के निपटारे में मदद करने के लिए एक अतिरिक्त उपाय है।

READ ALSO  Supreme Court Warns Telangana: Restore Forest Near Hyderabad University or Face Contempt Action

क्या है अनुच्छेद 224A?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 224A उच्च न्यायालयों में सेवानिवृत्त जजों की अस्थायी नियुक्ति से संबंधित है। इसके तहत रिटायर्ड जजों को दो या तीन साल की अवधि के लिए फिर से नियुक्त किया जा सकता है, बशर्ते उनकी सहमति हो। यह प्रावधान रिटायर्ड जजों के अनुभव का उपयोग करने का अवसर देता है, जिससे लंबित मामलों को सुलझाने में मदद मिल सके, साथ ही यह उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की शक्तियों को प्रभावित किए बिना न्यायालय के काम को सुचारू बनाने का प्रयास है।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश कटारा मामले में सजा में देरी के लिए दिल्ली के अधिकारी को अवमानना ​​नोटिस जारी किया
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles