मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि पत्नी पोर्नोग्राफी देखती है या आत्म-संतुष्टि (सेल्फ-प्लेज़र) में संलग्न होती है, तो इसे हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पति के प्रति क्रूरता नहीं माना जाएगा, जब तक कि यह स्पष्ट रूप से वैवाहिक संबंधों को प्रभावित न करे। यह फैसला जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन और जस्टिस आर. पूर्णिमा की खंडपीठ ने C.M.A.(MD) Nos.460 & 1515 of 2024 में सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला पति (अपीलकर्ता) और पत्नी (प्रतिवादी) के बीच वैवाहिक विवाद से जुड़ा था। दोनों का विवाह 1 जुलाई 2018 को अरुलमिघु पसुपतीश्वर मंदिर, करूर में संपन्न हुआ था। हालांकि, 9 दिसंबर 2020 से वे अलग रह रहे थे।
पति ने तलाक के लिए अर्जी दायर की, जिसमें दो प्रमुख आरोप लगाए गए:

- पत्नी को संक्रामक स्वरूप का यौन रोग (venereal disease) है।
- पत्नी की कुछ आदतें, जैसे पोर्न देखना, आत्म-संतुष्टि में संलग्न होना, घरेलू कार्यों से बचना, ससुरालवालों के साथ दुर्व्यवहार करना और मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग, क्रूरता के दायरे में आती हैं।
हालांकि, करूर की फैमिली कोर्ट ने पति की तलाक की याचिका खारिज कर दी और पत्नी की दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना की अर्जी स्वीकार कर ली। इससे असंतुष्ट होकर पति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
मुख्य कानूनी मुद्दे
- यौन रोग को तलाक का आधार बनाना – पति ने दावा किया कि उसकी पत्नी को यौन संचारित रोग (STD) था, जिससे उनके दांपत्य जीवन पर असर पड़ा।
- हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के तहत क्रूरता का आरोप – पति ने तर्क दिया कि पत्नी का पोर्न देखना, आत्म-संतुष्टि करना, घरेलू काम न करना और ससुरालवालों के साथ दुर्व्यवहार करना क्रूरता की श्रेणी में आता है।
अदालत के अवलोकन और फैसला
यौन रोग का आरोप साबित नहीं हुआ
अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति पर यौन संचारित रोग का आरोप लगाना एक गंभीर मामला है, जिसे ठोस सबूतों से साबित करना आवश्यक होता है। पति अपनी पत्नी की कोई चिकित्सीय जांच रिपोर्ट पेश करने में असफल रहा।
न्यायालय ने कहा:
“केवल यह तथ्य कि कोई व्यक्ति किसी बीमारी से ग्रस्त है, तलाक का आधार नहीं हो सकता। संबंधित पक्ष को यह अवसर दिया जाना चाहिए कि वह साबित कर सके कि यह किसी अनैतिक आचरण का परिणाम नहीं है, बल्कि किसी अन्य कारण से हुआ है।”
पति ने पत्नी की चिकित्सीय जांच की कोई मांग भी नहीं की, जिससे अदालत ने इस आरोप को निराधार माना और खारिज कर दिया।
पोर्न देखने और आत्म-संतुष्टि को तलाक का आधार नहीं माना
अदालत ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति निजी रूप से पोर्न देखता है, तो जब तक यह अवैध (जैसे बाल पोर्नोग्राफी) नहीं है, तब तक इसे अपराध या क्रूरता नहीं माना जा सकता।
न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने P.G. Sam Infant Jones v. State, 2021 SCC OnLine Mad 2241 का हवाला देते हुए कहा कि निजी रूप से पोर्न देखना भारतीय कानून के तहत दंडनीय नहीं है।
मस्तुरबेशन (आत्म-संतुष्टि) पर अदालत का विचार:
“शादी के बाद एक महिला पत्नी बनती है, लेकिन उसकी व्यक्तिगत पहचान बनी रहती है। उसका स्त्रीत्व उसकी वैवाहिक स्थिति से विलीन नहीं हो जाता।”
न्यायालय ने आगे कहा:
“जब पुरुषों के बीच हस्तमैथुन को सामान्य माना जाता है, तो महिलाओं द्वारा इसे करने को कलंकित नहीं किया जाना चाहिए।”
अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि आत्म-संतुष्टि करने या पोर्न देखने की वजह से पत्नी अपने वैवाहिक दायित्वों को निभाने में असमर्थ रहती, तो यह क्रूरता मानी जा सकती थी। लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला कि पत्नी ने अपने वैवाहिक कर्तव्यों की अवहेलना की हो।
न्यायालय ने कहा:
“आत्म-संतुष्टि कोई वर्जित कार्य नहीं है; इसे करने से विवाह का नाश नहीं होता।”
“यदि कोई व्यक्ति पोर्न देखता है, तो इससे केवल उसकी मानसिक स्थिति प्रभावित हो सकती है। लेकिन जब तक यह उसकी दांपत्य ज़िम्मेदारियों को बाधित नहीं करता, इसे क्रूरता नहीं माना जा सकता।”
क्रूरता साबित नहीं हुई
अदालत ने यह भी कहा कि पति ने यह साबित करने के लिए कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए कि उसकी पत्नी ने ससुरालवालों के साथ दुर्व्यवहार किया या घरेलू कार्यों से बचती थी। उसने अपनी शिकायत को साबित करने के लिए अपने माता-पिता तक को गवाह के रूप में नहीं बुलाया।
न्यायालय ने यह कहते हुए पति की अपील खारिज कर दी:
“जब तक कोई कार्य कानून के विरुद्ध नहीं है, तब तक किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को रोका नहीं जा सकता।”