हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने जस्टिस जी.ए. सनप की अध्यक्षता में भैंसों के परिवहन में क्रूरता के आरोपों से जुड़ी आपराधिक रिट याचिका संख्या 400/2024 में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अब्दुल समद अब्दुल करीम बनाम महाराष्ट्र राज्य और गोसेवा संवर्द्धन ट्रस्ट नामक इस मामले ने पशु अधिकारों, फर्जी दस्तावेजों और जांच करने में पुलिस की जिम्मेदारियों से जुड़े मुद्दों पर प्रकाश डाला है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 24 सितंबर, 2023 को हुई एक घटना से शुरू हुआ, जब यवतमाल जिले के रालेगांव पुलिस ने 17 भैंसों को जब्त किया था। कथित तौर पर पशुओं को अमानवीय परिस्थितियों में पंजीकरण संख्या MH-20 EL-2225 वाले वाहन में ठूंस दिया गया था, जिसके कारण पुलिस ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 और अन्य संबंधित कानूनों के उल्लंघन के लिए एफआईआर (संख्या 526/2023) दर्ज की।
याचिकाकर्ता और भैंसों के कथित मालिक अब्दुल समद अब्दुल करीम ने दावा किया कि उन्होंने किसानों से पशुओं को बिक्री या वध के लिए नहीं, बल्कि निजी इस्तेमाल के लिए खरीदा था। हालांकि, पुलिस ने तर्क दिया कि परिवहन कानूनी मानदंडों का घोर उल्लंघन करते हुए किया गया था, और जब्त किए गए पशुओं को देखभाल के लिए गोसेवा संवर्द्धन ट्रस्ट को सौंप दिया गया था। जब अब्दुल समद ने भैंसों की कस्टडी मांगी, तो उनके अनुरोध को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, रालेगांव और सत्र न्यायाधीश, यवतमाल दोनों ने खारिज कर दिया, जिसके कारण हाईकोर्ट के समक्ष वर्तमान रिट याचिका दायर की गई।
न्यायालय के कानूनी मुद्दे और अवलोकन
न्यायालय के समक्ष प्राथमिक कानूनी मुद्दे थे:
1. परिवहन में क्रूरता: क्या भैंसों का परिवहन पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 और संबंधित विनियमों के तहत नियमों के अनुसार किया गया था।
2. हिरासत का अधिकार: क्या भैंसों का मालिक होने का दावा करने वाला याचिकाकर्ता, मुकदमे के लंबित रहने के दौरान अंतरिम हिरासत का हकदार था।
3. स्वामित्व के दस्तावेजों का निर्माण: पुलिस द्वारा आरोप लगाया गया कि स्वामित्व स्थापित करने के लिए अब्दुल समद द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज गढ़े गए थे, क्योंकि कथित विक्रेताओं ने भैंसों को बेचने से इनकार किया था।
न्यायमूर्ति सनप ने 1978 के नियमों और केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 के नियम 56 के अनुपालन की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसमें कहा गया है कि एक माल वाहन में छह से अधिक मवेशियों का परिवहन नहीं किया जाना चाहिए और परिवहन के दौरान भोजन, पानी और चिकित्सा सहायता के लिए पर्याप्त प्रावधान सुनिश्चित किए जाने चाहिए। न्यायाधीश ने कहा कि जब्त वाहन इन आवश्यकताओं का अनुपालन नहीं करता था, क्योंकि पशुओं को इस तरह से बांधा गया था कि उन्हें बहुत दर्द और तकलीफ हो रही थी।
निर्णय के मुख्य उद्धरण
निर्णय में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां शामिल हैं:
1. स्वामित्व की पुष्टि करने में पुलिस की भूमिका पर:
“पुलिस को आधे-अधूरे मन से जांच नहीं करनी चाहिए। ऐसे मुद्दों को पुलिस द्वारा तार्किक निष्कर्ष तक ले जाना चाहिए।”
2. ट्रांसपोर्टरों और मालिकों की जिम्मेदारी पर:
“तथाकथित रसीदों के आधार पर भैंसों का मालिक होने के नाते याचिकाकर्ता को कानून और नियमों के प्रावधानों का सख्ती से पालन करना आवश्यक था। नियमों का घोर उल्लंघन किया गया।”
3. फर्जी दस्तावेज के पीछे संभावित सिंडिकेट पर:
“ऐसा प्रतीत होता है कि मार्केट कमेटी के माध्यम से झूठी रसीदें तैयार करवाना याचिकाकर्ता की कार्यप्रणाली है। पुलिस को सच्चाई का पता लगाने के लिए गहन जांच करने की आवश्यकता है।”
न्यायालय का निर्णय
हाईकोर्ट ने अब्दुल समद को भैंसों की अंतरिम हिरासत देने से इनकार करते हुए निचली अदालतों के फैसले को बरकरार रखा। न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता विश्वसनीय दस्तावेजों के माध्यम से पशुओं के वैध स्वामित्व को स्थापित करने में विफल रहा है और इस बात पर जोर दिया कि जब्त किए गए पशुओं को आपराधिक मुकदमे के दौरान निपटाया नहीं जा सकता।
न्यायालय ने पुलिस को आगे की जांच करने का आदेश दिया, जिसमें कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) के सदस्यों सहित एक व्यापक सिंडिकेट की संभावित भागीदारी पर ध्यान केंद्रित किया गया, जो फर्जी खरीद रसीदें बनाने में मदद करता है। न्यायमूर्ति सनप ने दोहराया कि भैंसों की अंतिम हिरासत आपराधिक कार्यवाही के परिणाम पर निर्भर करेगी, और पशुओं का कल्याण प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए।
याचिकाकर्ता अब्दुल समद का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता ए.आर. इंगोले ने किया, जबकि सहायक लोक अभियोजक एस.वी. कोल्हे महाराष्ट्र राज्य के लिए पेश हुए। अधिवक्ता राजू गुप्ता ने गोसेवा संवर्द्धन ट्रस्ट का प्रतिनिधित्व किया।