एक ऐतिहासिक फैसले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दिए गए तलाक के आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें इस बात की पुष्टि की गई कि तलाक के लिए आधार के रूप में क्रूरता को ठोस तथ्यों के साथ साबित किया जाना चाहिए, न कि केवल पारिवारिक झगड़े के आधार पर। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि आदर्श पारिवारिक संबंधों का अभाव वैवाहिक संबंधों में क्रूरता के बराबर नहीं है। यह फैसला न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता और प्रतिवादी की शादी दिसंबर 2011 में हुई थी। हालांकि, उनकी शादी जल्दी ही खराब हो गई, जिसके कारण 2013 में क्रूरता के आधार पर तलाक की याचिका दायर की गई। प्रतिवादी ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता ने झगड़ालू व्यवहार प्रदर्शित किया और परिवार के सदस्यों के साथ असभ्य व्यवहार किया, विशेष रूप से अपीलकर्ता पर जनवरी 2013 में प्रतिवादी की मां पर हमले में भाग लेने का आरोप लगाया। बागपत में पारिवारिक न्यायालय ने स्थायी गुजारा भत्ता का प्रावधान किए बिना इन आरोपों को स्वीकार करते हुए 2015 में विवाह को भंग कर दिया था, जिसे इस अपील में चुनौती दी गई थी।
मुख्य कानूनी मुद्दे
अपील में मुख्य मुद्दा इस बात पर केंद्रित था कि क्या क्रूरता के आरोपों को पर्याप्त सबूतों के साथ साबित किया गया था। प्रतिवादी ने दावा किया कि उसकी माँ पर अपीलकर्ता और उसके रिश्तेदारों ने हमला किया था, लेकिन हाईकोर्ट ने इस बात की जांच की कि क्या यह हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत कानूनी क्रूरता है।
अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि आरोप निराधार थे और क्रूरता के वास्तविक कृत्यों के बजाय काफी हद तक व्यक्तिगत शिकायतों पर आधारित थे। इसके अलावा, यह बताया गया कि कथित हमले से संबंधित आपराधिक मामले के परिणामस्वरूप सभी आरोपी व्यक्तियों को बरी कर दिया गया, और तलाक की कार्यवाही में प्रस्तुत साक्ष्य में विश्वसनीयता की कमी थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ और निर्णय
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि क्रूरता के आरोपों को तथ्यों द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए और स्पष्ट साक्ष्यों के साथ सिद्ध किया जाना चाहिए। न्यायालय ने पाया कि क्रूरता का एकमात्र विशिष्ट उदाहरण प्रतिवादी की माँ पर कथित हमला था, लेकिन न्यायालय ने पाया कि घटना को क्रूरता के कृत्य के रूप में स्थापित करने के लिए साक्ष्य अपर्याप्त थे।
अपने निर्णय में, न्यायालय ने कई प्रमुख टिप्पणियाँ कीं:
1. क्रूरता का प्रमाण: न्यायालय ने कहा, “क्रूरता के आरोपों को तथ्यों के साथ सिद्ध किया जाना चाहिए, और ‘आदर्श पारिवारिक संबंधों’ की अनुपस्थिति स्वचालित रूप से क्रूरता के दावों को पुष्ट नहीं करती है।” न्यायालय ने कहा कि परिवारों के बीच झगड़े और तनाव, हालांकि दुर्भाग्यपूर्ण थे, क्रूरता के आधार पर तलाक देने के लिए आवश्यक कानूनी मानक को पूरा नहीं करते थे।
2. चोट साबित करने में विफलता: न्यायालय ने यह भी बताया कि प्रतिवादी अपनी माँ को कथित चोटों के बारे में निर्णायक सबूत देने में विफल रहा। जबकि एक मेडिकल रिपोर्ट का हवाला दिया गया था, यह न तो अपने मूल रूप में दायर की गई थी और न ही अदालत में साबित हुई थी। इसके अतिरिक्त, प्रतिवादी ने स्वयं स्वीकार किया कि कथित हमले के समय कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी, जिससे दावा और कमजोर हो गया।
3. सिविल मामलों में कानूनी मानक: न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि तलाक के मामलों जैसे सिविल कार्यवाही को संभावनाओं के संतुलन पर तय किया जाना चाहिए, लेकिन इस मानक के तहत भी, प्रतिवादी क्रूरता साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत देने में विफल रहा।
4. केवल पारिवारिक विवाद क्रूरता नहीं: न्यायालय ने कहा कि पारिवारिक विवाद और झगड़े कानून के तहत क्रूरता नहीं हैं। न्यायालय ने टिप्पणी की, “अदालतों को यह तय करने के लिए आदर्श परिवार या आदर्श पारिवारिक संबंधों की कल्पना करने की आवश्यकता नहीं है कि शिकायत की गई कार्रवाई क्रूरता की श्रेणी में आती है या नहीं।” इसने इस बात पर प्रकाश डाला कि सामान्य पारिवारिक तनाव, भले ही परेशान करने वाला हो, तलाक के लिए वैध आधार नहीं है जब तक कि वे कानूनी क्रूरता के स्तर तक न पहुंच जाएं।
5. प्रक्रियात्मक त्रुटियाँ: न्यायालय ने निचली अदालत की मौखिक साक्ष्य पर भरोसा करने के लिए आलोचना की, जिसका समर्थन वाद में दलीलों द्वारा नहीं किया गया। इसमें कहा गया कि पारिवारिक न्यायालय ने अप्रमाणित आरोपों को ध्यान में रखकर तथा क्रूरता साबित करने के लिए उचित कानूनी मानकों का पालन करने में विफल होकर गलती की।
पारिवारिक न्यायालय के फैसले को दरकिनार करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपर्याप्त साक्ष्य के कारण क्रूरता के दावे को खारिज करते हुए अपील को अनुमति दे दी।
मामले का विवरण:
– मामला संख्या: प्रथम अपील संख्या 543/2015
– पीठ: न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और दोनादी रमेश