सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उस जनहित याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा, जिसमें भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की नियुक्ति की प्रक्रिया को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह “स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी नहीं है”।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने जनहित याचिका याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह की दलीलों पर ध्यान दिया कि सीएजी की नियुक्ति करने वाली कार्यपालिका की मौजूदा प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव है।
पीठ ने अनुपम कुलश्रेष्ठ और अन्य द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्रीय कानून और न्याय और वित्त मंत्रालय को नोटिस जारी किया।
याचिका में यह घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई है कि सीएजी की नियुक्ति के लिए अपनाई गई प्रक्रिया भारत के संविधान के आदेश के खिलाफ है और यह स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी नहीं है।
याचिका में कहा गया है कि मौजूदा प्रणाली के तहत, केंद्रीय कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाला कैबिनेट सचिवालय, शीर्ष सरकारी लेखा परीक्षक की नियुक्ति के लिए विचार करने के लिए प्रधान मंत्री को शॉर्टलिस्ट किए गए नामों की एक सूची भेजता है।
जनहित याचिका में कहा गया है कि प्रधान मंत्री शॉर्टलिस्ट किए गए नामों पर विचार करते हैं और उनमें से एक को मंजूरी के लिए भारत के राष्ट्रपति के पास भेजते हैं और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद, चयनित व्यक्ति को सीएजी के रूप में नियुक्त किया जाता है।