भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में देश के विभिन्न वैधानिक प्राधिकरणों के लिए अपीलीय मुकदमों में उनके अधिकारों की सीमाएं स्पष्ट की हैं। यह मामला एयरपोर्ट्स इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AERA) से जुड़ा था, जिसने दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण (TDSAT) के हवाई सेवाओं के लिए टैरिफ निर्धारण पर फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी शामिल था। मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह निर्णय दिया कि यद्यपि अर्ध-न्यायिक प्राधिकरणों को सामान्यतः अपनी ही आदेशों का अपील में बचाव नहीं करना चाहिए, लेकिन AERA जैसे नियामक प्राधिकरणों को सार्वजनिक हित और नियामक दृष्टिकोण के मामलों में ऐसा करने का अधिकार है।
यह निर्णय उन तरीकों को प्रभावित करेगा जिनसे वैधानिक निकाय अपीलीय मुकदमों का सामना करेंगे, विशेष रूप से दूरसंचार, ऊर्जा और बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में, जहां नियामक निर्णयों का व्यापक जनहित और आर्थिक प्रभाव होता है।
मामले की पृष्ठभूमि:
यह विवाद AERA की भूमिका से उत्पन्न हुआ, जो एयरपोर्ट इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया अधिनियम, 2008 (AERA अधिनियम) के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है, जिसका काम हवाई सेवाओं के लिए टैरिफ और शुल्कों को नियंत्रित करना और प्रदर्शन मानकों की निगरानी करना है। AERA के अधिकार क्षेत्र में सरकारी और निजी दोनों प्रकार के हवाई अड्डे आते हैं, जिनमें दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी शामिल है, जिसे एक निजी कंसोर्टियम द्वारा संचालित किया जाता है।
AERA ने कई आदेश जारी किए थे जो हवाई सेवाओं के लिए शुल्क निर्धारण से संबंधित थे, लेकिन इन आदेशों को TDSAT के समक्ष चुनौती दी गई थी, जो AERA अधिनियम के तहत अपीलीय निकाय के रूप में कार्य करता है। TDSAT के फैसले के बाद AERA ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिससे यह महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न उठा कि क्या एक वैधानिक प्राधिकरण, विशेष रूप से एक अर्ध-न्यायिक शक्तियों का उपयोग करने वाला निकाय, अपनी ही निर्णयात्मक फैसले के खिलाफ अपील कर सकता है।
विधिक मुद्दे:
1. AERA की अपील की स्वीकार्यता: प्रमुख विधिक मुद्दा यह था कि क्या AERA, एक वैधानिक नियामक के रूप में, AERA अधिनियम की धारा 31 के तहत अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती देने का अधिकार रखता है। प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि AERA, एक अर्ध-न्यायिक निकाय होने के नाते, “पीड़ित पक्ष” नहीं माना जा सकता है, जो अपील दायर करने के योग्य हो।
2. अर्ध-न्यायिक बनाम नियामक कार्य: एक और महत्वपूर्ण मुद्दा AERA की टैरिफ निर्धारण की भूमिका थी। अदालत को यह तय करना था कि क्या AERA द्वारा हवाई सेवाओं के टैरिफ का निर्धारण एक पूरी तरह से नियामक कार्य था, जो अपील में उसकी भागीदारी को सही ठहरा सके, या यह एक अर्ध-न्यायिक कार्य था, जो AERA की अपनी ही आदेशों का बचाव करने की क्षमता को सीमित करता है।
3. अपीलों में वैधानिक प्राधिकरणों की भूमिका: व्यापक विधिक प्रश्न यह था कि क्या न्यायिक कार्य करने वाले नियामक निकाय उन अपीलों में भाग ले सकते हैं, जहां उनके निर्णयों की जांच हो रही हो, या क्या उनका इस तरह के मामलों में भाग लेना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
अदालत का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में AERA के पक्ष में निर्णय दिया और AERA अधिनियम की धारा 31 के तहत अपीलों की अनुमति दी। मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी. वाई. चंद्रचूड़ द्वारा लिखे गए निर्णय में कहा गया कि AERA की अपील में भागीदारी उचित थी, क्योंकि उसकी भूमिका केवल नियामक नहीं बल्कि सार्वजनिक हित की रक्षा से भी जुड़ी हुई थी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि AERA का टैरिफ निर्धारण कार्य मुख्यतः नियामक है, न कि एक निर्णयात्मक कार्य, और इसलिए AERA को अपने नियामक उत्तरदायित्वों और जनहित को प्रभावित करने वाले निर्णयों के खिलाफ अपील करने का अधिकार है।
मुख्य टिप्पणियाँ:
अदालत ने कहा:
“न्यायाधीश केवल अपने निर्णयों के माध्यम से बोलते हैं। इस सिद्धांत में कोई भी कमी न्यायिक प्रणाली के पूरे ढांचे को तोड़ देगी।”
हालांकि, अदालत ने नियामक प्राधिकरणों को न्यायिक निकायों से अलग करते हुए कहा:
“यदि कोई प्राधिकरण अपने नियामक कार्यों का प्रयोग करते हुए कोई आदेश जारी करता है, तो उसे अपील में प्रतिवादी के रूप में शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि उस प्राधिकरण का जनहित की सुरक्षा में महत्वपूर्ण हित होता है।”
कार्यवाही का विवरण:
मामले में दोनों पक्षों की ओर से उच्च स्तरीय प्रतिनिधित्व हुआ। भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भारत सरकार और AERA का पक्ष रखा, जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता के.के. वेणुगोपाल, डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी और अरविंद दातार ने प्रतिवादियों, जिसमें दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा लिमिटेड (DIAL) शामिल था, का प्रतिनिधित्व किया। प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि AERA, टैरिफ निर्धारित करने वाला निकाय होने के नाते, अपनी ही आदेशों के खिलाफ अपील नहीं कर सकता, जिसे अदालत ने अस्वीकार कर दिया।
यह निर्णय पहले के अर्ध-न्यायिक निकायों पर दिए गए फैसलों पर आधारित था, जिनमें PTC इंडिया लिमिटेड बनाम केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग का प्रसिद्ध मामला शामिल है, जिसने नियामक आयोगों की टैरिफ निर्धारण से संबंधित फैसलों में अपील करने की भूमिका पर प्रकाश डाला था।