झारखंड हाईकोर्ट ने जमशेदपुर फैमिली कोर्ट द्वारा पारित तलाक की डिक्री को रद्द करते हुए स्पष्ट किया है कि यदि किसी पत्नी को प्रताड़ना के कारण अपना ससुराल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है, तो इसे कानूनन ‘परित्याग’ (Desertion) नहीं माना जा सकता।
जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि निचली अदालत का निर्णय “विकृत” (Perverse) था क्योंकि उसने क्रूरता और परित्याग से संबंधित सबूतों का सही मूल्यांकन नहीं किया। हाईकोर्ट ने पाया कि वास्तव में पति ने पत्नी का परित्याग किया था, न कि पत्नी ने।
मामले की पृष्ठभूमि
यह अपील पत्नी (अपीलकर्ता) द्वारा फैमिली कोर्ट, जमशेदपुर के 7 अक्टूबर 2021 के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी। फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i)(i-a)(i-b) के तहत क्रूरता और परित्याग के आधार पर पति के पक्ष में तलाक की डिक्री पारित की थी।
मामले के तथ्यों के अनुसार, दोनों का विवाह 27 अप्रैल 2009 को जमशेदपुर में हुआ था। पति (प्रतिवादी), जो पेशे से एक वकील हैं, दाहिने हाथ और बाएं पैर में शारीरिक विकलांगता से ग्रस्त हैं। पति का आरोप था कि पत्नी उनकी विकलांगता से नाखुश थी, उसने सहवास से इनकार कर दिया और परिवार को धमकी देने के लिए मच्छर भगाने वाला लिक्विड पीकर आत्महत्या का प्रयास किया। पति ने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी ने सितंबर 2011 में अपनी बेटी के साथ ससुराल छोड़ दिया और वापस नहीं लौटी।
दूसरी ओर, पत्नी ने अपने लिखित बयान में इन आरोपों का खंडन किया। उसका कहना था कि उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया और पति व ससुराल वालों ने उसे जबरदस्ती मच्छर भगाने वाला लिक्विड पिलाया। पत्नी ने बताया कि 10 नवंबर 2010 को उसने एक बेटी को जन्म दिया, लेकिन पति या ससुराल वाले न तो उससे मिलने आए और न ही कोई वित्तीय सहायता प्रदान की। उसने कहा कि वह अब भी अपने पति के साथ रहने को तैयार है।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ता पत्नी की ओर से अधिवक्ता राहुल कुमार ने तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट ने यह समझने में गलती की कि पत्नी ने स्वेच्छा से घर नहीं छोड़ा था, बल्कि उसे प्रताड़ना के कारण जाने के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने कहा कि पति क्रूरता साबित करने में विफल रहे हैं और आईपीसी की धारा 498ए के तहत लंबित आपराधिक मामला अपने आप में क्रूरता का प्रमाण नहीं है।
विपक्षी पति की ओर से अधिवक्ता अनुराग कश्यप ने निचली अदालत के फैसले का समर्थन करते हुए तर्क दिया कि पत्नी ने 2011 में बिना किसी उचित कारण के पति का त्याग किया था और उसका व्यवहार क्रूरता की श्रेणी में आता है।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
हाईकोर्ट ने गवाहों और सबूतों की बारीकी से जांच की और पाया कि फैमिली कोर्ट का निष्कर्ष तथ्यों पर आधारित नहीं था।
क्रूरता के आरोप पर: कोर्ट ने पाया कि पति द्वारा लगाए गए आत्महत्या के प्रयास के आरोप की पुष्टि गवाहों के बयानों से नहीं होती। कोर्ट ने कहा:
“इस प्रकार, प्रतिवादी पति की ओर से परीक्षित गवाहों के बयानों से अपीलकर्ता/पत्नी द्वारा आत्महत्या के प्रयास के तथ्य की पुष्टि नहीं हुई है और यह भी स्वीकार किया गया है कि उक्त घटना की सूचना पति या उसके परिवार के सदस्यों द्वारा पुलिस को नहीं दी गई थी।”
इसके अलावा, बेंच ने बच्चे के प्रति पति की लापरवाही को गंभीरता से लिया। जिरह के दौरान पति (PW1) ने स्वीकार किया कि उसे अपनी बेटी की जन्म तिथि नहीं पता। उसके पिता (PW2) को अपनी पोती का नाम तक नहीं पता था। कोर्ट ने टिप्पणी की:
“यह स्पष्ट है कि बच्ची के जन्म के बाद प्रतिवादी/पति या उसके परिवार के सदस्यों द्वारा कोई खर्च नहीं उठाया गया… जो दर्शाता है कि वे जन्म के बाद कभी बच्ची को देखने नहीं गए, और इस प्रकार, उन्होंने उनके भरण-पोषण की उपेक्षा की।”
परित्याग (Desertion) के मुद्दे पर: सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों (जैसे देवानंद तमुली बनाम काकुमोनी कटाकी और लछमन उत्तमचंद कृपलानी बनाम मीना) का हवाला देते हुए, हाईकोर्ट ने दोहराया कि ‘परित्याग’ के लिए animus deserendi (त्यागने का इरादा) होना आवश्यक है और यह बिना किसी उचित कारण के होना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि अगर पत्नी को प्रताड़ना के कारण घर छोड़ना पड़ा है, तो यह परित्याग नहीं है। बेंच ने कहा:
“यदि पत्नी कथित प्रताड़ना और क्रूरता के आधार पर पति का घर छोड़ती है, तो इस प्रकार का अलगाव परित्याग की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगा, लेकिन विद्वान फैमिली जज ने मामले के इस पहलू पर विचार नहीं किया।”
कोर्ट ने पाया कि पत्नी को दहेज की मांग पूरी न होने पर घर छोड़ने और शिकायत दर्ज कराने के लिए मजबूर किया गया था, जबकि पति ने उसे वापस लाने का प्रयास नहीं किया। कोर्ट ने कहा:
“यह प्रतिवादी-पति है जिसने अपीलकर्ता-पत्नी का परित्याग किया और उसे मायके में रहने के लिए मजबूर किया।”
निष्कर्ष:
हाईकोर्ट ने माना कि फैमिली कोर्ट का फैसला सबूतों और कानून की सही व्याख्या पर आधारित नहीं था। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत का फैसला “विकृत” (Perverse) है और हस्तक्षेप के योग्य है। तद्नुसार, हाईकोर्ट ने 7 अक्टूबर 2021 के फैसले और तलाक की डिक्री को रद्द कर दिया और पत्नी की अपील स्वीकार कर ली।

