गवाह की प्रतिक्रिया को एक तय फॉर्मूले से नहीं आंका जा सकता: सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में बरी करने का फैसला पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए हत्या के एक मामले में दो आरोपियों की सजा-ए-उम्र और दोषसिद्धि को बहाल कर दिया है। इन दोनों पर एक घर में आग लगाने का आरोप था, जिसमें दो मासूम बच्चियों की मौत हो गई थी। अदालत ने कहा कि किसी गवाह की प्रतिक्रिया को एक समान मानक के आधार पर नहीं परखा जा सकता और यह त्रुटिपूर्ण था कि हाईकोर्ट ने बच्चों के माता-पिता की गवाही इसलिए अविश्वसनीय मान ली क्योंकि वे पहले खुद की जान बचाकर भागे थे।

यह फैसला जस्टिस पंकज मित्थल और जस्टिस प्रसन्न बी. वराले की पीठ ने सुनाया। कोर्ट ने झारखंड राज्य द्वारा नीलू गंझू और महबूब अंसारी की बरी के खिलाफ दायर अपील को स्वीकार कर लिया, जबकि तीसरे आरोपी धनुषधारी गंझू को दिया गया अलिबी (घटनास्थल पर मौजूद न होने का दावा) स्वीकार करते हुए उसकी बरी को बरकरार रखा।

मामले की पृष्ठभूमि

यह घटना 1 और 2 अप्रैल, 1992 की मध्यरात्रि की है। वादी संतोष कुमार सिंह (PW1), जो खूंटी में बस एजेंट के रूप में कार्यरत थे, अपनी पत्नी माधुरी देवी (PW5) और दो बेटियों के साथ घर में सो रहे थे। रात करीब 1:45 बजे एक विस्फोट की आवाज से उनकी नींद खुली और देखा कि घर में आग लगी हुई थी।

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फ़र्दबयान के अनुसार, पति-पत्नी पीछे के दरवाजे से बाहर निकलने में सफल रहे, लेकिन उनकी दोनों नाबालिग बेटियाँ आग में फँसकर मर गईं। भागते समय उन्होंने देखा कि नीलू गंझू, महबूब अंसारी, अनिल गंझू और एक अज्ञात व्यक्ति घटनास्थल से भाग रहे थे।

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वादी के अनुसार, घटना के पीछे व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता थी। घटना से करीब 15 दिन पहले आरोपियों ने उसे बस एजेंट की नौकरी छोड़ने की धमकी दी थी और मारपीट भी की थी।

खूंटी के अपर न्यायिक आयुक्त की अदालत ने नीलू गंझू, महबूब अंसारी और अन्य को IPC की धारा 302, 436 और 34 के तहत दोषी ठहराया और उम्रकैद की सजा दी थी।

हालांकि, झारखंड हाईकोर्ट ने उन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। हाईकोर्ट ने यह मानते हुए कि माता-पिता का आचरण “अस्वाभाविक” था और मौके पर बम के अवशेष नहीं मिले, अभियोजन की कहानी को अविश्वसनीय माना। साथ ही स्वतंत्र गवाहों की गैर-हाजिरी पर भी सवाल उठाए।

सुप्रीम कोर्ट में दलीलें

राज्य सरकार ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष ने दोनों आरोपियों के खिलाफ प्रेरणा (motive) और अवसर (opportunity) को स्पष्ट रूप से सिद्ध किया है। वादी ने घटना के तुरंत बाद दिए गए बयान में उनका नाम लिया था और उन्हें मौके से भागते हुए देखा था। दोनों गवाहों की गवाही आपस में मेल खाती है और विश्वसनीय है।

दूसरी ओर, आरोपियों ने हाईकोर्ट के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि अंधेरे और धुएं में किसी को पहचानना असंभव था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि वादी की स्वाभाविक प्रतिक्रिया पहले बच्चों को बचाने की होनी चाहिए थी। धनुषधारी गंझू ने अलिबी का दावा किया कि घटना के समय वह एक नर्सिंग होम में भर्ती था।

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सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा और निर्णय

धनुषधारी गंझू की बरी बरकरार

कोर्ट ने पाया कि धनुषधारी गंझू 31 मार्च 1992 से 8 अप्रैल 1992 तक मधुरी नर्सिंग होम में हाइड्रोसील ऑपरेशन के लिए भर्ती था। इस बात के दस्तावेज़ी प्रमाण मौजूद थे, जिसे डॉक्टर (DW1) की गवाही ने भी पुष्ट किया। नर्सिंग होम घटनास्थल से 38 किमी दूर था, जिससे उसकी उपस्थिति “व्यवहारिक रूप से असंभव” मानी गई। इस आधार पर कोर्ट ने उसकी बरी को बरकरार रखा।

नीलू गंझू और महबूब अंसारी की बरी रद्द

कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट ने इन दोनों के संबंध में साक्ष्यों की सही तरीके से सराहना नहीं की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों का मामला नहीं था, क्योंकि वादी (PW1) एक प्रत्यक्षदर्शी था जिसने आरोपियों को मौके से भागते देखा था।

हाईकोर्ट द्वारा बम के अवशेष न मिलने पर उठाए गए सवाल को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

“वादी ने बेशक बम का उल्लेख किया है, लेकिन प्रस्तुत साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है कि कोई विस्फोटक पदार्थ था, जो बम जैसा परिष्कृत न हो, फिर भी आग लगाने वाला विस्फोटक था।”

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सबसे महत्वपूर्ण बात, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा माता-पिता के आचरण पर शक जताने को खारिज करते हुए कहा:

“गवाहों की प्रतिक्रिया को लेकर कोई निश्चित नियम नहीं हो सकता। यह इस न्यायालय द्वारा पहले भी कहा गया है।”

कोर्ट ने Lahu Kamlakar Patil v. State of Maharashtra (2013) केस का हवाला देते हुए दोहराया:

“विभिन्न गवाह अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं—कुछ सदमे में आ जाते हैं, कुछ घबरा जाते हैं, कुछ रोने लगते हैं और कुछ घटनास्थल से भाग जाते हैं… मानव प्रतिक्रिया में एकरूपता नहीं हो सकती।”

कोर्ट ने माना कि माता-पिता (PW1 और PW5) की गवाही भरोसेमंद है और केवल इसलिए खारिज नहीं की जा सकती कि उन्होंने पहले खुद को बचाया।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला रद्द करते हुए नीलू गंझू और महबूब अंसारी की दोषसिद्धि और उम्रकैद की सजा को बहाल कर दिया। दोनों को दो हफ्तों के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष समर्पण करने का निर्देश दिया गया है। तीसरे आरोपी अनिल गंझू की अपील लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो गई थी।

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