सेवा से बर्खास्तगी अनुकंपा भत्ते के लिए अयोग्यता का आधार नहीं है: दिल्ली हाईकोर्ट

एक ऐतिहासिक फैसले में, दिल्ली हाईकोर्ट ने पुष्टि की कि सेवा से बर्खास्तगी किसी व्यक्ति को अनुकंपा भत्ता प्राप्त करने के लिए स्वतः अयोग्य नहीं बनाती है। यह निर्णय न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर और न्यायमूर्ति डॉ. सुधीर कुमार जैन की खंडपीठ ने श्रीमती उषा देवी बनाम भारत संघ एवं अन्य शीर्षक से डब्ल्यू.पी.(सी) 5687/2024 में सुनाया। यह मामला याचिकाकर्ता उषा देवी के अपने दिवंगत पति पप्पू को रक्षा मंत्रालय में सफाई कर्मचारी के पद से बर्खास्त किए जाने के बाद अनुकंपा भत्ते के लिए किए गए दावे के इर्द-गिर्द घूमता है।

मामले की पृष्ठभूमि

रक्षा मंत्रालय में सफाई कर्मचारी के रूप में काम करने वाले पप्पू को आदतन अनुपस्थित रहने के कारण 1997 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उषा देवी के अनुसार, उनके पति मनोवैज्ञानिक समस्याओं से पीड़ित थे और अक्सर अपने परिवार को बताए बिना लंबे समय तक घर से बाहर चले जाते थे। 1998 में, ऊषा देवी को किसी तीसरे पक्ष के माध्यम से पता चला कि पप्पू की पुणे में मृत्यु हो गई है। केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 41 के तहत अनुकंपा भत्ते का दावा करने के उनके प्रयासों के बावजूद, रक्षा मंत्रालय ने उनके पति की सेवा से बर्खास्तगी का हवाला देते हुए उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया।

उषा देवी की दुर्दशा, उनकी खराब वित्तीय स्थिति से और भी जटिल हो गई, जिसके कारण उन्हें केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) का दरवाजा खटखटाना पड़ा, जिसने मई 2022 में उनकी याचिका खारिज कर दी। कोई अन्य विकल्प न होने पर, उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की।

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मुख्य कानूनी मुद्दे

अदालत के समक्ष मुख्य मुद्दा यह था कि क्या बर्खास्त सरकारी कर्मचारी की विधवा के रूप में ऊषा देवी, सीसीएस (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 41 के तहत अनुकंपा भत्ते की हकदार हो सकती हैं। प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि चूंकि पप्पू को आदतन अनुपस्थिति के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, इसलिए उन्होंने अपने पेंशन संबंधी लाभों को खो दिया था, और इस प्रकार, उनकी विधवा किसी भी अनुकंपा भत्ते का दावा नहीं कर सकती थी।

दूसरी ओर, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसके पति की अनुपस्थिति उसकी मनोवैज्ञानिक स्थिति का परिणाम थी और बर्खास्तगी के बावजूद, परिवार को उनकी अत्यधिक वित्तीय परेशानी को देखते हुए किसी भी अनुकंपा राहत से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

न्यायालय की टिप्पणियाँ और निर्णय

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने विस्तृत निर्णय में इस बात पर जोर दिया कि किसी कर्मचारी की बर्खास्तगी उसके परिवार को अनुकंपा भत्ता प्राप्त करने से स्वतः ही अयोग्य नहीं बनाती है। पीठ के लिए लिखते हुए न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने महिंदर दत्त शर्मा बनाम भारत संघ में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि बर्खास्तगी के लिए जिम्मेदार कदाचार की प्रकृति अनुकंपा भत्ते के लिए पात्रता निर्धारित करने के लिए अप्रासंगिक है, जब तक कि कदाचार में नैतिक अधमता, बेईमानी या अन्य गंभीर उल्लंघन शामिल न हों।

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न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला:

“जहां कर्मचारी की बर्खास्तगी या निष्कासन के लिए जिम्मेदार कदाचार महिंदर दत्त शर्मा में वर्गीकृत गंभीर कदाचार की पांच श्रेणियों में से किसी में नहीं आता है, कर्मचारी का परिवार अभी भी अनुकंपा भत्ते का हकदार हो सकता है।” 

इस सिद्धांत को वर्तमान मामले में लागू करते हुए, न्यायालय ने पाया कि पप्पू का कदाचार – आदतन अनुपस्थित रहना – बेईमानी, धोखाधड़ी या नैतिक पतन जैसी किसी भी गंभीर श्रेणी में नहीं आता। पीठ ने यह भी पाया कि उषा देवी का दावा उनकी अत्यधिक वित्तीय कठिनाई से पुष्ट हुआ था। उन्होंने अपनी गरीबी, स्वास्थ्य समस्याओं और इस तथ्य के सबूत दिए थे कि वे गरीबी रेखा (बीपीएल) से नीचे रह रही थीं। न्यायालय ने इस तथ्य पर भी विचार किया कि प्रतिवादियों ने इन वित्तीय कठिनाइयों पर विवाद नहीं किया।

न्यायालय द्वारा महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ

निर्णय सुनाते समय, न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की:

“अनुकंपा भत्ते का उद्देश्य अत्यधिक वित्तीय कठिनाई के मामलों में बर्खास्त कर्मचारी के परिवार को राहत प्रदान करना है। बर्खास्तगी से ही परिवार को और अधिक सज़ा नहीं मिलनी चाहिए, खासकर जब कदाचार ऐसी प्रकृति का न हो जिसमें बेईमानी या नैतिक पतन शामिल हो।” 

न्यायालय ने आगे कहा कि उषा देवी के अनुकंपा भत्ते के दावे को अस्वीकार करने का मंत्रालय का निर्णय “गलत दिशा में उठाया गया” निर्णय था, क्योंकि मंत्रालय ने परिवार की वर्तमान परिस्थितियों के बजाय केवल पप्पू की बर्खास्तगी पर ध्यान केंद्रित किया था।

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अंतिम निर्णय

दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उषा देवी के दावे को अस्वीकार कर दिया गया था। न्यायालय ने रक्षा मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह निर्णय की तिथि से चार सप्ताह के भीतर उषा देवी को अनुकंपा भत्ता प्रदान करे। न्यायालय ने उषा देवी के दावे में काफी देरी का हवाला देते हुए मामले को प्रतिवादियों को वापस भेजने से परहेज किया, जो पहले से ही नौ वर्षों से लंबित था।

पक्ष और प्रतिनिधित्व

– याचिकाकर्ता: श्रीमती उषा देवी

– प्रतिवादी: भारत संघ और अन्य

– पीठ: न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर और न्यायमूर्ति डॉ. सुधीर कुमार जैन

– याचिकाकर्ता के वकील: सुश्री श्रीपर्णा चटर्जी और श्री सौमित्र चटर्जी

– प्रतिवादियों के वकील: श्री मनीष कुमार, वरिष्ठ पैनल वकील

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